आज भारत पूरी दुनिया में सबसे तेज़ उभरती हुई इकॉनमी वाले देश के तौर पर जाना जाने लगा है और ये बात खुश होने वाली भी है. लेकिन वहीं दूसरी ओर दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों की लिस्ट में भी भारत टॉप पर है. इसी साल मई में WHO की रिपोर्ट में बताया गया कि, वायु प्रदूषण के मामले में भारत के 14 शहरों की स्थिति बेहद ख़राब है. इस दौरान सिर्फ़ भारत के ही नहीं, बल्कि अधिकतर दक्षिण एशियाई शहर प्रदूषित पाए गए हैं.

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PM 2.5 की सूची में उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा शहर कानपुर पहले स्थान पर है. इसके बाद फ़रीदाबाद, गया, वाराणसी, पटना, दिल्ली, लखनऊ, आगरा, गुड़गांव और दसवें नंबर पर मुज़फ़्फ़रपुर है. जबकि PM 10 की लिस्ट में टॉप पर राजधानी दिल्ली, इसके बाद वाराणसी (भारत), रियाद (सऊदी अरब), अली सुबाह अल-सालेम (कुवैत), आगरा (भारत), पटियाला (भारत), अल शुवैख (कुवैत), बग़दाद (इराक़), श्रीनगर (भारत) और दसवें नंबर पर दम्माम (सऊदी अरब) है.

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अगर बात देश की राजधानी दिल्ली की करें, तो दिल्ली एक बार फिर से स्मॉग की चपेट में है. दशहरे के वक़्त पटाखे जलाये जाने और पड़ोसी राज्यों द्वारा पराली जलाये जाने से दिल्ली की आबो-हवा ज़हरीली हो चली है. इन हालातों को देखते हुए तो दिल्ली को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में टॉप पर होना चाहिए था, लेकिन इस बार बाजी यूपी के औद्योगिक शहर कानपुर ने मारी है.

दिल्ली के हालात हैं बेहद ख़राब

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आंकड़ों के मुताबिक़, दिल्ली में PM 2.5 वार्षिक औसत 143 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा मानक से तीन गुना ज़्यादा है. वहीं PM 10 वार्षिक औसतन 292 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जो राष्ट्रीय मानक से 4.5 गुना ज़्यादा है. इन हालातों में दिल्ली वासियों की ज़िंदगी कैंसर जैसी भयानक बीमारी से घिरी हुई है.

वायु प्रदूषण से लड़ने में चीन से कहीं पीछे है भारत

साल 2013 में दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में अकेले चीन के 14 शहर शामिल थे, लेकिन चीन ने पिछले 3 सालों में ही इस पर काफ़ी हद तक निजात पा लिया. साल 2016 में चीन के सिर्फ़ 4 शहर ही टॉप 20 प्रदूषित शहरों की लिस्ट में शामिल थे. साल 2013 से लेकर अब तक चीन की राजधानी बीजिंग के प्रदूषण स्तर में भारी गिरावट देखी जा रही है. इस समय बीजिंग में PM 2.5 क़रीब 82 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर, जबकि PM 10 क़रीब 46 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है. 

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वहीं दूसरी ओर भारत की राजधानी दिल्ली के प्रदूषण स्तर की बात करें तो ये हर साल बढ़ रहा है. इस समय दिल्ली में PM 2.5 क़रीब 158 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर जबकि PM 10 क़रीब 132 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है.

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नई दिल्ली स्थित ‘सर गंगा राम अस्पताल’ के सर्जन अरविंद कुमार के मुताबिक़, पहले मेरे पास 90 प्रतिशत Lung Cancer के मरीज़ धूम्रपान करने वाले मध्यम आयु वर्ग के पुरुष होते थे, लेकिन अब स्थिति अलग है. अब मेरे पास 60 प्रतिशत गैर-धूम्रपान करने वाले मरीज़ आते हैं, जिनमें से 30 प्रतिशत महिलाएं होती हैं.

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इंस्टीट्यूट के मुताबिक़, साल 2015 में अस्थमा, हृदय रोग और फ़ेफ़डों के कैंसर से हुई 1.1 मिलियन मौतों के लिए ज़िम्मेदार धूल रहित कण थे.

‘उज्जवला योजना’ की सराहना

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WHO की रिपोर्ट के मुताबिक़, प्रदूषण को लेकर भारत के लिए एक बात जो सकारात्मक कही जा सकती है, वो ये कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘उज्जवला योजना’ के तहत ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली 10 करोड़ से ज़्यादा घरेलू महिलाओं को लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने से निजात मिली है. पिछले चार सालों में चूल्हे के धुंए से बीमार होने वाली महिलाओं की संख्या में भारी कमी देखी गई है.

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पिछले 7-8 सालों से भारत के अधिकतर शहर भयंकर प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं. इसको लेकर हर साल केंद्र और राज्य सरकारें बड़े-बड़े दावे करती हैं लेकिन अंत में होता कुछ नहीं हैं. सर्दियों के मौसम की शुरुआत के साथ ही देश की आबो-हवा भी बदल जाती है. पहले दशहरा फिर दिवाली के मौक़े पर जलाये जाने वाले पटाख़ों से निकलने वाली ज़हरीली गैस लोगों का जीना हाराम करती हैं, जबकि कंस्ट्रक्शन से उठाने वाली धूल, गाड़ियों और कारख़ानों से निकलने वाले धुंए और किसानों द्वारा पराली जलाए जाने की समस्या से निजात पाना अब भी मुश्किल हो रहा है.

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WHO के मुताबिक़, साल 2010-2014 के बीच में दिल्ली के प्रदूषण के स्तर में मामूली सुधार हुआ था, लेकिन साल 2015 से स्थिति फिर से बिगड़ने शरू हो गई जो साल 2018 तक जारी है. इस दौरान WHO ने वायु प्रदूषण को लेकर 100 देशों के 4,000 शहरों का अध्ययन किया.

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