किसी अपने की मौत के गम से उबरना इंसान के लिए सबसे मुश्किल होता है. उसपर भी जब अपने किसी क़रीबी व्यक्ति की नृशंस हत्या कर दी जाए तो दुःख की कोई सीमा नहीं होती है.
अब ये कल्पना कीजिए कि उनपर क्या बीतती होगी जो ये भी नहीं जानते कि उस जघन्य अपराध के लिए किसे दोष देना है या किससे न्याय मांगना है. इस सब के ऊपर से मीडिया की कवरेज और लोगों की तरह-तरह की अटकलें. जीवन एक तरह से नारकीय हो जाएगा.
ये भारत के वो 7 हत्या के मामले हैं जिसने पूरे देश को हिला के रख दिया और आज तक उनके अपराधियों को पकड़ा नहीं जा सका है:
1. अमर सिंह चमकीला
एक निडर पंजाबी गायक जिसे दिन-दहाड़े कुछ मोटरसाइकिल सवारों ने गोली से छलनी कर दिया.
संगीत के क्षेत्र में अपना एक मुकाम और पंजाब के सबसे बेहतरीन कलाकारों ने गिने जाने वाले अमर सिंह चमकीला की मौत आज तक एक रहस्य बनी हुई है.

उन्होंने अपने गीतों में वो लिखा जो उन्होंने अपने गांव के जीवन में देखा. उनके गानों में विवाहेतर संबंधों, शराब, नशीली दवाओं के दुरुपयोग, गुस्से, लड़ाई-झगड़ों, इत्यादि के बारे में अक्सर ज़िक्र रहता था. उनके फ़ॉलोवर्स के बीच वो सच बोलने वाले व्यक्ति के रूप में देखे जाते थे जबकि उनके विरोधियों के लिए वो अश्लील थे.
जब वह अपने करियर के शीर्ष पर थे तो उन्हें कई बार खालिस्तानी आतंकवादियों द्वारा मौत की धमकी दी गई थी. इन धमकियों के पीछे कई कारण माने जाते हैं – उनके क्रांतिकारी गीत, उनका संस्थाओं के लिए ख़तरा माना जाना, अमरजोत कौर से उनकी शादी, जो उनकी सह-कलाकार भी थीं और दूसरी जाति से आती थी.

8 मार्च 1988 को पंजाब के मेहसमपुर में जब वे परफॉर्म करने पहुंचे तो कुछ मोटरसाइकिल सवारों ने उन्हें गोली मार दी. ये घटना दिन के 2 बजे घटी जब वो अपनी पत्नी अमरजोत के साथ अपनी गाड़ी से निकल रहे थे. मोटर साइकिल सवारों के गिरोह ने उन दोनों पर और उनके दल के अन्य सदस्यों पर कई राउंड फ़ायर किए. अमरजोत उस समय गर्भवती थी और उनको सीने में गोली लगी जबकि चमकीला को सीने में 4 गोलियां मारी गई थीं. इनके साथ गिल सुरजीत और ढोलकी वादक राजा भी गोलियों के शिकार हुए जिनसे उनकी मौत हो गयी.

इसका दोष आतंकवादियों पर लगाया गया. हालांकि, कुछ का मानना था कि दूसरे पंजाबी गायकों ने अमर के खिलाफ़ साजिश रची थी. उनकी हत्या के बाद कर्फ़्यू लगा दिया गया और गिरोहों के बीच दंगे भड़क उठे. ज़्यादा जानकारी के लिए ये पढ़े.
इस सिलसिले में कभी कोई गिरफ्तारी नहीं हुई और ये मामला कभी नहीं सुलझा.
2. चंद्रशेखर प्रसाद
एक शार्प शूटर ने 31 मार्च, 1997 को इनको गोली मार दी. इसके पीछे कथित तौर पर राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व सांसद, मोहम्मद शहाबुद्दीन का हाथ माना जाता है.

बिहार के सिवान में एक गरीब परिवार में जन्मे चंद्रशेखर ने अपनी शुरूआती पढ़ाई सिवान में ही पूरी की. बाद में उन्होंने झुमरी तिलैया के सैनिक स्कूल में पढ़ाई की, जिसके बाद वो भारतीय राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में शामिल हो गए. लेकिन उन्होंने इसे जल्द ही छोड़ दिया क्योंकि वो एक Political Activist बनना चाहते थे. JNU जाने से पहले उन्होंने पटना विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया.

JNU आते ही उन्होंने CPI-ML Liberation के नवगठित छात्र संगठन AISA की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वो लगातार तीन बार जेएनयू छात्र संघ के चुनाव में निर्वाचित हुए, और लगातार दो कार्यकाल के लिए प्रेसिडेंट चुने गए.
31 मार्च, 1997 को बिहार के सिवान में एक सभा को संबोधित करते हुए उनकी हत्या कर दी गई.

