सोचिए, किसी दिन आप काम-काज़ के सिलसिले में कहीं जा रहे हों, रास्ते में एक स्कूल आए और स्कूल के सामने छात्राएं पोस्टर्स लिए खड़ी हों. ज़ाहिर सी बात है आप उत्सुकतावश उन पोस्टर्स को क़रीब से देखना चाहेंगे. कुछ ऐसा ही हुआ चेन्नई की 26 वर्षीय Keerthana के साथ.
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सुबह की सैर पर निकली Keerthana, Karpagam Gardens स्थित Avvai Home Higher Secondary School की छात्राएं पोस्टर्स लिए खड़ी थीं. पोस्टर्स देखकर ने न सिर्फ़ Keerthana के होश उड़ा दिए बल्कि शायद ही वो ज़िन्दगी भर वो दृश्य भूल पाएं.
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‘माता-पिता Gays- Homos-Lesbians से ख़ुद को और अपने बच्चों को बचाएं’
ये हैं कुछ लाइनें जो सफ़ेद पट्टे पर नीली स्याही से लिखे हुए थे. छात्राएं बात-चीत करते हुए, हंसी-मज़ाक करते हुए बड़ी सहजता से ये पोस्टर लिए खड़ी थीं.
6-7 स्कूल स्टाफ़ के साथ लगभग 50 छात्राएं थीं. मैंने स्कूल स्टाफ़ से ‘सेक्सी ड्रेस’ का मतलब पूछा. छात्राओं के साथ खड़े एक आदमी ने कहा जब महिलाएं पब्लिक में ब्रेस्ट दिखाती हैं. मैं सन्न रह गई. ये लोग छोटी लड़कियों को ये कैसे सीखा सकते हैं कि रेप या सेक्सुअल हैरैसमेंट उनकी ग़लती है?
-Keerthana
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The News Minute के मुताबिक़, जिस व्यक्ति ने Keerthana को जवाब दिया वो स्कूल का स्टाफ़ नहीं था. आर. मोहन, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में काम करते थे. मोहन कुछ पूर्व और कुछ कार्यरत कर्मचारियों के साथ मिलकर 17 सालों से इस तरह के ‘जागरूकता अभियान’ चला रहे हैं. वो किसी स्कूल से नहीं जुड़े हैं. जब The News Minute ने स्कूल के असिस्टेंट हेडमास्टर से बात की तो पहचान छिपाने की शर्त पर ये स्वीकारा कि उन्होंने बिना देखे छात्राओं को पोस्टर के साथ भेज दिया.
हमारा स्टाफ़ लड़कियों की सेफ़्टी के लिए साथ गया पर पोस्टर्स पर क्या था ये हमने नहीं देखा. आर. मोहन ने कहा कि ये महिला सुरक्षा के लिए है.
-Keerthana
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उस सीनियर टीचर को जब पोस्टर्स पर लिखी बात का पता चला तब वो भी उनसे सहमत दिखीं.
हमें कपड़ों का ख़्याल करना ही चाहिए. हमें इस मैसेज को सकारात्मकता से लेना होगा. हमें ही अपनी सुरक्षा का ध्यान रखना होगा. पुरुषों में हवस भरी होती है.
-स्कूल की सीनियर टीचर
कैंपेन चलाने वाले मोहन का कहना है कि पिछले 17 सालों से शहर के अलग-अलग हिस्सों में ये पोस्टर लगाए जा चुके हैं.
नहीं, ये महिलाओं पर आरोप नहीं लगाता. अगर कोई ब्रेस्ट दिखाने वाले या ट्रांसपैरेंट कपड़े पहनते हैं तो इससे संभावनाएं (छेड़छाड़ और रेप की) बढ़ती हैं. आदमी सिर्फ़ मौक़ा ढूंढता है. अगर उसे मिल जाता है तो वो बस कर बैठता है.
-आर. मोहन
मोहन का ये भी कहना था कि महिलाओं को अपने मन के हिसाब से कपड़े पहनना का अधिकार नहीं है.
ये सिर्फ़ कुछ वेस्टर्न लोगों को लगता है कि पब्लिक प्लेस पर शरीर दिखाना या किस करना सही है. ये तमिल कल्चर नहीं है. इसी से सेक्सुअल हैरेसमेंट होता है. कम उम्र के लड़के ही नहीं, बुढ़े भी ऐसी हरकतें करते हैं.
-आर. मोहन
सोचिए, देश के स्कूलों में बच्चों को किस तरह की शिक्षा दी जा रही है.