अयोध्या मामले में फ़ैसला सुनने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जस्टिस ऑफ़ इंडिया रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किया है.
इस बीच पूर्व जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किए जाने पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आने लगी हैं.
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर कहा- ‘क्या ये की गई मदद का ईनाम है’? लोगों को जजों की स्वतंत्रता में भरोसा कैसे रहेगा? कई सवाल हैं.’
Is it “quid pro quo”?
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) March 16, 2020
How will people have faith in the Independence of Judges ? Many Questions pic.twitter.com/IQkAx4ofSf
वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने ट्वीट कर कहा- ‘न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना अपनी ईमानदारी, सरकार के सामने खड़े होने और कानून का शासन बरकरार रखने के लिए याद किए जाते हैं.’
Justice H R Khanna remembered for :
— Kapil Sibal (@KapilSibal) March 17, 2020
1) his integrity
2)standing up to govt.
3) upholding rule of law
Ranjan Gogoi for
lapping up a Rajya Sabha nomination for
1) being saved by govt.
2) standing in line with it
3) compromising his own and the integrity of the institution
इसके अलावा पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिन्हा, माकपा नेता सीताराम येचुरी, कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी व कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी इस फैसले पर सवाल उठाये हैं.
I hope ex-cji Ranjan Gogoi would have the good sense to say ‘NO’ to the offer of Rajya Sabha seat to him. Otherwise he will cause incalculable damage to the reputation of the judiciary.
— Yashwant Sinha (@YashwantSinha) March 16, 2020
The Pictures say it all! pic.twitter.com/6oSutHSy8A
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) March 16, 2020
Fmr CJI Gogoi nominated to Rajya Sabha! Why am I not surprised?
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) March 16, 2020
Any propriety, Sir?
He directed NRC exercise
Ram Mandir in hurried hearings
Refusal to hear J&K habeas corpus
Immunity from law in own sexual harassment case
Politician or judge all along, ye Greedy Lord? pic.twitter.com/af3IdhSf1a
चीफ़ जस्टिस के रूप में रंजन गोगोई का कार्यकाल क़रीब साढ़े 13 महीने का रहा. इस दौरान उन्होंनें कुल 47 फ़ैसले सुनाए, जिनमें से ‘राम मंदिर’, ‘राफ़ेल डील’, ‘चीफ़ जस्टिस के ऑफ़िस को RTI के दायरे में लाने’, ‘सबरीमाला मंदिर’ और ‘सरकारी विज्ञापन में नेताओं की तस्वीर प्रकाशित करने पर पाबंदी’ जैसे ऐतिहासिक फ़ैसले भी शामिल थे. जस्टिस गोगोई 17 नवंबर 2019 को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे.
कैसा रहा रंजन गोगोई कापूरा सफ़र?
रंजन गोगोई का जन्म 18 नवंबर 1954 को असम के डिब्रूगढ़ में हुआ था. उन्होंने साल 1978 में बतौर एडवोकेट अपने करियर की शुरुआत गुवाहाटी हाईकोर्ट में वकालत से की थी. रंजन गोगोई को संवैधानिक, टैक्सेशन और कंपनी मामलों का दिग्गज वकील माना जाता था. इसके बाद 28 फ़रवरी 2001 को उन्हें गुवाहाटी हाईकोर्ट का स्थायी न्यायमूर्ति नियुक्त किया गया. 9 सितंबर 2010 को उनका तबादला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में कर दिया गया.
इसके बाद 12 फ़रवरी 2011 को उन्हें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का चीफ़ जस्टिस बनाया गया. जबकि 23 अप्रैल 2012 को उन्हें प्रमोट करके सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया गया. चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा के रिटायरमेंट के बाद 3 अक्तूबर 2018 को रंजन गोगोई को ‘चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया’ बनाया गया.
यौन उत्पीड़न का आरोप
बीबीसी के मुताबिक़ पिछले साल भारत में पहली बार ऐसा हुआ जब सुप्रीम कोर्ट के किसी चीफ़ जस्टिस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा जिसके बाद एक नया विवाद खड़ा हो गया.
विवाद तब और भी बढ़ गया जब जस्टिस गोगोई ने इस मामले में ख़ुद का बचाव किया. आमतौर पर होता ये है कि अगर किसी जज का नाम किसी मामले में है तो वो फैसला देने के लिए उस पीठ में शामिल नहीं हो सकते. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ और जस्टिस गोगोई ने जस्टिस बोबडे की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई जिसे सुप्रीम कोर्ट की ही एक पूर्व कर्मचारी के आरोपों की जांच का ज़िम्मा सौंपा गया.
जांच के बाद जस्टिस बोबडे ने जस्टिस गोगोई के ख़िलाफ़ आरोपों को ख़ारिज कर दिया था. हालांकि उन्होंने ऐसा करने का कोई आधार नहीं बताया था. जस्टिस बोबडे भारत के मौजूदा चीफ़ जस्टिस हैं.