बचपन में ही अनाथ हो जाने से बड़ा दुख कोई नहीं. लेकिन अगर आपके मन में कुछ कर गुज़रने का ज़ज़्बा हो तो इतने बड़े दुख से भी पार पाकर सफ़लता हासिल की जा सकती है. आज हम आपको ऐसे ही एक पुलिस ऑफ़िसर की कहानी बताएंगे, जो बचपन में ही अनाथ हो गए थे लेकिन अपने मज़बूत इरादों के दम पर तमिलनाडु पुलिस में ऑफ़िसर हैं.
हम बात कर रहे हैं चेन्नई के अंबत्तूर औद्योगिक क्षेत्र के पुलिस स्टेशन में तैनात ऑफ़िसर मणिकंदन की. बचपन में ही इनके सिर से पिता का साया उठ गया था. आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के चलते मां ने इनको अनाथालय भेज दिया जहां मणिकंदन का दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में हो गया.

जब वो 7वीं कक्षा में थे तब उनकी मां एक दिन अनाथालय में उनसे मिलने आई. लेकिन वो स्कूल गए थे तो मणिकंदन से मिलने उनकी मां स्कूल चली गई. वहां से वापस आने के बाद उन्होंने अनाथालय के बच्चों के कपड़े धोए और रसोई में खाना भी बनवाया. इसके बाद वो घर चली गईं. फिर ख़बर आई कि उन्होंने ख़ुद को जलाकर आत्महत्या कर ली है.
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एक छोटे से बच्चे के लिए इससे बड़ा दुख क्या होगा लेकिन मणिकंदन ने भी परिस्थितियों के सामने घुटने नहीं टेके. वो बचपन से ही पुलिस ऑफ़िसर बनना चाहते थे तो अनाथालय के केयर टेकर परिभास्कर ने उनके लिए एक डॉक्टर को तलाश लिया जो उनकी शिक्षा का ख़र्च उठाने को तैयार हो गए. इसके बाद मणिकंदन ने मन लगाकर पढ़ाई की.

मणिकंदन कहते हैं-
मैंने कई बच्चों को बचपन में ही बर्बाद होते देखा है. मैं अनाथालय और परिभास्कर जी का आभारी हूं. अगर मैं यहां नहीं आया होता तो आज पता नहीं मैं कहां होता.
-मणिकंदन
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मणिकंदन ने Criminology विषय से स्नातक किया है. इन्होंने 2007 में सशस्त्र रिज़र्व बल में नौकरी के लिए आवेदन दिया था. चुने गए 13000 उम्मीदवारों में मणिकंदन का नंबर 423 था. वो फ़िलहाल अंबत्तूर औद्योगिक क्षेत्र के पुलिस स्टेशन में तैनात हैं.
वाकई में मणिकंदन जी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं.