अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आने से पहले समाज से लेकर सोशल मीडिया तक सभी जगह महिलाओं को समान अधिकार देने की बातें होने लगती हैं. मगर असलियत कुछ और है. लोग मुंह पर कुछ और असल में कुछ और चाहते हैं. इस बात की पोल खोली है संयुक्त राष्ट्र की हाल ही में आई एक रिपोर्ट ने. इसमें ख़ुलासा हुआ है कि दुनिया की लगभग 90 फ़ीसदी आबादी महिलाओं के प्रति किसी न किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं. सीधे शब्दों में कहें तो ये लोग महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कमतर मानते हैं.

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Gender Social Norms नाम की इस रिपोर्ट में यूएन ने 75 देशों में महिलाओं को लेकर ये सर्वे किया था. इन देशों में दुनिया की क़रीब 90 फ़ीसदी आबादी रहती है. इसमें पाया गया कि 10 में से 9 लोग महिलाओं को पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कमतर मानते हैं. हैरानी की बात ये है कि इनमें स्वयं महिलाएं भी शामिल हैं.

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इन पूर्वाग्रह विचारों में पुरुषों का महिलाओं की तुलना में बेहतर कारोबारी और लीडर होना, उनकी तुलना में पुरुषों का विश्विद्यालय जाना ज़्यादा महत्वपूर्ण होना, प्रतिस्पर्धी नौकरी में महिलाओं की जगह पुरुषों को प्राथमिकता देना आदि शामिल है.

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सबसे अधिक महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह रखने वालों की संख्या ज़िम्बाब्वे में थी. यहां के 99.81 प्रतिशत लोगों ने इसका समर्थन किया है. इसके बाद कतर देश का नंबर आता है. सबसे कम प्रतिशत वाले देश में एंडोरा(Andorra) है, जहां 27 फ़ीसदी लोग ही ऐसा सोचते हैं. इसके बाद स्वीडन(30) और नीदरलैंड(39) जैसे देशों का नाम शामिल है.

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पश्चिमी देशों की बात करें तो फ़्रांस, ब्रिटेन और यूएसए में क्रमशः 56, 54.6 और 57.31 प्रतिशत लोग लैंगिक भेदभाव में यक़ीन करते पाए गए हैं. इस सर्वे से ये भी क्लीयर होता है कि महिलाएं भी स्वयं को पुरुषों से कम आंकती है. यानी लोग भले ही जेंडर इक्वेलिटी पर कितने ही भाषण दे लें, ज़मीनी हक़ीकत कुछ और ही है.

मतलब साफ़ है अभी जेंडर इक्वेलिटी की वक़ालत करने वाले लोगों को अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी होगी. 


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