‘हर पहर मेरा गुज़रा हो जिसके आंचल में

  एक पहर वो गुज़र गया मेरे आंगन में’

किसी अपने का गुज़र जाना बेहद तकलीफ़ पहुंचाता है. ये पीड़ा तब और बढ़ जाती है, जब हम उसकी ज़िंदगी के लिए मौत से दो पल मुकाबला भी न कर पाएं. बेबसी, ये बेबसी शायद ताउम्र का दर्द दे जाती है. कोरोना महामारी के दौरान ये दुख बहुत से लोगों के हिस्से में आया है. केरल के शिजू शैज़ भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं, जिन्होंने एंबुलेंस न पहुंचने के चलते हाल ही में अपनी दादी को खो दिया. 

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ये घटना केरल के Alappuzha की है. यहां शिजू शैज़ की 95 साल की दादी के सीने में तेज़ दर्द उठा. शिजू और उनके परिवार ने लगातार एंबुलेंस को कॉल किया, लेकिन तमाम कोशिशों का कोई नतीज़ा नहीं निकला. इतने बड़े शहर में एक एंबुलेंस भी नहीं थी, जो एक बीमार शख़्स को हॉस्पिटल ले जा सके. 

उधर परिवार लगातार एंबुलेंस को बुलाने की कोशिश कर रहा था और इधर एक बुज़ुर्ग दर्द से कराहा रही थीं. जब एंबुलेंस के आने की कोई उम्मीद नहीं बची तो आख़िरकार बुज़ुर्ग़ को कार से ले जाने का तय हुआ. दादी को कार से ही हॉस्पिटल ले जाने लगे, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. 

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अपनी दादी की यूं मौत से शिजू को तकलीफ़ तो हुई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने ठान लिया कि जिस तकलीफ़ से वो गुज़रे हैं, उसका सामना किसी और को नहीं करना पड़ेगा. इसी सोच के साथ शिजू ने ख़ुद की ही एक एंबुलेंस सर्विस शुरू कर दी. 

ग़रीबों के लिए मुफ़्त सेवा 

शिजू ने एक एंबुलेंस ख़रीद भी ली है. उन्होंने स्थानीय मीडिया को बताया कि जिन लोगों के पास पैसा नहीं होगा उनसे एंबुलेंस सर्विस का कोई चार्ज नहीं लिया जाएगा. 

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बता दें, ये कोई पहली बार नहीं है, जब एंबुलेंस की देरी या न पहुंचने से किसी मरीज़ की जान गई हो. देश में अकसर इस तरह की ख़बरें सामने आती रहती हैं. ख़ासतौर से कोरोना महामारी के दौरान तो ऐसे मामलों की संख्या काफ़ी बढ़ गई है. न सिर्फ़ छोटे शहर बल्कि मेट्रो सिटीज़ तक में एंबुलेंस की कमी है. मरीज़ों की संख्या बढ़ने से 12-12 घंटे एंबुलेंस ड्राइवर्स को काम करना पड़ रहा है. लेकिन इसके बावजूद सभी मरीज़ों तक सुविधा नहीं पहुंच पा रही है.