फैज़ अहमद फैज़ की मशहूर ग़ज़ल के शेर कुछ इस तरह हैं कि
‘बोल, कि लब आज़ाद हैं तेरेबोल, ज़बां अब तक तेरी हैतेरा सुतवां जिस्म है तेराबोल, कि जां अब तक तेरी है’
पर हिंदुस्तान के मौजूदा हालात देख कर लगता है कि ये शेर सिर्फ़ किताबों-कहानियों और मुशायरे तक ही पढ़ने-सुनने अच्छा लगता है. यहां अगर आप जीना चाहते हैं, तो बोलने से परहेज़ कीजिये, क्योंकि अगर आप बोले, तो आपको चुप करा दिया जाएगा.
जैसे बीते मंगलवार की शाम वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश को मरवा कर चुप करा दिया गया.

खुले तौर पर हिंदूवादी राजनीति का विरोध करने वाली गौरी की पहचान भगवा ब्रिगेड के आलोचक के रूप में थी. अपनी कलम के ज़रिये गौरी ने समय-समय पर सरकार और उसकी नीतियों की जम कर आलोचना की, जिसकी वजह वो कई बीजेपी नेताओं की आंखों में खटकने लगी. बीजेपी सांसद प्रह्लाद जोशी और पार्टी पदाधिकारी उमेश दोषी से गौरी की अनबन जग-ज़ाहिर है. 2008 में शुरू ये अनबन इतनी बढ़ गई थी कि 2016 में मामला कोर्ट तक पहुंच गया था.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि सरकार और उसकी नीतियों की आलोचना करने वाले शख़्स को उसकी कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी हो.
एमएम कलबुर्गी
इससे पहले कर्नाटक में ही हम्पी यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर और प्रसिद्ध विचारक और इतिहासकार एमएम कलबुर्गी की उनेक घर के बाहर ही 2015 में अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा हत्या कर दी गई थी. कलबुर्गी काफ़ी लंबे समय से धार्मिक आडंबर अौर अंधविश्वास का विरोध करने की वजह से दक्षिणपंथियों के निशाने पर थे. कलबुर्गी की टिप्पणियों की वजह से बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और श्री राम सेना जैसे हिंदूवादी संगठन उनके ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी कर चुके थे.

डॉ. नरेंद्र दाभोलकर
इस लिस्ट में एक नाम डॉ. नरेंद्र दाभोलकर का भी है, जो महाराष्ट्र में अंधविश्वास के ख़िलाफ़ आंदोलन छेड़े हुए थे. अपनी किताबों के ज़रिये उन्होंने धर्म के नाम पर चल रही कई दुकानों से पर्दा उठाया, जिसकी वजह से वो कई संगठनों के निशाने पर आ गए और लोगों के बीच उनकी छवि हिन्दू विरोधी बनाई गई. हालांकि दाभोलकर ने कभी भी हिन्दू धर्म का विरोध नहीं किया, पर जाति प्रथा का विरोध करने के साथ ही अंतरजातीय विवाह पर ज़ोर देते थे.

गोविंद पंसारे
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता गोविंद पंसारे भी अंधविश्वास के ख़िलाफ़ खुले तौर पर जंग छेड़े हुए थे. हिंदूवादी संगठनों द्वारा महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को आदर्श मानने को ले कर भी वो कई मंचों से उन पर प्रहार करते रहे थे. फरवरी 2015 में शिवाजी यूनिवर्सिटी से लौटते वक़्त 4 अज्ञात लोगों ने गोविन्द और उनकी पत्नी पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दी, जिसके बाद उनकी मौत हो गई थी. उनकी हत्या में हिंदूवादी संगठन, सनातन संस्था के समीर गायकवाड़ का नाम सामने आया था, जिसका कई हिंदूवादी संगठनों ने समर्थन भी किया था.

ख़ैर, लिस्ट बनाने बैठे, तो बहुत लम्बी होती जाएगी. शायद इतनी लम्बी कि कभी ख़त्म होने का नाम ही न ले. पर हमें क्या? हम तो महफूज़ हैं न!
इसी महफूज़दगी को देखते हुए दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लिखी एक कविता याद गई, जो कुछ इस तरह है कि:
वो मेरे देश में घुसे, मैं खामोश रहाफिर वो मेरे शहर में घुसे, मैं खामोश रहा उसके बाद वो मेरे घर में घुसे और अब सारा शहर खामोश है…