आज World Consumer Day यानी विश्व उपभोक्ता दिवस है. आज का दिन पूरी दुनिया भर के उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए ख़ासतौर पर मनाया जाता है. उपभोक्ता के रूप में हम अक्सर छोटी-मोटी चीज़ें नज़रअंदाज़ कर जाते है. हालांकि, हमें हमारे अधिकारों के बारे में अच्छे से पता होना चाहिए ताकि हमारे साथ कोई धांधली न कर सके.
World Consumer Day को ध्यान में रखते हुए आज हम आपको रू-ब-रू करवा रहें हैं उन मामलों से जिन्होंने ये साफ़ कर दिया कि उपभोक्ता को अपने अधिकारों के लिए हमेशा खड़ा होना चाहिए:
1. दीपिका पल्लीकल बनाम ऐक्सिस बैंक
पेशेवर स्क्वैश खिलाड़ी और अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित, दीपिका पल्लीकल ने उपभोक्ता अदालत में याचिका दायर करते हुए कहा कि उन्हें नीदरलैंड के रोटरडैम के एक होटल में उस वक़्त अपमान और मानहानि का सामना करना पड़ा जब बैंक के डेबिट कार्ड से ट्रांज़ैक्शन फ़ेल हो गया. हालांकि, उनके एकाउंट में बिल से 10 गुना ज़्यादा पैसा था.
बैंक ने घटना को ‘Force Majeure’ करार दिया यानी प्राकृतिक और अपरिहार्य तबाही या Act of God बताया. तब पल्लीकल ने 10 लाख रुपये मुआवज़े की मांग करते हुए उपभोक्ता निवारण फ़ोरम का दरवाज़ा खटखटाया. उपभोक्ता अदालत ने एक्सिस बैंक को ‘सेवा में कमी’ के लिए 5 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया और साथ ही 5,000 रुपये खर्च के रूप में पल्लीकल को देने का भी निर्देश दिया.
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2. डॉ. अरविंद शाह बनाम कमलाबेन कुशवाहा
इस मामले में याचिकाकर्ता कमलाबेन कुशवाहा ने अपने 20 वर्षीय बेटे की मौत का ज़िम्मेदार डॉक्टर द्वारा बरती गयी चिकित्सकीय लापरवाही को बताया. मां ने आरोप लगाया कि उनके बेटे को जो दवाएं दी गयीं थी उसका बीमारी (मलेरिया) से कोई संबंध नहीं था.
राज्य आयोग ने डॉक्टर को Medical Negligence का दोषी पाया और 9% की दर से ब्याज सहित 5 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का आदेश दिया. डॉक्टर ने आगे इस मामले को राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के सामने रखा, जहां मुआवजे़ की रकम 2.5 लाख कर दी गयी.
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3. सहगल स्कूल ऑफ़ कॉम्पिटिशन बनाम दलबीर सिंह
वर्ष 2005 में शैक्षिक संस्थानों से संबंधित इस ऐतिहासिक फै़सले ने ये साफ़ कर दिया कि अगर कोई संस्थान कोर्स के पूरे पैसे पहले ही ले लेता है और छात्र कोर्स के बीच में ही संस्थान छोड़ देता है, तो उसे बाक़ी बचा हुआ फ़ीस लौटाया जाएगा. इस मामले में याचिकाकर्ता को मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की कोचिंग के लिए ₹18,734 की एकमुश्त फ़ीस अगले 2 सालों के लिए जमा करने को कहा गया था.
हालांकि, छात्र को बाद में पता चला कि कोचिंग संस्थान की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी, और इसलिए बाक़ी बची हुई फ़ीस की मांग की गई, जिसे कोचिंग संस्थान ने अस्वीकार कर दिया. राज्य उपभोक्ता फ़ोरम ने अपने आदेश में संस्थान को न केवल बची हुई फ़ीस बल्कि मुआवज़ा भी देने को कहा.
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4. पूनम वर्मा बनाम अश्विन पटेल
इस मामले में डॉक्टर अश्विन पटेल ने चार साल तक होम्योपैथी में प्रशिक्षिण लेने के बाद अपना निजी क्लीनिक शुरू किया था. अपीलकर्ता पूनम वर्मा ने अपने पति की मौत का दोष डॉक्टर पर लगाते हुए कहा की इस होम्योपैथी डॉक्टर ने उनके पति को पहले वायरल बुखार और बाद में टाइफाइड बुखार के लिए एलोपैथिक दवाएं दी थी. ग़लत इलाज़ के चलते आठ दिनों के भीतर ही उनके पति का निधन हो गया.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में डॉक्टर को दोषी पाया और उसे 3 लाख रूपये मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया गया. साथ ही कोर्ट ने मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया को होम्योपैथी डॉक्टर के खिलाफ़ उचित कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया गया.
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5. दिल्ली विकास प्राधिकरण बनाम डी. सी. शर्मा
इस मामले में एक सरकारी कर्मचारी, डी.सी. शर्मा ने 1997 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को 5 लाख के प्लॉट के आवंटन के लिए प्रारंभिक राशि का भुगतान किया था. अपने कार्यालय से लोन उठाने के लिए उन्होंने DDA को किस्त के भुगतान के लिए अतिरिक्त समय मांगा. इस बीच उन्हें पता चला कि उनको ड्रॉ के माध्यम से आवंटित किया गया प्लॉट, पहले ही किसी अन्य व्यक्ति को आवंटित किया जा चुका है, वो भी दो साल पहले.
DDA की इस लापरवाही को लेकर उन्होंने जिला फ़ोरम से संपर्क किया, जिसने मामले को ख़ारिज कर दिया. इसके बाद उन्होंने राज्य उपभोक्ता फ़ोरम से संपर्क किया गया, जहां उनके पक्ष में फ़ैसला आया. आगे चलकर राष्ट्रीय आयोग ने DDA को अपने ग्राहक को 18 साल तक परेशान करने के लिए 5 लाख रूपये मुआवजा देने का आदेश दिया गया.
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6. Spring Meadows हॉस्पिटल बनाम हरजोत अहलूवालिया
इस मामले में एक नाबालिग बच्चे, हरजोत अहलूवालिया को उसके माता-पिता ने भर्ती कराया था. बच्चे को टाइफाइड होने की पुष्टि हुई थी, जिसके बाद एक नर्स ने एक इंजेक्शन लगाया. इसके बाद उसकी हालत बिगड़ती चली गई. बाद में बच्चे को AIIMS के Auto Respiratory ICU में स्थानांतरित किया गया, जहां ये पाया गया कि इंजेक्शन ओवरडोज़ के कारण उनका मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो गया था और वो बाक़ी जीवन कोमा में रहेगी. बच्चे के माता-पिता ने चिकित्सकीय लापरवाही को लेकर अदालत से संपर्क किया और मुआवजे की मांग की.
अदालत ने अस्पताल को दोषी ठहराया और 17.5 लाख रूपये मुआवजा देने का आदेश जारी किया.
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