उत्तर फ़्रांस के एक छोटे से गांव लावेन्टी में एक ख़ास अंतिम संस्कार किया गया. यहां 100 साल बाद पहले विश्व युद्ध के दो भारतीय सैनिकों को दफ़नाया गया. इसके लिए यहां एक हिन्दू पुजारी को भी बुलाया गया. कई भारतीय और फ़्रांसीसी सैनिक इन दोनों सैनिकों को श्रद्धांजलि देने आये.

भारतीय तिरंगे में लिपटे दो ताबूतों के पास हिंदू मंत्र पढ़े गए. 2016 में जब एक नाले को चौड़ा किया जा रहा था, तब वहां दो अज्ञात भारतीय सैनिकों के शव पाये गए थे. उनकी वर्दी पर लगे नंबर ’39’ से उनकी पहचान हुई. ये सैनिक 39 रॉयल गढ़वाल राइफ़ल्स की उस रेजिमेंट का हिस्सा थे, जिसने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ़्रांस में युद्ध में भाग लिया था.

ये रेजिमेंट आज भी भारत में है. फ़्रांस ने उनसे संपर्क किया और उन्हें शवों के मिलने की जानकारी दी. सैनिकों को दफ़नाए जाने के वक़्त गढ़वाल राइफ़ल रेजिमेंट के कमांडेंट ब्रिगेडियर इंद्रजीत चटर्जी भी मौजूद थे. इस अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए भारत से एक छोटी सी टीम भी पहुंची थी. गढ़वाल राइफ़ल्स रेजिमेंट बैंड के दो बैगपाइपर्स ने औपचारिक धुन बजाई और सैनिकों को आख़िरी सलामी दी.

जिस जगह सैनिकों के शव मिले थे, वहां की कुछ मिट्टी भारत लायी जाएगी. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 10 लाख से अधिक सैनिक ब्रिटेन की तरफ़ से लड़े थे.

इतिहास की किताबों में इस युद्ध में भारत का बलिदान लगभग भुलाया जा चुका है. लेकिन इस गांव में भारतीय सैनिकों की भूमिका को अब भी याद किया जाता है.

लावेन्टी में एक स्मारक भी बनाया गया है, जहां उन भारतीय सैनिकों के नाम खुदे हैं जो ब्रिटिश राज के लिए युद्ध लड़ते हुए मारे गए थे. हर साल रिमेम्बरेंस संडे के दिन इन सैनिकों को याद किया जाता है.

जिस कब्रिस्तान में इन सैनिकों को दफ़नाया गया है, वहां एक बड़ा क्षेत्र भारतीय लोगों को समर्पित है. उन्हीं लोगों के बगल में इन्हें दफ़नाया गया है.

भारत के राइफ़लमैन गब्बर सिंह नेगी ने युद्ध में अपनी भूमिका के लिए विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त किया था, उनके पोते भी अंतिमसंस्कार में शामिल हुए थे. वो भी भारतीय सेना में कार्यरत हैं.

इस स्मारक पर पहुंचे फ़्रांसीसी सिखों में से एक रंजीत सिंह ने कहा, “यह भारतीय प्रवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये हमें इतिहास से जोड़ता है. ये हमें याद दिलाता है कि सौ साल पहले कुछ सैनिक यहां आए थे, इसे किताबों में नहीं लिखा गया है, लेकिन आज हम इसे देख सकते हैं.”

हर साल फ़्रांस के लोग न्यूवे चैपल के स्मारक पर इकट्ठा होकर युद्ध के शहीदों को याद करते हैं.