अहिल्यानगरी इंदौर, कई चीज़ों के लिये मशहूर है. स्वच्छता के अलावा यहां के लोग खाने के बेहद शौक़ीन हैं. सराफ़ा बाज़ार में दिन में जवाहरात और रात में मनाया जाती है खाने का त्यौहार. इंदौर में ज़्यादातर शाकाहारी खाना ही मिलता है. कुछ ही दुकानें हैं, जहां नॉन-वेज (Non Veg) मिलता है. नॉन वेज की बात हो और जॉनी हॉट डॉग (Johny Hot Dog) की बात न करें ऐसा हो नहीं सकता है.
56 दुकान का जॉनी हॉट डॉग
इंदौर की मशहूर खाने की गली, 56 दुकान में 120 Sq Feet की दुकान है, नाम है जॉनी हॉट डॉग. The Better India के एक लेख के अनुसार, इस दुकान की शुरुआत विजय सिंह राठौड़ ने 1978 में की थी. 4 दशक बाद, इस दुकान से हॉट डॉग बेचकर राठौड़ को 3 करोड़ का मुनाफ़ा हुआ और UberEats India से अवॉर्ड भी मिला.
ज़िन्दगी में देखे कई उतार-चढ़ाव
विजय सिंह राठौड़, दुकान खोलने से पहले कई तरह के छोटे-मोटे काम करते थे. उनको और उनके परिवार को कई बार भूखे पेट सोना पड़ा. राठौड़ के पिता मज़दूरी का काम करते थे और एक रसोइया थे. इंदौर में ही एक छोटे से घर में राठौड़, अपने 7 भाई-बहनों के साथ बड़े हुए. उनकी बहनों की तो शादी हो गई, लेकिन राठौड़ और उनके 2 बड़े भाई परिवार की मदद करने के लिये काम-काज करते रहे. 8 साल की उम्र से ही राठौड़ ने काम शुरू कर दिया था और उन्होंने डेढ़ साल तक गवर्मेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, इंदौर की कैंटीन में काम किया. बिना थके उन्होंने लाखों छात्रों को चाय, ब्रेड ऑमलेट परोसा.
छात्र देश का उज्जवल भविष्य हैं. खाने से मिलनी वाली ताकत से ही वो अच्छे से पढ़ेंगे और मैं ये सुनिश्चित करता कि जो भी कैंटीन में आये वो पेटभर खाकर ही जाये. मेरा ब्रेड ऑमलेट छात्रों के बीच मशहूर था क्योंकि मैं कभी पाव के साथ अंडा देता तो कभी ब्रेड के साथ. कुछ छात्रों ने इस डिश का नाम बैंजो (Banjo) रख दिया और ये नाम मेरे साथ रह गया.
-विजय सिंह राठौड़
11 साल की उम्र में खोली दुकान
11 साल की उम्र में राठौड़ ने अपनी दुकान खोलने की सोची और 56 दुकान क्षेत्र में दुकान किराये पर ली. इंदौर में ज़्यादातर दुकानें पोहा जलेबी, समोसे कचौड़ियां बेचती थी और राठौड़ ने कुछ अलग करने की सोची. राठौड़ भीड़ से अलग कुछ परोसना चाहते थे और जब उन्होंने दुकान खोली थी तब समोसा-कचौड़ी बनाने का ख़र्च काफ़ी ज़्यादा था. राठौड़ ने अपनी मां से आलु टिक्की बनाना सीखा और राठौड़ ने उसे ब्रेड में भरकर घी में सेंका और Hot Dog नाम दे दिया. ख़रीददारों का ध्यान खींचने के लिये ऐसा किया और राठौड़ का आईडिया कारगर साबित हुआ. हालांकि, राठौड़ ने कभी Hot Dog चखा नहीं था.
मुझे Hot Dog नाम कि डिश के बारे में पता था क्योंकि शहर में एक ऐसा थियेटर था जहां सिर्फ़ अंग्रेज़ी फ़िल्में दिखाई जाती थी. उनके कैंटीन में Hot Dog स्नैक मिलता था. 70 के दशक में थियेटर बंद हो गया और Hot Dog भी बंद हो गया.
-विजय सिंह राठौड़
70 के दशक में राठौड़ ने चिकन और मटन Hot Dog भी बनाये. शुरुआत में वेज हॉट डॉग 50 पैसे का और नॉन-वेज हॉट डॉग 75 पैसे का बिकता था. उस दौर में लोग अपने उपनाम पर दुकान का नाम रखते थे, जैसे- जैन स्वीट शॉप्स, सिंह समोसा स्टॉल्स. उन्हें लगा ‘राठौड़ हॉट डॉग’ से लोगों का ध्यान उनकी दुकान की तरफ़ नहीं जायेगा और उसके परिवारवाले भी उपनाम के साथ अंडा और मीट बेचने के ख़िलाफ़ होंगे. एक अंग्रेज़ी फ़िल्म पोस्टर से प्रभावित होकर राठौड़ ने अपने स्टॉल का नाम Johny Hot Dog रखा.
2018 में शुरू हुई ऑनलाइन सर्विस
2018 में Johny Hot Dog की क़िस्मत बदली. राठौड़ के सबसे छोटे बेटे, हेमेंद्र सिंह राठौड़ ने बिज़नेस जॉइन किया. हेमेन्द्र ने Johny Hot Dog को UberEats पर रेजिस्टर करवाया और लोग ऑनलाइन ऑर्डर करने लगे. रोज़ाना कम से कम 100 ऑर्डर मिलने लगे और राठौड़ रोज़ाना 30 रुपये के 4000 हॉट डॉग बेचने लगे!
विजय सिंह राठौड़ की कहानी हर उस शख़्स के लिये प्रेरणा है जो कुछ अलग करना चाहते हैं, लीक से हटकर अपना नाम कमाना चाहते हैं.