उनकी नृशंस हत्या के पीछे का कारण एक नेता के रूप में लोगों के बीच उनकी ज़बरदस्त पॉपुलैरिटी को माना गया. उनकी हत्या के बाद देशभर में आक्रोश था और छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया.आरोप लगाए गए लेकिन पुलिस को अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि इस भावी नेता की हत्या की साजिश के पीछे कौन था.
3. राजीव दीक्षित
एक सच्चे देशभक्त की रहस्यमय मौत, जिसकी न कोई जांच हुई और न ही पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई. हार्ट अटैक या धीमा जहर? सवाल अभी भी बने हुए हैं.

राजीव दीक्षित एक सामाजिक कार्यकर्ता और एक राष्ट्रवादी थे, जिनका 43 वर्ष की आयु में 30 नवंबर, 2010 को निधन हो गया. उन्होंने वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की बुराइयों पर बात की और उन्हें आधुनिक उपनिवेशवाद के समान बताया. वो स्वदेशी आंदोलन और आज़ादी बचाओ आंदोलन के नेता थे और टैक्स के विकेंद्रीकरण की वकालत करते थे. क्योंकि उनके अनुसार 80% टैक्स राजनेताओं और नौकरशाहों पर ख़र्च हो रहा है और बस 20% टैक्स लोगों के लिए विकास पर ख़र्च हो रहा है. वो किसानों के अधिकारों की भी वकालत करते थे.

2001 में न्यूयॉर्क के ट्विन टावर्स पर हुए हमले जैसे विषयों पर उनके विचार बहुत विवादास्पद थे. सरकारों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) जैसी शक्तियों के खिलाफ़ अपनी अथक लड़ाइयों के कारण उनके कई दुश्मन बन गए थे.
30 नवंबर 2010 को भिलाई, छत्तीसगढ़ में उनकी दिल की धड़कन रुकने के कारण उनकी मौत हो गई, जब वो अपनी भारत स्वाभिमान यात्रा के लिए एक जगह व्याख्यान देने जा रहे थे.

हालांकि, उनकी मौत के बाद कोई पोस्टमार्टम नहीं किया गया. मौत के वक़्त उनके शरीर का रंग नीला-काला पड़ गया था, जो ज़हर दिए जाने की तरफ़ इशारा करता है. पूरा मीडिया उनकी मौत पर चुप था और किसी ने भी इसकी रिपोर्टिंग नहीं की.
आज तक हम नहीं जानते कि वास्तव में हुआ क्या था?
4. लाल बहादुर शास्त्री
एक व्यक्ति जो अपनी विनम्रता के लिए, और युद्ध के समय विदेश में असामयिक, संदिग्ध मौत के लिए याद किए जाते हैं.

जैसा कि राजीव दीक्षित के साथ हुआ था वैसा ही कुछ शास्त्री जी के भी साथ हुआ, संदिग्ध परिस्थितियों में दिल की धड़कन रुकने से मौत. ताशकंद, रूस में युद्ध के समझौते पर हस्ताक्षर करने के अगले दिन, दोपहर 2 बजे उनकी मौत हो गयी. वो विदेश में मरने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री थे और कई लोगों को इसमें हत्या की आशंका ज़ाहिर की.
ऊपर से लाल बहादुर शास्त्री के मामले में कोई भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं तैयार गई थी. इस तरह ज़हर देकर उनकी हत्या करने की थ्योरी सामने आने लगी. इसको लेकर कई RTI भी डाले गए जिनको सरकार ने ख़ारिज कर दिया. कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तनाव आने के डर से ऐसा किया गया.

बाद में Gregory Crowley नाम के एक पत्रकार ने अपनी किताब ‘Conversations with the Crow’ में दावा किया कि भारतीय परमाणु वैज्ञानिक, डॉ होमी भाभा को मारने में अमेरिकी ख़ुफ़िया संगठन, CIA का हाथ था. उनका विमान एल्प्स में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जब वह वियना में होने वाले एक सम्मेलन में भाग लेने जा रहे थे. 1966 में ताशकंद शिखर सम्मेलन में दौरान प्रधानमंत्री शास्त्री की मौत के पीछे भी CIA का हाथ बताया गया.
Crowley का कहना था कि USA परमाणु नीति पर भारत के कठोर रुख से ख़ुश नहीं था और तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री परमाणु परीक्षणों के साथ आगे बढ़ना चाहते थे. उन्होंने ये भी कहा कि एजेंसी इस क्षेत्र पर भारत-रूस के सामूहिक वर्चस्व को लेकर चिंतित थी. यह घटना आज भी रहस्यों में डूबी हुई है.
5. सुनंदा पुष्कर
एक सोशलाइट की रहस्यमयी मौत, जिसने ख़ुद को कई हाई प्रोफ़ाइल घोटालों के जाल में फंसा पाया.

