Mother’s Day भले ही भारत का Concept नहीं है, लेकिन फिर भी हम भारतीय इसे मनाते हैं, क्योंकि मां के लिए एक दिन और Special करने को मिल जाए, तो क्या बुरा है! 14 मई को एक मां को ऐसा ही कुछ गिफ़्ट मिला. पर ये उसके बच्चे ने नहीं, आगरा के शाह बाज़ार के दुकानदारों और सोशल एक्टिविस्ट, नरेश पारस ने दिया.

नागालैंड के दीमापुर की रहने वाली रीता के पति की मौत के बाद उसके पास अंतिम-संस्कार के पैसे नहीं थे. उसने एक साहूकार से 2000 रुपये उधार ले लिए, इस शर्त पर कि पास के किसी चाय-बागान में वो मज़दूरी कर के उसके पैसे लौटा देगी. पर दिन भर मेहनत करने के बाद 40 रुपये हर दिन कमा कर रही रीता, उस साहूकार के पैसे कभी वापस नहीं कर पाती. ये आदमी रीता से ब्याज के रूप में उसके बेटे को भी ले गया था. जब तक रीता पैसे नहीं चुका पाती, उसका बीटा साहूकार के पास था.

UP के आगरा में बेहतर नौकरी दिलाने का वादा कर रीता का देवर उसे, उसके बाकी तीन बच्चों के साथ यहां ले आया. कुछ दिनों बाद उसने भी रीता का साथ छोड़ दिया. एक अनजान शहर में रीता अपने तीन बच्चों के साथ अकेली थी. न तो उसे इस शहर की भाषा आती थी, न उसे यहां कोई काम मिल रहा था. वो बच्चों का पेट पालने के लिए कभी गंदी नाली का पानी पीती, कभी कूड़ेदान में पड़े हुए खाने से कुछ बीन कर लाती. वो रास्तों पर सो रही थी और उसके साथ उसके बच्चे भी इस नर्क को भुगत रहे थे.

सोशल एक्टिविस्ट नरेश पारस रीता की मदद करना चाहते थे, लेकिन न तो वो हिंदी समझ पाती और न ही वो उसकी भाषा समझा पा रहे थे. एक NGO आशा ज्योति केंद्र की मदद से रीता को एक लोकल काउंसलर मिला, जिसने रीता की पूरी कहानी समझी.

इसके बाद दीमापुर के पुलिस प्रभारी से बात की गयी और उनसे रीता की मदद करने को कहा गया. नरेश पारस की मदद से शाह बाज़ार के कई व्यापारियों ने रीता के लिए 3500 रुपयों का इंतज़ाम किया और टुंडला जंक्शन से दीमापुर के लिए उसका ट्रेन टिकट भी करवा के दिया गया.

आखिरकार अब रीता अपने बेटे से मिल पाएगी. इस Mother’s Day पर एक गिफ़्ट इस अभागी मां को भी मिला.

Feature Image is used only for representational purpose only