जेएनयू में वामपंथी विचारधारा के वर्चस्व को कायम रखते हुए प्रेज़ीडेंट चुनाव में सभी सीटों पर लेफ़्ट ने कब्ज़ा जमाया. गीता कुमारी ने अखिल भारतीय विश्व परिषद की कैंडिडेट को 1506 वोटों से हराकर प्रेज़ीडेंट का चुनाव जीता. कुमारी की प्रेज़ीडेंट जीत के साथ ही वाइस प्रेज़ीडेंट, जनरल सेक्रेटी और जॉइंट सेक्रेटी की पोस्ट पर भी लेफ़्ट ने जीत दर्ज की. यूनिवर्सिटी के 8000 हज़ार स्टूडेंट्स में से 57.6 प्रतिशत यानि 4639 छात्रों ने इन चुनावों में वोट किया था.

एमफिल की सेकेंड इयर की छात्रा गीता ने 2011 में जेएनयू में एडमिशन लिया था. 24 साल की गीता हरियाणा के पानीपत की रहने वाली हैं और गुवाहाटी और इलाहाबाद में आर्मी स्कूलों में पढ़ चुकी हैं.गीता की मां सुशीला देवी एक हाउसवाइफ़ हैं और उनके पिता इंडियन आर्मी में जूनियर कमिशन ऑफ़िसर हैं और जोधपुर में तैनात हैं.

गीता का कहना था कि मेरे माता-पिता कैंपस पॉलिटिक्स में मेरी रूचि का तो समर्थन करते हैं, लेकिन उन्हें मेरी सुरक्षा की चिंता भी लगी रहती है. फ़रवरी 2016 में कन्हैया कुमार को फ़र्ज़ी केस में फ़ंसाने को लेकर गीता का कहना था कि वो बेहद मुश्किल समय था. मेरे माता-पिता डरे हुए थे और उन्होंने मुझे सिर्फ़ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा था. गीता के मुताबिक, माता पिता के समर्थन के बावजूद मेरी विचारधारा को मेरे शहर के ज़्यादातर हिस्से में पसंद नहीं किया जाता है.

पिछले कुछ सालों में लेफ़्ट की मौजूदगी की वजह से और फ़र्ज़ी नारों का सहारा लेकर जेएनयू को एंटी नेशनल यूनिवर्सिटी घोषित करने की बहुत कोशिशें हुई हैं. लेकिन ये विडंबना ही है कि आज उसी यूनिवर्सिटी से पढ़ी एक नेता, आज सरकार में रक्षा मंत्री के पद पर काबिज़ हैं और इस यूनिवर्सिटी की प्रेज़ीडेंट एक आर्मी ऑफ़िसर की बेटी है.

गीता ने बताया कि मेरे पिता एक आर्मी ऑफ़िसर हैं और उनके लिए देश से बढ़कर कुछ नहीं है. उन्हीं की तरह, जेएनयू के सभी छात्र देश से उतना ही प्यार करते हैं. जेएनयूएसयू की प्रेज़ीडेंट होने के नाते, मैं लोगों के मन से जेएनयू की गलत छवि को दूर करने की पूरी कोशिश करूंगी. 

कुमारी पिछले पांच सालों से AISA की एक्टिविस्ट रही हैं और वे दो बार स्कूल ऑफ़ लैंग्वेज़ में काउंसलर चुनी जा चुकी हैं. वो अपने होमटाउन में महिलाओं की स्थितियों और उनके एजुकेशन को भी सुधारना चाहती हैं. वे हरियाणा में AISA की मदद से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ कैंपेन चलाकर महिलाओं को उनका हक दिलाने की दिशा में भी काम करना चाहती हैं.

गीता का मानना है कि इस जीत का क्रेडिट सभी छात्रों को जाता है क्योंकि लोगों का अब भी विश्वास है कि देश के लोकतांत्रिक संस्थाओं को बचाना चाहिए और फ़ासी ताकतों को ख़त्म करने की शुरुआत छात्रों से ही होनी चाहिए. उन्होंने नजीब अहमद की गुमशुदगी, जेएनयू में सीट कट, नए हॉस्टल जैसे कई मुद्दों को अपनी प्राथमिकता बताया.

अपने एडमिशन के बाद से ही वो वीमेन राइट एक्टिविस्ट रही हैं. गीता ने 2012 में निर्भया रेप केस में प्रोटेस्ट्स में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. लेफ़्ट के लिए सेंट्रल पैनल की सभी चारों सीट पर जीत दर्ज करना एक महत्वपूर्ण जीत थी. अपने तेज़ तर्रार डिबेट्स और राजनीतिक समझ को लेकर जेएनयू को देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में शुमार किया जाता रहा है, ऐसे में यहां होने वाले स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन हमेशा से ही जेएनयू के कल्चर का एक अहम हिस्सा रहे हैं. पारंपरिक तौर पर जेएनयू में लेफ़्ट का ही बोलबाला रहा है. जेएनयू के पिछले तीनों प्रेज़ी़डेंट मोहित पांडे, कन्हैया कुमार और आशुतोष कुमार, तीनों ही लेफ़्ट से आते हैं.

2014 में बीजेपी सरकार के आने के बाद से जेएनयू की राजनीति को दबाने की कोशिश की जाती रही है. जेएनयू में पीएचडी की सीट्स में कटौती और फ़र्जी नारों और वीडियोज़ का इस्तेमाल कर जेएनयू की इमेज ख़राब करने की कोशिशें की जाती रही हैं. यूनिवर्सिटी के एम.फ़िल और पीएचडी प्रोग्राम्स में भी 83 प्रतिशत सीट कट की गई हैं. 

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यूनिवर्सिटी में वंचित और गरीब तबकों से आने वाले छात्रों के लिए बनाए गए Deprivation सिस्टम को भी सरकार ने ख़त्म कर दिया, जिसकी वजह से कैंपस में काफ़ी समय तक विरोध प्रदर्शन हुआ था. जनवरी 2016 में वाइस चांसलर बनाए गए जगदीश कुमार भी छात्रों के निशाने पर रहे हैं. इस साल लेफ़्ट में AISA, SFI के साथ ही DSF को भी अपने साथ शामिल किया गया था. ABVP के वर्चस्व को कम करने के लिए ऐसा फ़ैसला लिया गया था.

Source: HuffingtonPost