कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ शुरू हुए किसान आंदोलन को अब कई महीनें बीत चुके हैं. दिल्ली के सिंघु, टिकरी और गाज़ीपुर बॉर्डर पर लाखों किसान महीनों से धरना दे रहें हैं. राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित कई राज्यों में कृषि क़ानूनों के विरोध में महापंचायत और जन सभाओं का आयोजन किया जा रहा है.

सड़क पर इतनी बड़ी तादाद में उतरने के बावज़ूद आंदोलन लंबा खिंच रहा है. सरकार तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने को तैयार नहीं है और किसानों को उससे कुछ कम मंज़ूर नहीं है.

सरकार के साथ इस तनातनी के बीच किसान सड़कों पर डटे हुए हैं और उनके खेतों में फसल लगी हुई है. साथ ही अलग-अलग बॉर्डर पर धरना-प्रदर्शन कर रहे लाखों किसानों के लिए सड़क पर रहने, खाने-पीने, नहाने-धोने का इंतज़ाम करना आसान काम नहीं है.

मगर किसानों ने ये सब संभव कर के दिखाया है. एक तरफ़ वो इस आंदोलन को बड़े पैमाने पर आगे बढ़ा रहे हैं और दूसरी तरफ़ अपने खेतों का भी ध्यान रख रहें हैं. वो ये सब कैसे कर पा रहें है इसके लिए हमने टिकरी बॉर्डर और गाज़ीपुर बॉर्डर का दौरा किया और किसानों से बात की.

खेतों की देख-रेख कौन कर रहा है? 

टिकरी बॉर्डर पर हमें किसानों ने बताया कि उनके घर से एक समय में कोई एक ही व्यक्ति आंदोलन में भाग ले रहा होता है. कुछ दिन बाद आंदोलन में शामिल पहला व्यक्ति घर को रवाना हो जाता है और उसी परिवार का दूसरा व्यक्ति आंदोलन में भाग लेने पहुंच जाता है. Rotation में चलने वाली इस प्रक्रिया के कारण घर के बाक़ी लोग खेती का ध्यान रख पाते हैं.

जिसके खेत में ज़्यादा लोगों की ज़रूरत होती है वहां आस-पड़ोस के लोग मदद कर देते हैं. अगर किसी के घर में ज़्यादा लोग नहीं हैं तो आस-पास के लोग ही खेतों में सिंचाई, दवा छिड़काव आदि का बीड़ा उठा लेते हैं. इस तरह लाखों किसान एक साथ दो मोर्चों पर लड़ रहे हैं. हालांकि, कुछ आंदोलनकारी किसान ऐसे भी हैं जो महीनों से घर नहीं गए हैं और आंदोलन की समाप्ति पर ही घर जाने की बात कह रहे हैं.

खाने-पीने और रहने का इंतज़ाम 

हर बॉर्डर पर कई-कई किलोमीटर लंबी ट्रैक्टर ट्रॉलियों की लाइन लगी है, सड़क पर टेंट लगे हुए हैं. Barricades और कंटीली तारों के पार जब आप प्रदर्शन स्थल पर जाते हैं तो खाना बनाते किसान, लंगर तैयार करते किसान सबसे पहले आपका ध्यान खींचते हैं. लंगर तैयार कर रहे कुछ किसानों से जब हमने बात की तो पाया कि खाने-पीने का सारा सामान गांव से आ रहा है.

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गांव दर गांव छोटे-छोटे संगठन बने हुए है, जो घरों से सामान इकठ्ठा करते हैं और प्रदर्शन स्थल तक पहुंचवाते हैं. फल, सब्ज़ी, अनाज, चीनी, तेल, दूध आदि सब गांव वाले अपनी इच्छा अनुसार देते हैं. कुछ संगठन अपने सदस्यों से चंदा भी लेते हैं, जो कि अमूमन 300 रुपये प्रति परिवार होता है.

इतना ही नहीं गांव से आने वाले सामानों में कपड़े, बिस्तर, रजाईयां, टेंट इत्यादि भी शामिल हैं. अगर किसी संगठन से इतर, बाहर के लोग किसानों की मदद करना चाहते हैं तो उनसे सीधे ज़रूरत का सामान भेजने की गुज़ारिश की जाती है.  

एकता की मिसाल 

पूरा किसान आंदोलन जिस नींव पर टिका है- वो है किसानों की एकता. चाहे वो खेती-बाड़ी की देख-रेख करना हो या धरना-प्रदर्शन कर रहें किसानों के लिए रहने, खाने-पीने का इंतज़ाम, किसानों की एकजुटता ने इसे संभव बनाया है. उनकी एकता ने ही इस आंदोलन को इतना व्यापक और इतने लंबे समय तक ज़िंदा रखा हुआ है.

ये पूरा आंदोलन संगठित प्रयास और समन्वय का बेहतरीन उदाहरण है. सभी वर्गों के किसान अपने हक़ की इस लड़ाई में एक साथ हुंकार भर रहे हैं. आगे क्या होगा ये कहना मुश्किल है मगर उनकी आंखों में दृढ़ निश्चय को साफ़ पढ़ा जा सकता है.

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