एक पाकिस्तानी पत्रकार, मेहर तरार के साथ ट्वीटर पर हुई बहस के अगले दिन सुनंदा पुष्कर नई दिल्ली के चाणक्यपुरी में लीला पैलेस होटल के कमरा नंबर 345 में मृत पायी गयी. 17 जनवरी, 2014 को शशि थरूर को उनकी लाश मिली. मेहर तरार के कथित तौर पर सुनंदा पुष्कर के पति, शशि थरूर के साथ संबंध थे.
सुनंदा की आत्महत्या करने की आशंका जतायी गयी. बाद की रिपोर्ट्स में बताया गया कि उनकी मौत का कारण अप्राकृतिक था. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के डॉक्टरों ने एक प्रारंभिक Autopsy रिपोर्ट दी जिसके अनुसार उनके शरीर पर चोट के निशान पाए गए. कहा गया कि ये चोटें मौत का कारण हो भी सकती हैं और नहीं भी.

1 जुलाई 2014 को इस मामले ने एक नया मोड़ तब ले लिया जब एम्स के डॉक्टर सुधीर गुप्ता ने खुलासा किया कि उन पर ग़लत रिपोर्ट देने का दबाव डाला गया था.
10 अक्टूबर 2014 को उनकी मौत की जांच कर रही मेडिकल टीम ने निष्कर्ष दिया कि उनकी मौत ज़हर खाने से हुई थी. 6 जनवरी, 2015 को दिल्ली पुलिस ने ये रिपोर्ट दर्ज़ की कि सुनंदा की हत्या हुई है और इस संबंध में एक FIR लिखी गई.

फ़िलहाल ये मामला न्यायालय के अधीन है. और अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें.
6. आरुषि तलवार – हेमराज बंजारे
नोएडा में एक चौंकाने वाला दोहरा हत्याकांड, जो घटिया जांच और अफ़वाहों की बलि चढ़ गया.

यूपी पुलिस की प्रारंभिक जांच बेहद ढीली-ढाली और ख़राब थी, जिसमें आरुषि और उसके माता-पिता के चरित्र के बारे में बेहद असंवेदनशील और निंदनीय बातें कही गयी. पुलिस द्वारा की गई इस घटना की व्याख्या में बहुत झोल था.

इस मामले में और बुरा ये हुआ कि मीडिया में इसे बहुत बढ़ा-चढ़ा के दिखाना शुरु कर दिया. इस दौरान वास्तविक तथ्यों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया गया था. ये एक व्यक्तिगत त्रासदी थी, फिर भी इसे इतनी ज़्यादा सनसनीखेज़ ख़बर बना दिया गया था कि लोग टीवी इंटरव्यू देख कर ही आरुषी के माता-पिता को आरोपी बताने लगे थे.

पहली सीबीआई टीम के निष्कर्ष ने मीडिया द्वारा बतायी गई कहानी के उलट पूरे मामले की दूसरी तस्वीर पेश की. ये जुलाई, 2009 में श्री अरुण कुमार द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ़्रेंस थी: (भाग 1, भाग 2).
नार्को एनालिसिस टेस्ट के माध्यम से प्राप्त सुबूत अदालत में मान्य नहीं हैं इसलिए ये किसी को भी दोषी ठहराने के लिए अपर्याप्त था. बिना किसी को आरोपी बनाए जांच को बंद कर दिया गया. तब माता-पिता ने इस मामले को फिर से खोलने के लिए एक याचिका दायर की और उसके बाद राजेश और नूपुर तलवार को दोषी ठहराया गया.

अधिक जानकारी के लिए ये देखें- 1, 2, 3
7. रिजवानुर रहमान
एक घटना ने जिसे शुरू में आत्महत्या कहकर खारिज किया गया. मगर इसको मिले बड़े स्तर पर कवर अप और आम लोगों के आक्रोश के बाद इसके पीछे साजिश सामने आई.

रिज़वानुर रहमान एक मध्यम वर्गीय परिवार से आना वाले कंप्यूटर ग्राफ़िक ट्रेनर थे, जिन्हें Lux Hosiery Group के प्रमुख, उद्योगपति अशोक टोडी की बेटी, प्रियंका टोडी से प्यार हो गया और बाद में उन्होंने उनसे शादी कर ली.
अशोक टोडी अपनी बेटी के रिज़वानुर से शादी कर लेने से बेहद नाराज़ थे. रिज़वानुर को प्रियंका को उसके पिता के घर भेजने के लिए मजबूर किया गया और बाद में उसे प्रियंका से बात नहीं करने दिया गया.
21 सितंबर 2007 को उसका शव कोलकाता में रेलवे ट्रैक से बरामद किया गया था. इस घटना को पहले आत्महत्या के एक मामले के रूप में सामने रखा गया था, लेकिन पुलिस के सबूतों ने मीडिया में हंगामा मचा दिया. पुलिस ने आरोप लगाया गया कि अधिकारी टोडी के दबाव में घटना को ढक रहे थे.

मई 2010 में कोलकाता उच्च न्यायालय ने मामले को हत्या के रूप में घोषित किया और जांच फिर से शुरू हुई. शीर्ष अदालत ने हत्या के मामले के Registration के आदेश को खारिज कर दिया, लेकिन आत्महत्या के मामले में सीबीआई द्वारा जांच के आदेश को बरकरार रखा.

प्रियंका को आख़िरी बार 2013 में एक अवॉर्ड शो में शिरकत करते हुए देखा गया था. मामले की अभी भी जांच चल रही है.
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