भारत आज भले ही कई स्तर पर तरक्की कर रहा हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि देश का एक बड़ा भाग डिजिटल क्रांति के प्रभाव से अछूता है. देश में आज भी कई समुदाय और क्षेत्र ऐसे हैं जो डिजिटल इंडिया की दौड़ में काफ़ी पीछे चल रहे हैं. इसी समाज को मुख्यधारा में लाने के लिए आईसीआईसीआई बैंक ने एक सराहनीय कदम उठाया है.

ग्रामीण भारत को डिजिटल क्रांति से जोड़ने के लिए आईसीआईसीआईसी बैंक ने एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की है. इस प्रोजेक्ट की मदद से पिछले 100 दिनों में बैंक ने 100 गांवों को डिजिटल बनाया है. देश के 17 राज्यों में फैले इन गांवों को लेकर आईसीआईसीआई की बैंकिंग टीम ने नवंबर 2016 में इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. ये गांव देश के 17 राज्यों में फैले हुए हैं. इन सभी 100 गांवों में आईसीआईसीआई की शाखा होने के कारण भी बैंक अपने इस प्रोजेक्ट को अंजाम देने में कामयाब रहे.

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आईसीआईसीआई बैंक की इस टीम के एक सदस्य का कहना था कि हम 100 दिनों में 100 गांवों को कुछ हद तक बेहतर बनाने में कामयाब रहे हैं. हमने इन गांवों में कैश सिस्टम को कम करने में कामयाबी पाई है. इसके लिए 11,300 लोगों को वोकेशनल ट्रेनिंग दी गई है जिसमें 7500 से ज़्यादा महिलाएं थीं.

गौरतलब है कि गुजरात के सबरकंथा जिले में मौजूद एक गांव को सबसे पहले डिजिटल गांव का दर्जा मिला था. इस गांव का नाम अकोडरा है. जनवरी 2015 में पीएम मोदी ने उम्मीद जताई थी कि अको़डरा की तरह ही देश के बाकी गांव भी डिजिटल होने की राह में कदम आगे बढ़ाएंगे. इसी के बाद ही आईसीआईसीआई ने अपने इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट को लॉन्च करने का फ़ैसला किया था.

इस प्रोजेक्ट के तहत पहले फेज़ में ग्रामीणों के लिए ऑनलाइन बैंकिंग को आसान बनाया गया. आधार कार्ड पर आधारित तकनीक से गांव के लोगों का बिना किसी कागज़ी दस्तावेज़ के अकाउंट्स खोले गए. बैंक अकाउंट्स बनने के बाद किसानों और ग्रामीण लोगों को मिलने वाले सरकारी लाभों को सीधा अकाउंट में ट्रांसफ़र किया जा सकता था. इसके अलावा 10 भाषाओं में एसएमएस मोबाइल सर्विस भी उपलब्ध कराई गई. ये भाषाएं हैं असमी, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, मराठी, ओड़िया, पंजाबी, तमिल और तेलुगु.

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इस के अलावा बैंक ने गांवों में पीओएस मशीन भी लगाई जिससे गांव के रिटेल व्यापारी, राशन की दुकान और डेयरी की दुकान पर भी डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल आसान हुआ है. जीपीआरएस तकनीक से लैस माइक्रो एटीएम की वजह से भी गांव वाले अपने पैसों को रुपया डेबिट कार्ड या आधार बायोमैट्रिक के द्वारा निकाल या जमा कर सकते थे. इस प्रोजेक्ट के दूसरे फेज़ में ग्रामीणों को ट्रेनिंग दी गई. इसमें गांव के लोगों को वोकेशनल ट्रेनिंग की सुविधा उपलब्ध कराई गई. ये ट्रेनिंग लगभग 15 से 30 दिन की होती थी और खास बात ये है कि इस ट्रेनिंग को एकदम मुफ़्त दिया गया था.

स्थानीय इकोनॉमी को ध्यान में रखते हुए कई कोर्स को डिज़ाइन किया गया था. इन कोर्स का मकसद ग्रामीण कामगारों को प्रैक्टिकल स्किल्स में पारंगत करना है. कोर्स में खेती, डेयरी फ़ार्मिंग, खेती से जुड़े उपकरणों की रिपेयरिंग, ड्रेस डिज़ाइनिंग, सैंडस्टोन कटिंग और मोबाइल फोन सर्विसिंग जैसी कई स्किल्स को शामिल किया गया.

इस योजना के तीसरे फेज़ में लोगों को क्रेडिट लिकेंज उपलब्ध कराई गई, जिससे लोगों के आर्थिक हालात थोड़ा बेहतर हो सकें. बैंक, गांव के लोगों को सेल्फ़ हेल्प ग्रुप्स बनाने को लेकर भी प्रेरित कर रहा है. इससे बैंकों को लोन देने में भी आसानी होगी. किसान क्रेडिट कार्ड, सोना और खेती के दौरान इस्तेमाल होने वाले मशीनों पर भी लोन लिया जा सकेगा. खास बात ये है कि इन लोन्स को गांव के लोगों के घर जाकर ही दिया जाएगा और गांव के लोगों को बैंक की शाखा आने की भी ज़रुरत नहीं होगी. 

100 दिन, 100 गांव के प्रोजेक्ट के बाद आईसीआईसीआई की टीम अब बड़ी चुनौतियों के लिए तैयारियां कर रही हैं. दिसंबर 2017 तक बैंक अपने इस डि़जिटल नेटवर्क प्रोजेक्ट में 500 गांवों को जोड़ने जा रही है. कुछ इसी तरह की बैंकिंग और स्किल प्रोजेक्ट्स के साथ आईसीआईसीआई बैंक 50,000 गांव वालों को ट्रेनिंग और देश के गांवों में रहने वाले 12.5 लाख लोगों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए कमर कस चुकी है.