वर्षों से हनुमान हमारी संस्कृति और सभ्यता का हिस्सा रहे हैं. हनुमान को संकटमोचन भी कहा जाता है, जिन्होंने स्वंय भगवान राम की नैया पर लगाई थी. आपने भी मंदिर के पास से गुज़रते हुए या सुबह-सुबह घर में भी हनुमान चालीसा का पाठ, तो सुना ही होगा. पर आश्चर्य तो तब होगा, जब जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में भी हनुमान वंदना सुनने को मिले.
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के चौथे दिन लोगों को कुछ ऐसा ही नज़ारा देखने को मिला. दरअसल Arshia Sattar, Philip Lutgendorf और Subha Vilas ने मिलकर कुछ ऐसा समां बांधा कि सारा फेस्टिवल हनुमान की भक्ति में लीन हो गया. Sattar और Lutgendorf एक स्कॉलर हैं, जो रामायण पर रिसर्च के दौरान शिकागो यूनिवर्सिटी में मिले. उन दिनों को याद करते हुए Sattar कहते हैं कि ‘वो एक दिन कॉलेज में बाइक में से घूम रहे थे कि उन्हें एक शख्स मिला, जो उनसे जय बजरंगी कहते हुए मिला.’ ऐसा कहते हुए वो अपने बजरंगी भाई जान Lutgendorf से मिलवाते हैं.
Sattar के अंदर हनुमान के प्रति लगाव उनकी मां की वजह से हुआ है, जिन्हें बचपन में एक बार बंदर ने मारा था. इस घटना के बाद उन्होंने हनुमान और उनसे जुडी कहानियों पर अपनी रिसर्च की. उनका कहना है कि वो रिसर्च के सिलसिले में मनुस्मृति का अध्ययन कर रही थीं, जिन्हें वो डाइनिंग रूम में टेबल पर छोड़ कर चली गई थीं. वहां एक बंदर आया और उन मनुस्मृतियों को प्रणाम कर के चला गया.
विलास एक मोटिवेशनल स्पीकर हैं, जो आध्यात्म पर कई किताबें लिख चुके हैं. बचपन से ही विलास के घर में भक्ति का माहौल रहा है. उनके पिता हर दिन सुंदरकांड का पाठ किया करते थे, खुद विलास भी जिस जगह पढ़ाई किया करते थे, वहां भी हनुमान जी की एक तस्वीर थी.
अमेरिका के रहने Lutgendorf 1971 में भारत घूमने के मकसद आये थे, जिसके बाद यहां की संस्कृति और कल्चर के प्रति उनके मन में लगाव पैदा हो गया. 1975 में वो यहां दोबारा आये और हिंदी की पढ़ाई करने लगे. इसी दौरान उन्होंने शिकागो में पहली बार रामायण भी पढ़ी. हनुमान के बारे में बात करते हुए Lutgendorf कहते हैं कि ‘वो भक्ति और शक्ति दोनों के प्रतीक हैं.’