महामारी के चलते स्कूल-कॉलेज सब बंद पड़े हैं. ऐसे में हर जगह ऑनलाइन क्लासेज़ के द्वारा छात्रों की पढ़ाई को आगे बढ़ाया जा रहा है.  

मगर क्या हर छात्र के पास इंटरनेट और फ़ोन की सुविधा है? क्या देश के हर गली-कस्बे तक इंटरनेट की सुविधा पहुंच रही है?  

मगर क्या हर छात्र के पास इंटरनेट और फ़ोन की सुविधा है? क्या देश के हर गली-कस्बे तक इंटरनेट की सुविधा पहुंच रही है?  

वजह, ऑनलाइन क्लास लेने के लिए उसके गांव में इंटरनेट सिग्नल नहीं आता है जिसके चलते वो साइकिल से 2-3 घंटे की दूरी तय कर अपने एक रिश्तेदार के यहां चेरपाल जाता है.  

सुखलाल का कहना है, ‘ये पहली जगह है जहां मेरे फ़ोन पर कोई ढंग का सिग्नल आता है. मेरे गांव में तो कोई नेटवर्क ही नहीं है.’ 

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7 अप्रैल को छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग ने ‘पढ़ाई तुम्हार द्वार’ नाम से एक ऑनलाइन पोर्टल चालू किया था. इस पोर्टल के लिए 20 लाख बच्चों, 2 लाख टीचर (सरकारी और गैर-सरकारी दोनों) ने रजिस्टर किया था.  

इस पोर्टल में बच्चों की पढ़ाई के लिए टीचर और SCERT द्वारा कई वीडियोज़ डाले गए हैं.  

मगर एक ऐसा राज्य जहां इंटरनेट और मोबाइल साधन जैसी चीज़ों की भारी कमी है, वहां लोगों के लिए ये पोर्टल किसी भूल-भुलैया से कम नहीं है.  

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राज्य के अलग-अलग कोने में लोगों को काफ़ी तकलीफ़ें हो रही हैं.  

बलरामपुर जिले के गांव मुरका में 500 लोगों की आबादी के बीच मात्र 3 स्मार्ट फ़ोन है.  

वहीं कुछ परिजनों का ये कहना है कि न तो वो पढ़े लिखे हैं और न ही उनके पास फ़ोन है, ऐसे में वो अपने बच्चे को कैसे पढ़ाए.  

कुछ घरों में जहां फ़ोन है वहां के हालात भी कुछ ठीक नहीं है. बीजापुर शहर में कक्षा 3 में पढ़ने वाली आशा को फ़ोन तो मिल जाता है लेकिन कभी उस फ़ोन पर किसी का फ़ोन आ जाता है तो कभी उसका भाई उसका छोटा भाई परेशान करने लगता है. इतना ही नहीं उसकी ऑनलाइन क्लास में मात्र 3 बच्चे ही होते हैं.  

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आलोक शुक्ला ने ऑनलाइन शिक्षा की सीमाओं को स्वीकार करते हुए कहा कि, ‘कई ऐसी परियोजनाएं चालू की हैं जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी ख़राब है. हम ऑडियो-आधारित कक्षाओं पर काम कर रहे हैं जो कॉल सेंटरों के माध्यम से चलाए जाएंगे जहां छात्र कॉल कर सकते हैं. हम मोबाइल स्कूलिंग के विकल्प को भी देख रहे हैं, जहां शिक्षक हमारे द्वारा प्रदान किए गए स्कूल उपकरण के साथ, अपने क्षेत्र के गांवों का साप्ताहिक दौरा कर सकते हैं.’ 

इन प्रयासों के बावजूद, छत्तीसगढ़ में, जहां लगभग 4.5 लाख प्रवासी मज़दूर लौट चुके हैं, विशेषज्ञ महामारी के परिणामस्वरूप ड्रॉप-आउट दरों के बारे में भी चिंता करते हैं.