ये तो सभी जानते हैं कि भारत की सेना को अटूट कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है. लेकिन क्या आपको मालूम है भारत की स्पेशल फ़ोर्स में शामिल होने के लिए आए 70 प्रतिशत लोग कठिन ट्रेनिंग के चलते फ़ेल हो जाते हैं?

भारतीय स्पेशल फ़ोर्स में शामिल सैनिक देश के सर्वोत्तम सैनिकों में शुमार होते हैं. इन लोगों की ट्रेनिंग हद दर्जे की कठिनाईयों से भरी होती है. इस ट्रेनिंग की खास बात ये है कि इसका कोई Manual नहीं होता. सैनिकों को 1 साल के लिए बेहद मुश्किल ट्रेनिंग का सामना करना पड़ता है. 

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शारीरिक टॉर्चर के साथ-साथ मानसिक मज़बूती को आंकने के लिए कई हैरतअंगेज़ ट्रायल्स देने पड़ते हैं. इन सबके बीच कई बार सैनिकों को भूखा रहना पड़ता है और कई-कई दिन नींद से भी वंचित रहना पड़ता है. इस ज़ोर-आज़माइश का मकसद सैनिकों का Breaking Point तलाशना होता है. अगर ये ब्रेकिंग पाइंट मिल जाता है, तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.

किसी भी स्पेशल फ़ोर्स के सैनिक के लिए ट्रेनिंग के Stress Phase को भुला पाना कठिन है. इस फ़ेज के दौरान एक बार एक ऑफ़िसर को ट्रेनिंग शुरू होते ही लगातार तीन दिनों तक जागते रहने को कहा गया था. नींद से वंचित इस पहली ट्रेनिंग के बाद दूसरे फ़ेज में इस सिपाही को पांच दिनों तक बिना सोए रहना पड़ा था. आखिरी फ़ेज में इस शख़्स को पूरे एक हफ़्ते के दौरान बिना सोए खड़े ही रहना पड़ा था.

एक ऑफ़िसर ऐसे भी थे जिन्हें Mental Stress Test के दौरान, अचानक ही मुश्किल फ़िजिकल टास्क करने को कहा गया. ट्रेडमिल पर इस शख़्स को 15 मिनट तक बेहद तेज़ गति से दौड़ना पड़ा. इस दौरान वहां मौजूद तीन अफ़सर चिल्ला-चिल्लाकर उसकी गलतियां और कमियां बता रहे थे. 15 मिनट के बाद इस प्रताड़ना के ख़त्म होने पर ये शख़्स लगभग रुआंसा हो गया था.

इसके अलावा अंडमान एंड निकोबार के एक गुमनाम द्वीप कुछ मरीन कमांडोस को 8 दिनों तक बिना किसी राशन के रहना पड़ा था. इन लोगों को अपना पानी भी ओस की बूंदों के सहारे तैयार करना पड़ता था. खाने के नाम पर ये लोग यहां मौजूद केकड़े का शिकार ही कर सकते थे. इन लोगों को सुबह जल्दी उठना पड़ता था और हथियारों के साथ कड़ी धूप होने तक ड्रिलिंग करनी पड़ती थी. इस ट्रेनिंग के ख़त्म होते-होते 4 सैनिकों की हालत बेहद खराब हो गई थी.

पैरा कमांडोज़ को केवल शारीरिक रूप से ही नहीं, बल्कि उन्हें स्ट्रीट स्मार्ट और मानसिक रुप से भी बेहद चौकन्ना रहना होता है. ज़रूरत पड़ने पर लोकल लोगों से भी काम निकलवाने के लिए भी अपने आपको तैयार करना पड़ता है. जम्मू-कश्मीर में एक बार दो अफ़सरों को बुर्का पहनने के लिए कहा गया था. इन ऑफ़िसर्स को एक नदी से होते हुए पहाड़ चढ़ना था. हालांकि ये ज़्यादा मुश्किल नहीं था, लेकिन उड़ी-बंदीपोरा के पास मौजूद एक रुकने की जगह पर आतंकवादियों का अड्डा था. ये लोग अपने इस टास्क में सफ़ल नहीं हो पाए थे. उसके बाद से इस टास्क को फिर नहीं दोहराया गया.

एक बार जून की दोपहरी में एक मारुति जिप्सी श्रीनगर और बंदीपोरा हाइवे से गुज़र रही थी. सड़क के बीचों-बीच पड़े एक जानवर के शव की वजह से गाड़ी रोक ली गई. पास जाकर देखा तो ये हिरण का शव था. गाड़ी से बाहर निकले एक सीनियर ने अपने जूनियर को इस हिरण को काटने के लिए कहा.

वहां मौजूद जूनियर घबराया नहीं. उसने 9 इंच लंबा चाकू निकाला, अपने घुटने पर बैठा और उस मरे हुए हिरण के पेट को चीर दिया. वह उस सड़ चुके जानवर को काटने लगा. शव के सड़ने की वजह से बेहद बदबू फ़ैल चुकी थी. वहां मौजूद सीनियर्स ने इस दौरान अपनी पलकें तक नहीं झपकाई, लेकिन गंदी बदबू से परेशान हो चुके जूनियर की बॉडी लैंग्वेज से साफ़ जाहिर था कि वो इस बदबू से थोड़ा असहज हो रहा था. सीनियर्स ने इसे भांप लिया और अगला आदेश सुनाया. इस जूनियर को अब इस बदबूदार हिरण के शरीर में अपना मुंह घुसाना था.

इतना सुनते ही ये सैनिक कुछ देर के लिए मौन रहा. उसने एक लंबी सांस ली और हिरण के काटे गए शरीर में अपना सर डाल दिया. भयंकर बदबू के चलते ये शख़्स ज़्यादा से ज़्यादा देर तक अपनी सांसे रोके रखना चाहता था. लेकिन तभी उसे अपने सिर पर एक हाथ महसूस हुआ. दरअसल वहां मौजूद सीनियर उसका सिर पकड़कर उसे हिरण के शरीर में काफ़ी अंदर तक घुसेड़ने की कोशिश करने लगा. लगभग एक मिनट तक भयंकर बदबू के साथ हिरण के शव में अपना मुंह डाले रखना इस शख़्स के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था. 

मशहूर लेखक शिव अरुर ने अपनी नई किताब ‘ऑपरेशन जिन्ना’ में भारत की स्पेशल टास्क फ़ोर्स के कई अनकहे किस्सों को पिरोया है. इस किताब में स्पेशल टास्क फ़ोर्स की ऐसी हैरतअंगेज़ कहानियां है जो हमारे सैनिकों के अदम्य साहस, कठिन संघर्ष और मानसिक और शारीरिक मज़बूती की दास्तां बयां करती है.