बिहार के गया जिले में एक गांव है – पटवा टोली. बमुश्किल से 1500 घरों वाला ये गांव किसी साधारण गांव के जैसा ही लगता है. गांववालों की आय का मुख्य साधन जाज़िम (बेडशीट) और गमछा (पारंपरिक तौलिया) की बुनाई है. यहां पर लगभग हर दूसरे घर में बुनाई वर्क शॉप है.
मगर इस गांव की प्रसिद्धि के पीछे यहां के होनहार नौजवानों का हांथ है. इस गांव के 250 लड़के – लड़कियों ने संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE) निकाला और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (IIT) में जगह बनाने में सफ़ल रहे हैं. एक छोटे से गांव के लिए यह एक असामान्य बात है. हालांकि, यहां के युवाओं का यही लक्ष्य होता है.
इंजीनियरिंग के लिए देश की सबसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान – IIT में प्रवेश पाने वाले इन बच्चों के मां-बाप ज़्यादातर दिहाड़ी मज़दूर और बुनकर हैं. ऐसा पिछले कई सालों से होता आ रहा है. पटवा टोली के लगभग हर परिवार में कोई न कोई ऐसा है जो IIT में पढ़ रहा है या पढ़ चुका है.
यहां के बुनकर परिवारों की कमाई बहुत कम होती है. हालांकि, हर परिवार अपने बच्चे की उच्च शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध नज़र आता है. उनकी पढ़ाई के लिए परिवार या तो अपनी जमा-पूंजी ख़र्च कर देते हैं या लोन लेते हैं.