हम जिस देश में रहते हैं उसकी पूरी दुनिया में एक प्रधान देश के रूप में पहचान है. और देश में किसान को अन्नदाता भी कहा जाता है. लेकिन सबको भर पेट खाना देने वाला यही किसान जाने कितने सालों से आये दिन भूखा रह जाता है. कभी सोचा है कि आने वाले समय में देश के इस अन्नदाता का क्या होगा? अब आप सोच रहे होंगे कि हम आपसे ये सवाल क्यों कर रहे हैं… तो इसका जवाब भी हम आपको दे देते हैं. हम ऐसा इसलिए बोल रहे हैं क्योंकि जो किसान पूरे साल मेहनत करके हमारे लिए सैंकड़ों किलो अनाज, फल, सब्ज़ियां उगाता है, उसको उसकी साल भर की मेहनत का इतना फल (पैसा) नहीं मिलता है कि वो एक हफ़्ते भी ठीक से खाना खा सके. जी हां, ऐसा ही कुछ हुआ है महाराष्ट्र के एक किसान के साथ, जिसने दिन-रात मेहनत करके 400 किलो फूल गोभी का उत्पादन किया पर जब वो मार्केट में उसे बेचने गया तो उसे मात्र 442 रुपये देने की बात की गई. मतलब कि 1 किलो फूल गोभी 1 रुपये और 10 पैसे में. जबकि मार्केट में जब हम लोग गोभी खरीदने जाते हैं तो 10 रुपये किलो से कम में तो कभी भी नहीं मिलती है. शायद आप भी सहमत होंगे मेरी इस बात से.
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महाराष्ट्र के किसान की दयनीय स्थिति से तो शायद सब ही वाकिफ़ होंगे. आपको याद ही होगा कि हाल ही में लगभग 55 हज़ार किसान चुपचाप, रात के अंधेरे में देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पहुंचे थे. अपनी मांगों पर सरकार की मंज़ूरी लेने के लिए महिलाओं, बच्चों, बूढ़ों सहित ये हज़ारों किसान 6 दिन तक पैदल चलकर महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचे थे. इसकी नौबत क्यों आयी, क्योंकि देश के अन्नदाता यानि कि देश के किसान की सुध लेने वाला कोई नहीं है, चाहे फिर वो केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार. ऐसे में बेबस किसान क्या करेगा?
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जो लोग ऑनलाइन फ़्रेश सब्ज़ी खरीदते हैं, ताकि उनको उनके दरवाज़े पर ताज़ी सब्ज़ी मिले, क्या वो जानते हैं कि ये सब्ज़ी किसानों से कितने कम दामों में खरीदी जाती है और ऑनलाइन उसको अच्छी खासी कीमत में बेचा जाता है. बावजूद इसके वो ऐसा करते हैं तो ऐसे लोगों को किसान की दयनीय स्थिति से कोई मतलब नहीं होता है.
लेकिन एक कड़वा सच ये है कि अगर किसान की बात की जाए तो वो महीनों या सालभर मेहनत करके फ़सल उगाता है. इतना ही सालभर फ़सल को कीड़े, या किसी बीमारी से बचाने के लिए तरह-तरह के फ़र्टिलाइज़र्स, पेस्टिसाइड्स आदि को भी समय-समय पर डालता है. एक बार की फसल के लिए एक किसान अपनी जमा-पूंजी सब कुछ दांव पर लगा देता है और उसके बदले उसको ना के बराबर पैसा मिलता है. अधिकतर मामलों में तो उनको इसके एवज में इतना भी नहीं मिलता, जितना कि उन्होंने उस पर खर्च किया होता है, और इसका नतीजा ये होता है वो क़र्ज़ के दलदल में फंसता चला जाता है, जहां से निकलना उसके लिए नामुमकिन ही होता है.
ऐसी ही कहानी है महाराष्ट्र के एक किसान की जो जलना जिले में रहकर खेती करता है. उसका एक बेहद ही परेशान करने वाला वीडियो ऑनलाइन पोस्ट किया गया है, जिसमें वो अपनी अपनी गोभी की पूरी फसल, जो उनने महीनों की मेहनत करके उगाई थी, को ख़ुद ही बर्बाद कर रहा है.
इस किसान ने ये कठोर कदम इसलिए लिया क्योंकि उसको 400 किलो गोभी के बदले मात्र 442 रुपये देने की बात की गई. ये वीडियो पोस्ट करने वाले समाजसेवी सुरेश एडीगा के अनुसार, 16 मार्च को पूरे महाराष्ट्र में फूलगोभी की कीमत निम्नानुसार है:
इस्लामपुर में 90 रुपये प्रति क्विंटल
पंढरपुर में 200 रुपये प्रति क्विंटल
नासिक में 285 रुपये प्रति क्विंटल
कोल्हापुर में 350 रुपये प्रति क्विंटल
सुरेश ने हिसाब लगाया कि इस किसान ने गोभी उगाने के लिए बीज, फ़र्टिलाइज़र्स, पेस्टिसाइड्स, टिलिंग, सिंचाई, कटाई, खारे, बिजली और परिवहन पर कम से कम 75000 रुपये प्रति एकड़ खर्च किये होंगे. और उसके हाथ में 400 किलो के लिए 442 रुपए ही आये, ये रुपये तो उस धनराशि के आस-पास भी नहीं थे, जो उसने ख़र्च किये, ऐसे में उसको फ़ायदा कहां से होगा?
जाहिर सी बात है कि ऐसी स्थिति में अपनी फ़सल को बेचने के बजाए, उसको बर्बाद करना उसके लिए ज़्यादा फ़ायदेमंद साबित होगा. कम से कम उसको ये संतोष तो रहेगा कि उसकी मेहनत का फ़ायदा कोई और तो नहीं उठा रहा है.
अब अगर आपको ये लग रहा है कि ये अकेला मामला है अभी तक का तो आप ग़लत हैं, क्योंकि इससे पहले भी किसान ऐसा कदम उठा चुके हैं. इसी साल की शुरुआत में योगी सरकार ने भी ऐसी स्थिति का सामना किया था, जब गुस्साए किसानों ने आलू से भरे ट्रक्स को मुख्यमंत्री निवास के सामने पलटा दिया था क्योंकि उनको प्रति किलो आलू के बदले 4 रुपये देने की बात की गई थी.
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मध्यप्रदेश में टमाटर और प्याज़ की खेती करने वाले किसानों की कहानी भी कुछ अलग नहीं है. एमपी के किसानों के टमाटर और प्याज़ की प्रति किलो की कीमत मात्र 2 रुपये लगाई गई, जिससे गुस्साए किसानों ने अपने विरोध प्रकट करने के लिए रास्तों पर टमाटर और प्याज़ के ट्रक खाली कर दिए थे.
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हम सबके लिए ये बहुत ही शर्म की बात है कि जब देश का किसान ही परेशान है, तो देश की प्रगति कहां से हो जायेगी. हर कोई कम से कम दाम में सब्ज़ी, फल, अनाज खरीदना चाहता है, लेकिन अपने फ़ायदे के लिए हम उसी की मेहनत को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं, जो सही मायनों में हमारा अन्नदाता है. हमें कोशिश करनी चाहिए कि जैसे भी और अपने स्तर पर हम जैसे भी किसान की मदद कर पाएं वो ज़रूर करें, फिर चाहे इसके लिए हमें उनके धरना प्रदर्शनों में उनके साथ ही खड़ा क्यों न पड़े.