गीता के एक श्लोक का सार है कि ‘चिंता, चिता समान है’, पर हक़ीक़त ये है कि आज की चिंता ही कल के भविष्य को सुरक्षित रख सकती है. अब जैसे ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे को ही ले लीजिये, जिसे रोकने के लिए विश्व के कई देश एक मंच पर साथ आ रहे हैं, पर इन देशों की ये कोशिश अभी पूरी होती हुई नहीं दिखाई दे रही. दरअसल, हर साल बर्फ़ के पहाड़ों से घिरा रहने वाला अंटार्टिका महाद्वीप गोबल वार्मिंग की वजह दिन-ब-दिन हरियाली में तब्दील होने लगा है.

वैज्ञानिकों की रिसर्च के मुताबिक हर साल अंटार्टिका की बर्फ़ पिघलने की दर 1mm से बढ़ कर 3mm हो गई है, जो वाकई चिंता का विषय है. इस शोध टीम का हिस्सा रहे Matthew Amesbury का कहना है कि ‘लोग अंटार्टिका के बारे में सोचते हैं कि ये सारा साल बर्फ़ में डूबा रहता होगा, पर अंटार्टिका में कई जगहों पर बर्फ़ इतने बड़े पैमाने पर पिघलने लगी है कि अब वहां हरियाली दिखाई देने लगी है. ये इंसानों द्वारा प्रकृति से छेड़छाड़ का ही नतीजा है कि यहां भी उसका असर दिखाई देने लगा है.’

‘Current Biology’ में प्रकाशित इस रिसर्च में दावा किया गया है कि अंटार्टिका के 1% इलाके में पेड़-पौधे उगने लगे हैं. इस बर्फ़ीले क्षेत्र में पेड़-पौधों का यूं उगना ख़तरे का सूचक है. इस रिसर्च में ये भी ख़ुलासा हुआ है कि बीते कुछ दशकों में विश्व के कई हिस्सों में बड़ी संख्या में जनसंख्या बढ़ी है, जिसका दबाब कुदरत पर भी महसूस किया जा सकता है.

वाशिंगटन पोस्ट में लिखे अपने लेख में Gaciologist Rob DeConto ने बताया है कि अंटार्टिका की ये रिसर्च दर्शाती है कि किस कदर पर्यावरण में CO2 की मात्रा बढ़ गई है. अंटार्टिका में बर्फ़ का पिघलने पर समुद्र का जल स्तर बढ़ जायेगा, जिससे दुनिया विनाश के कगार पर पहुंच जाएगी.