कई दिनों तक चली चुनावी गहमागहमी और उठा-पटक के बाद आख़िरकार 11 मार्च को 5 राज्यों में हुए चुनावों के परिणाम सबके सामने आ गए. इस परिणाम ने जहां उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया, तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी ने गोवा और मणिपुर में चुनाव जीतने के बावजूद कांग्रेस को हार का स्वाद चखा दिया.

वैसे इस सवाल का उठना लाज़मी भी है, क्योंकि इलाज के लिए विदेश जाने से पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान राहुल गांधी के हाथों में सौंपी थी. इसके साथ ही उन्होंने ये भी साफ़ कर दिया था कि 5 राज्यों में होने वाले चुनावों में भी राहुल गांधी ही पार्टी की रणनीति तय करेंगे.

मौजूदा हालातों को देख कर ये कहना गलत नहीं होगा कि राहुल गांधी एक ली़डर के रूप में लोगों के बीच अपनी वो पहचान नहीं छोड़ पाए हैं, जिसकी उम्मीद पार्टी नेताओं ने उन्हें उपाध्यक्ष बनाते वक़्त की थी.

एक कहावत है कि ‘अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियां चुग गई खेत.’ इसलिए अब सिर्फ़ चिंतन करने और दोष मढ़ने से कुछ नहीं होने वाला. हालांकि कांग्रेस नेताओं के पास दिलासा देने के अलावा कोई चारा भी नहीं है, पर आख़िर ऐसा हुआ क्या जो जीत कर भी कांग्रेस सरकार बनाने में नाकाम रही?

गोवा

चुनाव परिणाम के आने के बाद जहां एक ओर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी कांग्रेस इस जीत का जश्न बनाने में डूबी रही, वहीं दूसरी ओर बीजेपी ने इसे अपनी साख का सवाल मानते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को हालातों का जायज़ा लेने के लिए गोवा भेजा. चुनावी परिणामों से एक बात पहले ही साफ़ हो चुकी थी कि गोवा में सरकार उसी की बनेगी, जिसके पास निर्दलीय विधायकों का साथ होगा.

इस साथ को पाने के लिए नितिन गडकरी ने गठजोड़ की राजनीति का सहारा लिया, जिसकी गूंज दिल्ली स्थित कांग्रेस दफ़्तर तक सुनाई दी थी. कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने इसे पैसा और पावर वाली पॉलिक्टिक्स कहा. पर जब तक कांग्रेस के नेताओं की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया होती, नितिन ने निर्दलीय विधायकों का समर्थन जुटा लिया था. 

इस सब के बीच कांग्रेस की हालात उस बच्चे की तरह हो गई, जिसके मुंह से किसी ने आइस-क्रीम छीन ली हो. कांग्रेस की लेट-लतीफ़ी को हाल ही में चुनाव जीत कर आये Jennifer Monserrate भी स्वीकारते हैं. उनका कहना है कि हम दिल्ली में बैठे नेताओं के आलसपन की वजह से ही जीत कर भी सरकार बनाने में नाकाम रहे हैं.

मणिपुर

चुनावी नतीजे के आने के बाद मणिपुर में भी बीजेपी ने जल्दी दिखाई और नतीजे आने के 48 घंटों के भीतर ही राज्यपाल नेज़मा हेपतुल्लाह के सामने बिरेन सिंह ने 21 विधायकों के साथ ही अपनी दावेदारी पेश कर दी. 

हालांकि 60 सीट वाली मणिपुर विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए 31 विधायकों की ज़रूरत थी, पार्टी नेताओं का कहना था कि उन्हें दूसरे दलों के विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है. 

प्रकाश यहां TMC (त्रिणमुल कांग्रेस) के साथ ही अन्य विधायकों को अपने खेमे में मिला कर समर्थन जुटा चुके थे.

ख़ैर, आने वाले समय में क्या होगा कोई नहीं जानता, क्योंकि राजनीति पर गहन अध्ययन करने वाले चाणक्य भी कह गए हैं कि ‘यहां कोई किसी का सगा नहीं होता.’