डिप्रेशन! 

आज की दौड़ती भागती ज़िंदगी का वो कला सच जिसे स्वीकार करना हमारी मजबूरी है. डिप्रेशन के कारण मसलन ख़राब आर्थिक स्थिति, मानसिक दबाव, प्रोफ़ेशनल दबाव, रिलेशनशिप की उलझनें, पारिवारिक झगड़े, विवाहेत्तर संबंध आदि हो सकते हैं. इन कारणों का सही तरीके से निवारण न हो तो व्यक्ति ‘आत्महत्या’ करने के लिए मजबूर हो जाता है. 

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जब डिप्रेशन अपने अंतिम पड़ाव में पहुंचता है तो इंसान ‘आत्महत्या’ जैसा बड़ा कदम उठाता है. दुनिया भर में होने वाली आत्महत्याओं में भारतीय महिलाओं की संख्या एक-तिहाई से अधिक और पुरुषों की संख्या लगभग एक-चौथाई है. हमारे देश में ऐसी घटनाओं की दर वैश्विक औसत से भी ज़्यादा है. 

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WHO की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़, साउथ ईस्ट एशियन रीजन में भारत की आत्महत्या करने की दर सबसे अधिक है. एक दिन पहले ही जारी हुई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में प्रति 100000 लोगों पर आत्महत्या की दर 16.5 है. श्रीलंका 14.6 की दर से दूसरे जबकि थाईलैंड 14.4 की दर से तीसरे स्थान पर है. 

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WHO की इस रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है. सर्वाधिक महिला आत्महत्या दर के मामले में लेसोथो (24.4) और कोरिया गणराज्य (15.4) के बाद भारत 14.7 की दर से पूरी दुनिया में तीसरे स्थान पर है. 

‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ ने इसी साल दुनियाभर में होने वाली आत्महत्याओं को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी. रिपोर्ट के मुताबिक़ पूरी दुनिया में हर साल लगभग 8 लाख लोग आत्महत्या करते हैं, जिनमें से लगभग 21 फ़ीसदी आत्महत्याएं भारत में होती हैं. मतलब ये की पूरी दुनिया में सबसे अधिक डिप्रेशन के शिकार हम भारतीय हैं.   

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इसी साल तकनीकी ख़राबी के चलते परीक्षा के परिणाम ठीक नहीं आये तो तेलंगाना में 20 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या कर ली थी. आज लोग छोटी-छोटी बातों को लेकर भी आत्महत्या कर रहे हैं. पूरी दुनिया में सबसे अधिक आत्महत्याएं भारत में हो रही हैं ये एक बेहद चौंकाने वाली बात है. 

साल 2016 में WHO द्वारा दुनिया के 176 देशों में किये गये अध्ययन के अनुसार, सर्वाधिक आत्महत्या के मामले में शीर्ष पांच देशों में पहले स्थान पर लिथुवानिया जबकि दूसरे पर रूस था. इस सूची में प्रति एक लाख पर 16.3 आत्महत्या की दर के साथ भारत 21वें स्थान पर था. जो 2019 में 21 फ़ीसदी तक पहुंच चुका है. 

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रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि मलेरिया, डेंगू, कैंसर ऐड्स या फिर युद्ध की तुलना में आत्महत्या के कारण अधिक मौतें हो रही हैं. साल 2016 में सड़क हादसे में मारे गए 200,000 लोगों के बाद 15 से 29 साल के युवाओं के बीच मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण आत्महत्या ही है.   

दुनिया भर में 50 प्रतिशत से अधिक आत्महत्याएं 45 साल से कम उम्र के लोगों द्वारा की गई थीं. जबकि निम्न-मध्यम आय वाले देशों के 90 प्रतिशत युवा मौत के लिए आत्महत्या को चुनते हैं.   

दक्षिण-पूर्व एशिया में महिला आत्महत्या दर (प्रति 100,000 में 11.5) सबसे अधिक है, जो वैश्विक महिला 7.5 की औसत से तुलना में काफ़ी अधिक है.