पिछले कुछ समय से इंटरनेट की दुनिया में फ़ेक न्यूज़ का बोलबाला रहा है. कुछ बुद्धिजीवियों का ये भी मानना है कि भारत से लेकर अमेरिका के चुनावों तक को इन फ़र्जी खबरों ने प्रभावित किया है. सोशल मीडिया के बड़े दिग्गज, फ़ेसबुक और ट्विटर ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले पर एक्शन भी लिया है. हाल ही में फे़सबुक ने फ्रांस के तीस हज़ार फ़र्जी अकाउंट भी बंद किए हैं.

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गूगल फ़ेक न्यूज़ से निपटने के लिए पिछले चार महीनों से काम कर रहा है, लेकिन इसके बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई थी. गूगल दरअसल एक नए स्क्रीनिंग सिस्टम पर काम कर रहा है जिसे फ़र्जी खबरों पर लगाम लगाने की शुरुआत भर कहा जा सकता है.

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हालांकि गूगल के वाइस प्रेसिडेंट, बेन गोमेस ने कहा कि ये समस्या पूरी तरह से खत्म तो नहीं होगी, लेकिन फ़र्जी खबरों के खात्मे के हिसाब से इसे एक शुरुआत तो माना ही जा सकता है

केवल गूगल ही नहीं, बल्कि फ़ेसबुक के सोशल मीडिया नेटवर्क पर भी कई फ़र्जी खबरें धड़ल्ले से शेयर होती हैं. फ़ेसबुक द एसोसिएटड प्रेस और बाकी न्यूज़ संस्थानों के ज़रिए इन फ़र्जी खबरों पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहा है. फ़ेसबुक ने इसके साथ ही अपने दो अरब यूज़र्स को फ़र्जी पोस्ट्स को रिपोर्ट करने की सुविधा भी उपलब्ध कराई हुई है.

गूगल की साख पर लग रहा बट्टा?

गूगल ने पिछले साल दिसंबर में फ़ेक न्यूज़ को निशाना बनाना शुरू किया था. दरअसल पिछले कुछ समय में इन फ़र्जी खबरों ने गूगल की साख पर बट्टा लगाने का काम किया है. प्रेसिडेंट डॉनल्ड ट्रंप का अमेरिकी चुनावों के दौरान पॉपुलर वोट जीतना एक ऐसी ही फ़र्जी खबर थी, जो गूगल के टॉप सर्च में शुमार थी. इसके अलावा एक खबर तो ऐसी भी थी जिसके अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों का नरसंहार हुआ ही नहीं था.

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गोमेस ने कहा कि गूगल पर केवल 0.25 प्रतिशत हिस्सा ही फ़ेक न्यूज़ से भरा होता है. हालांकि ये हिस्सा भी काफ़ी अधिक है, क्योंकि गूगल को दुनिया के सबसे विश्वस्त सर्च इंजन में शुमार किया जाता है.

इस समस्या को हल करने के लिए गूगल ने दस हज़ार लोगों की मदद से अपने Algorithms की क्वालिटी पर काम करना शुरू कर दिया है. गूगल ने फ़र्जी खबरों से निपटने के लिए 140 पेजों की गाइडलाइन्स भी जारी की हैं.

हालांकि फ़ेक न्यूज़ से निपटना इतना आसान नहीं है, क्योंकि जो खबर किसी एक वर्ग या विचारधारा वाले लोगों के लिए फ़र्जी हो सकती है, वहीं वो खबर किसी खास विचारधारा के लोगों के लिए सच हो सकती है. अगर गूगल, फ़ेसबुक और बाकी कंपनियां फ़र्जी जानकारियों को ब्लॉक करने की कोशिश भी करेंगी, तो उन पर सेंसरशिप या किसी एक खास विचारधारा को समर्थन करने के गंभीर आरोप भी लग सकते हैं. हालांकि फ़र्जी न्यूज़ से निपटने के लिए कोई भी एक्शन न लेना गूगल की विश्वसनीयता पर कई सवाल खड़े करेगा.

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हमारे देश में भी लोग सोशल मीडिया पर राजनीतिक प्रोपेगेंडा वाली खबरों के बहकावे में आ जाते हैं और फ़र्जी खबरों की वजह से झूठ को सच मान लेते हैं. उम्मीद है गूगल का ये प्रयास फ़र्जी खबरों पर लगाम लगाने में कामयाब होगा.