‘नागरिकता कानून’ के विरोध में प्रदर्शन के आरोप में 30 दिसंबर की सुबह 7 बजे अतीक अहमद (24), मोहम्मद ख़ालिद (53), शोएब ख़ालिद (26) समेत 50 वर्षीय गवर्मेंट ऑफ़िस के एक क्लर्क को मुज़फ़्फ़रनगर की जेल से रिहा किया गया था. 

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दरअसल, इन सभी लोगों पर 20 दिसंबर को मुज़फ़्फ़रनगर में ‘नागरिकता कानून’ के विरोध में पत्थरबाज़ी करने और हिंसा फ़ैलाने का आरोप था. हालांकि, अब मुज़फ़्फ़रनगर पुलिस ने इन सभी को सबूत न होने के चलते रिहा कर दिया है.   

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इस संबंध में एसपी सिटी सतपाल अंतिल ने मीडिया से मुख़ातिब होते हुए कहा कि इन चारों को सीआरपीसी की धारा 169 के तहत गिरफ़्तार किया गया था, लेकिन जांच में इनके ख़िलाफ़ किसी भी तरह के सबूत नहीं मिले. 

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इस दौरान जब एसपी सिटी से इन चार लोगों की गिरफ़्तारी को लेकर सवाल किया गया तो उनका कहना था कि 20 दिसंबर को मुज़फ़्फ़रनगर के ज़िला रोजगार कार्यालय में क्लर्क के पद पर कार्यरत एक 50 वर्षीय शख़्स के घर की छत से पत्थरबाज़ी हुई थी. इस दौरान जब पुलिस उनके घर पहुंची तो छत पर उनका 20 वर्षीय बेटा सो रहा था, इसी के आधार पर पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया. 

नाम न बताने की शर्त पर 50 वर्षीय क्लर्क का कहना था कि, 20 दिसंबर की रात 10:30 के करीब जब मैं अपने घर पर सोया हुआ था तो अचानक 60 पुलिसवाले और इतने ही आस-पास के लोग आये और घर में तोड़ फ़ोड़ करने लगे. इस दौरान पुलिसवाले लगातार मेरे पैरों व कंधों पर लाठियां बरसा रहे थे.   

इसके बाद पुलिस बिना कुछ बोले ही मुझे और मेरे बेटे को उठाकर थाने ले गयी. हमसे हमारे फ़ोन्स छीन लिए गए और हमें 100 अन्य लोगों के साथ बैरेक में डाल दिया गया. इस दौरान पुलिस का व्यवहार अमानवीय था, न तो हमें खाना दिया गया न ही पानी. जब मैंने पुलिसवालों से पीने के लिए पानी मांगा तो ख़ुद का पेशाब पीने को कहा गया. 
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इसके बाद 21 दिसंबर को हमें कोर्ट में पेश किया गया. इसके बाद मुझे और मेरे बेटे को जेल भेज दिया गया. मेरा बेटा होटल मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद दिल्ली के एक होटल में इंटर्नशिप कर रहा है. इतना सब कुछ होने के बाद मुझे अब भी ये बात समझ नहीं आ रही है कि जब हमने कुछ किया ही नहीं तो हमारे साथ ये सब क्यों हुआ? 

हालांकि, जेल से छूटने के दिन ही मैंने अपना ऑफ़िस भी जॉइन किया, लेकिन मेरे बेटे को अब भी रिहा नहीं किया गया है.   

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कुछ इसी तरह की घटना जेल से रिहा हुए दिल्ली के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में बीएससी के छात्र अतीक अहमद के साथ भी हुई. 20 दिसंबर की शाम 4 बजे के करीब जब वो अपने बीमार पिता को इलाज़ के लिए मेरठ लेकर जा रहे थे तो मिनाक्षी चौक के पास पुलिसवालों ने कार में सवार उनके परिवार को रोक लिया. 

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अतीक अहमद ने बताया की इस दौरान पुलिसवाले लगातार मेरे और मेरे भाई की ओर इशारा करते हुए कह रहे थे कि यही हैं जो पत्थरबाज़ी कर रहे थे. इसके बाद पुलिस हमें उठाकर थाने ले गयी. 
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इसके साथ ही वाराणसी पुलिस ने ‘नागरिकता कानून’ के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान गिरफ़्तार की गईं पर्यावरण एक्टिविस्ट एकता शेखर को भी 14 दिन बाद गुरुवार को जमानत दे दी है. 14 दिन के बाद एकता अपनी डेढ़ साल की बेटी से मिल पायीं. इस दौरान उनके पति रवि शेखर को भी गिरफ़्तार किया गया था.