गांधी एक क़ौम या मुल्क़ के नहीं हो सकते. ज़मीन बंटती हो, तो इंसान ख़ुद ब ख़ुद अलग हो जाते हैं लेकिन विचार हमेशा जुड़े रहते हैं. महात्मा गांधी विचार हैं.   

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साल 1947. भारत दो हिस्सों में विभाजित हो गया. नया मुल्क़ पाकिस्तान बना. शरीर कटता है तो ख़ून निकलना स्वभाविक है. उस वक़्त भी ऐसा हुआ और उसकी नफ़रतें दोनों ही तरफ़ आज भी ज़िंदा हैं.  

‘भारत और पाकिस्तान, दोनों मेरे मुल्क हैं. मैं पाकिस्तान जाने के लिए कोई पासपोर्ट नहीं लूंगा.’ कभी ये बात महात्मा गांधी ने कही थी. ज़ाहिर है वो ख़ुद को दो हिस्सों में देखना पसंद नहीं करते थे. पर सवाल ये है कि क्या ये दो मुल्क़ गांधी को एक जैसे ही देखते हैं?  

दरअसल, एक रेडिट यूज़र ZakoottaJinn ने ‘पाकिस्तान टाइम्स’ अख़बार 31 जनवरी 1948 की कटिंग शेयर की है, जो महात्मा गांधी की हत्या के अगले दिन की है. अख़बार के पहले पेज की हेडलाइन्स गांधी के हत्या की ख़बर का असर बयां कर रही हैं. हत्या भारत में हुई थी, पर दुख पाकिस्तान तक फैला था. कराची सदमे में और लाहौर शोक में था. सरकारी ऑफ़िस बंद कर दिए गए थे और झंडे झुका दिए गए.   

ZakoottaJinn ने लिखा कि, बतौर एक पाकिस्तानी मुझे हमेशा ये दिलचस्प लगा कि गांधी जी देश में एक व्यक्ति के रूप में कितने प्रतिष्ठित हैं और ये राजनीतिक दायरे में है.  

प्राथमिक विद्यालय में उन्हें जिन्ना के मित्र के रूप में पढ़ाया जाता है. एक ऐसी शख़्सियत जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में सरहानीय भूमिका निभाई थी. आमतौर पर उन्हें विभाजन के बाद पाकिस्तान के अधिकारों के शहीद होने वाले शख़्स के तौर पर देखा जाता है.   

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ख़ुद को शांतिवादी बताने वाले इमरान खान ने खुले तौर पर गांधी के राजनीतिक नायक होने का दावा किया. ग़ज़वा-ए-हिंद के प्रस्तावक दिवंगत पूर्व महानिदेशक आईएसआई हामिद गुल ने आरएसएस को ‘गांधी जी’ की हत्या का दोषी बताया. ये बता पाना मुश्क़िल है कि कैसे पाकिस्तान में उनकी विरासत दोनों देशों के बीच पारंपरिक दुश्मनी को पार करने में कामयाब रही.  

यूज़र ने जिन्ना को लेकर भारत में फैली सोच पर भी बात की, साथ ही गांधी की राजनीति की वैश्विक स्तर पर बढ़ रही आलोचना पर आश्चर्य ज़ाहिर किया. ख़ासतौर से वर्तमान पश्चिमी नेतृत्व वाले सामाजिक न्याय आंदोलन के साथ गांधी की मूर्तियों को हटाने की मुहिम को लेकर. उन्होंने कहा कि मुझे आश्चर्य है कि पाकिस्तानी समाज को ये भावना कब तक झेलनी पड़ेगी.