ये दुनिया भी अजीबो-ग़रीब है. किसी को दूसरों पर अन्याय करने में मज़ा आता है, तो किसी को दूसरों से प्रेम व ज़रूरतमंदों की मदद करना अच्छा लगता है. वैसे इस मतलबी दुनिया में भले इंसानों का आंकड़ा बहुत कम है. इसलिए, अगर आप आप सक्षम हैं, तो किसी ज़रूरतमंद की सहायता अवश्य करें. आइये, आपको मिलवाते हैं इंसानी रूप में कुछ फ़रिश्तों से, जिनके जीवन का एक बड़ा मक़सद दूसरों की मदद करना है.
1. जयश्री राव

72 साल की जयश्री राव ने मात्र 18 साल की उम्र में ग्रामपरि नाम की एक एनजीओ की शुरुआत की थी. कहते हैं कि इसके लिए उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई यानी ग्रेजुएशन तक छोड़ दिया था. लगभग दस सालों तक जयश्री राव इस एनजीओ के साथ जुड़ी रहीं. लेकिन, बाद वो अपने पति के साथ इंग्लैंड चली गईं. 1982 में जब वो भारत (बेंगलुरु) लौटकर आईं, तो उन्होंने अपने पति के साथ ‘जेआर राव एंड कंपनी’ की शुरुआत की. वहीं, 2007 में उन्होंने अपनी कंपनी बेच दी और अपने एनजीओ के काम में लग गईं. जयश्री अपने एनजीओ के ज़रिए 1.22 लाख ग़रीब गांववालों की मदद कर चुकी हैं.
2. लंगर बाबा

जगदीश आहूजा लंगर बाबा के नाम से जाने जाते थे. अब वो इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन वो जो लोगों के लिए काम करके गए हैं, उसकी वजह से वो हमेशा याद किये जाएंगे. कहते हैं कि जगदीश आहूजा प्रतिदिन 2500 मरीज़ों व ग़रीबों को अपने लंगर के ज़रिए खान खिलाते थे. कहते हैं कि इस काम के लिए उन्होंने अपनी 1.5 करोड़ की संपत्ति तक बेच दी थी. अपनी अंतिम सांस तक उन्होंने ये काम जारी रखा.
3. कर्नाटक के पाशा ब्रदर्स

इस सूची में कर्नाटक के पाशा ब्रदर्स (तजाम्मुल पाशा और मुजाम्मिल पाशा) भी शामिल हैं. ये कोलार ज़िले के दो व्यापारी भाई हैं. कहते हैं कोरोना काल में इन्होंने ग़रीबों को खाना खिलाने के लिए अपनी ज़मीन 25 लाख में बेच दी थी. इन्होंने इस दौरान हज़ारों लोगों को खाना खिलाया था.
4. खैरा बाबा

बाबा करनैल सिंह खैरा बाबा के नाम भी जाने जाते हैं. ये महाराष्ट्र के यवतमाल एनएच-7 पर अपना लंगर चलाते हैं. करोना काल में इनके लंगर ने ग़रीबों की ख़ूब मदद की. कहते हैं ये अब तक 30 लाख ग़रीबों को खाना खिला चुके हैं. जानकर हैरानी होगी कि इनके लंगर में इंसानों के साथ-साथ जानवर (कुत्ते-बिल्ली) भी खाना खाते हैं.
5. ऑटो टी राजा

टी राजा ने 1997 में एक छोटी-सी जगह में “न्यू आर्क मिशन ऑफ इंडिया” की शुरुआत की थी. इस संस्था के ज़रिए टी राजा सड़कों पर रहने वाले ग़रीबों की मदद करते हैं. इस काम को करते-करते इन्हें 20 साल हो चुके हैं. इस संस्था में डॉक्टर्स और नर्सों की एक टीम भी है. साथ ही इन्होंने ‘Home for Hope’ की शुरुआत भी की, जिसमें लगभग 800 ग़रीब रहते हैं. इसमें अनाथ बच्चे भी रहते हैं.
6. महेश सवानी

गुजरात के महेश सवानी एक हीरे के व्यापारी हैं. इन्होंने अब तक 4000 ग़रीब परिवार की लड़कियों की शादी करवा चुके हैं. इनकी अपनी कोई बेटी नहीं हैं बस दो बेटे हैं.
7. भूले भटके तिवारी

राजाराम तिवारी को भूले भटके तिवारी भी कहा जाता है. ये भूले भटके लोगों को उनके परिवार से मिलाने का काम करते हैं. कहते हैं कि 18 वर्ष की उम्र में इन्होंने कुंभ के मेले में परिवार से बिछड़ी एक बूढ़ी औरत को उनके परिवार से मिलाया था. इसके बाद इसी काम को राजाराम जी ने अपना लक्ष्य बना लिया. राजाराम जी की संस्था का नाम भूले भटके शिविर है, जो कुंभ में गुम हुए लोगों को उनके परिवार से मिलाने का काम करती है. अब तक इस संस्था ने 25 हज़ार भटके लोगों को उनके परिवार से मिलाने का काम किया है.