भारतीय न्याय प्रणाली के मुताबिक़ फांसी की सजा क्रूरतम और जघन्यतम अपराधों के लिए ही दी जाती है. लेकिन आपको ये जानकार हैरानी होगी कि फांसी के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला फंदा पूरे देश में केवल बिहार की ‘बक्सर सेंट्रल जेल’ में ही बनते हैं. 

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पिछले साल ख़बर आई थी कि बक्सर जेल प्रशासन को एक बार फिर से 10 फांसी के फंदे बनाने के ऑर्डर मिले हैं. 22 जनवरी को सुबह 7 बजे निर्भया के 4 आरोपियों को फांसी दी जाएगी. इनके लिए फंदे बिहार की ‘बक्सर सेंट्रल जेल’ में ही तैयार किए गए हैं 

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साल 1949 में महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे से लेकर संसद हमले के दोषी अफ़जल गुरु, मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब और मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन को दी गई सभी फांसियों में इस्तेमाल किए गए फांसी के फंदे को भी बक्सर की ‘सेंट्रल जेल’ में ही तैयार किया गया था. 

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अब सवाल ये उठता है कि आख़िर देश में फांसी के फंदे सिर्फ़ ‘बक्सर सेंट्रल जेल’ में ही क्यों बनते हैं? क्या कहीं और ऐसे फंदे नहीं बनाए जा सकते? 

सन 1880 में अंग्रेज़ों ने ‘बक्सर सेंट्रल जेल’ की स्थापना की थी. जबकि सन 1884 में अंग्रेज़ों द्वारा बक्सर जेल में फांसी की रस्सी के निर्माण के लिए एक मशीन लगवाई गयी.   

इससे पहले फांसी के फंदे फिलीपींस की राजधानी मनीला से आयात किए जाते थे. उस दौर में मनीला में बनने वाले फांसी के फंदे ‘मनीला रस्सी’ के नाम से लोकप्रिय थे. बाद में ‘इंडिया फ़ैक्ट्रीज़ एक्ट’ ने देश में सिर्फ़ बक्सर जेल को ही फांसी की रस्सी बनाने का विशेष अधिकार दिया. आज भी भारत में अन्य जगहों पर फांसी के फंदे बनाने पर प्रतिबंध है. 

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दरअसल, फांसी के फंदे ‘बक्सर सेंट्रल जेल‘ में बनाने पीछे अहम रोल बक्सर के क्लाइमेट का भी है. बक्सर सेंट्रल जेल गंगा के किनारे है. फांसी का फंदा बनाने वाली रस्सी बेहद मुलायम होती है. उसमें प्रयोग किए जाने वाले सूत को अधिक नमी की ज़रूरत होती है. ऐसे में अंग्रेज़ों ने गंगा के किनारे होने के कारण ही मशीन यहीं लगवायी होगी. हालांकि, अब सूत को मुलायम और नम करने की ज़रूरत नहीं पड़ती. सप्लायर्स रेडिमेड सूत ही सप्लाई करते हैं. 

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फांसी के फंदे बनाने के लिए वर्तमान में बक्सर जेल में 4 कर्मचारी कार्यरत हैं. उन्हीं की देखरेख जेल के क़ैदी ही फांसी के फंदे बनाने का काम करते हैं. ये सिलसिला आज से नहीं बल्कि कई दशकों से चली आ रही है. फांसी का फंदा बनाने के लिए जिस सूत का इस्तेमाल किया जाता है, उसका नाम J34 है. पहले यह सूत विशेष तौर पर पंजाब से मंगाया जाता था, लेकिन अब सप्लायर्स से ही लिया जाता है. 

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ये कार्य मुख्य रूप से हाथ से ही किया जाता है. मशीन से केवल धागों को लपेटने का काम होता है. 154 सूत का एक लट बनाया जाता है. इस दौरान कुल 6 लट बनाए जाते हैं. इन 6 लटों से 7200 धागे या रेशे निकलते हैं. इन सभी धागों को मिलाकर 16 फ़ीट लंबी रस्सी बनती है. इसी रस्सी से फांसी का फंदा बनता है. 

इसके बाद जहां से फांसी के फंदे ऑर्डर आता है वहां पर उसके फिनिशिंग का काम होता है. फ़िनिशिंग के काम में रस्सी को मुलायम और नरम बनाना शामिल है. क्योंकि नियमों के मुताबिक़ फांसी के फंदे से केवल मौत होनी चाहिए. चोट का एक भी निशान नहीं रहना चाहिए. 

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एनसीआरबी के अनुसार अभी तक 21 लोगों को फांसी पर लटकाया जा चुका है. क़रीब 1500 लोगों को फांसी की सजा सुनायी जा चुकी है.