सोमवार को काम पर आते ही आपने अकसर लोगों के मुंह से सुना होगा कि ये वीकेंड के ऐसे ही निकल गया. एक दिन और होता तो कितना अच्छा होता. लोग दबे मुंह ही सही लेकिन सप्ताह में तीन दिन छुट्टी और चार दिन काम करने की इच्छा जताते हैं. अब लगता है जल्द ही उनकी ये मनोकामना पूरी होने वाली है.

दरअसल, दावोस में चल रहे World Economic Forum में इस मुद्दे पर दुनियाभर के सीईओ, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक बात कर रहे हैं. क्योंकि मौजूदा दौर की सबसे बड़ी समस्या है वर्क-लाइफ़ बैलेंस.

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कम काम और अधिक लाभ के मंत्र पर दावोस में बहस हुई. इस बारे में World Economic Forum ने ख़ुद ट्वीट कर इसकी जानकारी दी. 

उन्हीं में से एक मनोवैज्ञानिक Adam Grant ने कहा, ‘मुझे लगता है कि हमारे पास कुछ अच्छे प्रयोग हैं, जो दिखाते हैं कि यदि आप काम के घंटे कम करते हैं, तो लोग अपना ध्यान अधिक प्रभावी रूप से केंद्रित करने में सक्षम होते हैं. वो अधिक से अधिक गुणवत्ता और रचनात्मकता के साथ उत्पादन करते हैं. साथ ही वो अपने संगठन के प्रति अधिक वफ़ादार भी होते हैं.’

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अर्थशास्त्री और इतिहासकार Rutger Bregman ने भी उनकी इस बात से सहमती जताई. उन्होंने कहा, दशकों तक, सभी प्रमुख अर्थशास्त्री, दार्शनिक, समाजशास्त्री सभी मानते थे कि हम कम से कम काम करने से उत्पादकता बढ़ती है. इसलिए नीति निर्माताओं द्वारा कम कामकाजी सप्ताह की योजना बनाई जा रही है, जो अधिक अवकाश देने की तलाश कर रहे हैं.

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इस संदर्भ में कई एक्सपेरिमेंट भी हुए हैं. पिछले साल न्यूज़ीलैंड की एक कंपनी ने अपने कर्मचारियों से सप्ताह में चार दिन काम पर आने को कहा था. इसके नतीजे बहुत ही सकारात्मक रहे. उस कंपनी का मानना था कि इससे कर्मचारियों का तनाव कम हुआ और उनकी प्रोडक्टिविटी भी बढ़ गई थी.

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दुनिया के अलग-अलग शहरों में हुए इसी तरह दूसरे प्रयोग भी सफल हुए हैं. World Economic Forum के सामने पेश की गई इस रिपोर्ट में बताया गया कि चार दिन काम करने पर कर्मचारियों में कम तनाव, जॉब सैटिस्फ़ैक्शन और वर्क-लाइफ़ बैलेंस में 20 फ़ीसदी तक की वृद्धी हुई.

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ख़ैर कर्मचारी तो शुरू से ही इसका सपना देखते थे. अब लगता है बहुत जल्द ही उनकी ये ख़्वाइश पूरी होने वाली है. अब बस इंतज़ार है, तो उस दिन का जब हमारे नियोक्ता इस नियम को कब से अपने-अपने संस्थान में लागू करते हैं. आपका क्या ख़्याल है?