भारतीय वायुसेना के प्रमुख लड़ाकू विमानों में से एक ‘मिग-27’ आज 34 साल की सेवा के बाद रिटायर हो गया है. साल 1999 के ‘करगिल युद्ध’ में पाकिस्तान को पटखनी देने में ‘मिग-27’ ने अहम भूमिका निभाई थी. कारगिल युद्ध के बाद इन विमानों को ‘बहादुर’ उपनाम दिया गया था.   

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आज राजस्थान के जोधपुर एयरबेस में ‘मिग-27’ समेत 7 लड़ाकू विमानों ने अपनी आख़िरी उड़ान भरी. तीन दशक से अधिक समय तक भारतीय वायुसेना को अपनी सेवाएं देने वाले ‘मिग-27’ को विदाई समारोह के दौरान सलामी भी दी गई. इस ख़ास मौके पर वायुसेना के कई बड़े अधिकारी भी मौजूद रहे. 

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वायु सेना के बेड़े में 1985 में हुए शामिल 

साल 1980 में भारत ने रूस से 165 ‘मिग-27‘ विमानों की ख़रीद की थी. इन्हें भारतीय वायु सेना के बेड़े में 1985 में शामिल किया गया था. इस विमान ने वायु सेना के सभी प्रमुख ऑपरेशन्स में भाग लिया. 

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हालांकि, पुराने पड़ने के कारण पिछले दो दशकों में करीब एक दर्जन ‘मिग-27’ हादसे के शिकार भी हुए हैं. ‘मिग-27’ विमानों को हटाया जाने की मुख्य वजह इंजन में लगातार ख़राबी आना रही. भारतीय वायुसेना में अब ‘मिग-27’ की जगह मिग-21 लड़ाकू विमान ने ले ली है. ‘मिग-27’ लड़ाकू विमान अब किसी भी देश की वायुसेना का हिस्सा नहीं हैं. 

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क्या ख़ासियत थी ‘मिग-27’ 

हवा से ज़मीन में मार करने में माहिर ये विमान 1700 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम था. एक साथ 4000 किलो के हथियार ले जा सकता था. ‘मिग-27’ विमान की 780 किलोमीटर तक लक्ष्य भेदने की क्षमता थी. 

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तेजस या सुखोई मिग-27 की जगह लेगें 

स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस का निर्माण बेहद धीमी गति से चल रहा है. इसकी एक स्क्वाड्रन ऑपरेशनल हो चुकी है, लेकिन नए विमान आने में अब भी समय लगेगा. ऐसे में जोधपुर की 3 स्क्वाड्रन के लिए सुखोई-30 या तेजस ‘मिग-27’ विमान की जगह ले सकते हैं. 

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जोधपुर में भारतीय वायुसेना के स्टेशन पर शुक्रवार को हुई डी-इंडक्शन सेरेमनी में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. इस समारोह की अध्यक्षता दक्षिण पश्चिमी एयर कमांड के एयर ऑफ़िसर कमांडिंग-इन-चीफ़ एयर मार्शल एस. के. घोटिया ने की.