इंसानियत से विश्वास उठा देने वाले अपराधों के बीच ऐसी घटनाएं भी होती रहती हैं, जिनके बारे में जान कर लगता है कि दुनिया इतनी भी बुरी नहीं है.

घटना बंगलुरु की इलेक्ट्रॉनिक्स सिटी के पास बेहुर मेन रोड के पास स्थित कॉम्प्लेक्स की है. पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर मैयत्री मंजूनाथ और सुषमा को पता चला कि अपार्टमेंट के अंदर फ़ुटपाथ पर एक नवजात बच्ची मिली है. बच्ची बिना कपड़ों के वहां पड़ी हुई थी. उसके शरीर पर से खून तक साफ़ नहीं किया गया था.

दोनों लड़कियों ने बच्ची को साफ़ किया. कुछ लोग वहां पहुंच कर बच्ची की तस्वीरें लेने लगे. लड़कियों ने 108 पर कॉल किया और एम्बुलेंस बुलाई और वहां मौजूद लोगों से साथ हॉस्पिटल चलने को कहा, लेकिन कोई राज़ी नहीं हुआ. 45 मिनट बाद एम्बुलेंस आई और बच्ची को इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ हॉस्पिटल पहुंचाया गया.

बच्ची को हॉस्पिटल पहुंचाने के बाद उन्हें सिदापुरा पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां उन्होंने अपने स्टेटमेंट दिए. घर लौटते समय उन्हें पुलिस ने सूचित किया कि बच्ची की मां मिल गई है. पुलिस ने बताया कि बच्ची की मां उनके अपार्टमेंट के सामने की झुग्गी बस्ती में रहती है. महिला ने बताया कि उसे बच्चा नहीं चाहिए था, इसलिए उसने अपार्टमेंट में उसे छोड़ दिया था. महिला भागने की तैयारी कर रही थी.

लड़कियों ने वहां जाकर महिला से बात की. पता चला कि महिला विधवा है और उसकी 16 साल की एक बेटी और 10 साल का बेटा है. गरीबी और समाज के डर से वह बच्चे को नहीं अपनाना चाहती थी. गर्भावस्था में अपने पेट के लिए उसने पड़ोसियों से कहा था कि उसके पेट में ट्यूमर की वजह से सूजन है. किसी तरह उन्होंने महिला को बच्ची को अपनाने के लिए समझाया.

पुलिस ने मैयत्री और सुषमा के प्रयासों की तारीफ़ की और कहा कि महिला बच्ची को पालने के लिए तैयार हो गई है, इसलिए उसके खिलाफ़ कोई केस दर्ज नहीं किया गया है.

मैयत्री और सुषमा जैसे लोग पूरे समाज के लिए एक मिसाल कायम करते हैं और मानवता की मशाल जलाए रखने के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं. इनकी जितनी तारीफ़ की जाए, कम है.