साल 1947 में राजा हरी सिंह के स्वतंत्र रहने के फ़ैसले से लेकर, आज जम्मू-कश्मीर का एक केंद्र शासित प्रदेश बनने तक की पूरी कहानी. देश की राजनीति के चलते इस राज्य ने समय-समय पर कई बुरे दौर देखे. शांत कश्मीर घाटी आतंकवाद का गढ़ कब बन गयी लोगों को इसका अहसास ही नहीं हुआ. अब राजनीति के चलते ही कश्मीर पर एक ऐसा फै़सला लिया गया है, जो विवादों में है.  

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आईये जानते हैं कब-कब जम्मू-कश्मीर के लिए अहम फ़ैसले लिए गए-  

2014-2018: अलग-अलग विचारधारा होने के बावजूद पीडीपी और बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए गठबंधन किया. मुफ़्ती मोहम्मद सईद सीएम बने, जबकि मृत्यु के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ़्ती राज्य की पहली महिला सीएम बनीं. इस कार्यकाल के दौरान आतंकवादी बुरहान वानी की हत्या से घाटी में अशांति पैदा हुई और गठबंधन टूट गया. आख़िरकार महबूबा मुफ़्ती ने सीएम पद से 2018 में इस्तीफ़ा दे दिया.  

2004-2014: साल 2006 में जम्मू-कश्मीर के हालातों को लेकर तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़ के बीच न्यूयॉर्क में एक बैठक हुई. जबकि साल 2008 में अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि हस्तांतरण करने को लेकर घाटी के हालात गड़बड़ा गए. इसके बाद साल 2010 में जम्मू-कश्मीर के हालातों को लेकर तीन वार्ताकारों दिलीप पडगांवकर, एम. एम. अंसारी, राधा कुमार की नियुक्ति की गई थी. 

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अप्रैल 2003: तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने जम्मू-कश्मीर का दौरा करने के बाद लोकसभा में जोरदार भाषण देते हुए कहा ‘मैं साफ़ तौर पर कह दूं कि किसी भी समस्या को बंदूक से नहीं बल्कि भाईचारे से ही सुलझाया जा सकता है. अगर हम इन्सानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के इन तीन सिद्धांतों के साथ आगे बढ़ें तभी कश्मीर के मुद्दों को हल किया जा सकता है’.  

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साल 1999: मई से जुलाई महीने के बीच पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों ने नियंत्रण रेखा से घुसपैठ की थी, जिसने बाद में कारगिल युद्ध का रूप लिया. इससे पहले दोनों देशों के बीच 1947, 1965 और 1971 के युद्ध हुए थे, जिनमें से 1971 का युद्ध कश्मीर को लेकर नहीं लड़ा गया था.  

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साल 1990: साल 2008 में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक रिपोर्ट में कहा कि 1989 से 1990 के बीच उग्रवादियों ने कुल 209 कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया. जिनमें से अकेले 1990 में 109 कश्मीरी पंडितों को मारा था. यहीं से कश्मीरी पंडितों के पलायन का दौर शुरू हुआ. इसके बाद लाखों हिन्दुओं ने कश्मीर घाटी को छोड़ दिया.  

जनवरी 1990: केंद्र सरकार ने पूर्व राज्यपाल जगमोहन को फिर से नियुक्त किया. लोगों के घरों पर छापे पड़ने लगे, तो श्रीनगर के गवक्कल पुल पर भीड़ ने इसका विरोध किया इस पर सीआरपीएफ़ के जवानों ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर फ़ायरिंग शुरू कर दी. इस फ़ायरिंग में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद फ़रवरी में राज्य को राज्यपाल के अधीन कर दिया गया.  

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साल 1989: इतिहासकार विक्टोरिया स्कोफ़ील्ड ने अपनी किताब ‘Kashmir in Conflict’ में इसे कश्मीर में विद्रोह की वास्तविक शुरुआत का वर्ष बताया. इस घाटी में पहली बार उग्रवादी हमले होने शुरू हुए, कई उग्रवादी समूह उभरे. इसी दौरान मुफ़्ती मोहम्मद सईद को केंद्रीय गृह मंत्री नियुक्त किए जाने के कुछ दिनों बाद ही आतंकियों ने उनकी बेटी रूबैया का अपहरण कर लिया गया था. 

23 मार्च, 1987: इस दिन को चुनावों में व्यापक धांधली के रूप में देखा जाता है. साथ ही इसे उग्रवाद के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में भी देखा गया. साल 1984 में राज्य के सीएम फ़ारूक अब्दुल्ला को हटाकर (कांग्रेस के समर्थन से) उनके बहनोई को सीएम बना दिया गया. जबकि बाद में 1986 के चुनावों के बाद फ़ारूक अब्दुल्ला फिर से कांग्रेस के समर्थन सीएम बने. 

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24 फ़रवरी, 1975: इंदिरा गांधी-शेख अब्दुल्ला समझौते के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत का एक घटक इकाई बताया गया है. इस दौरान भारत का जम्मू और कश्मीर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 द्वारा शासन जारी रहेगा. 

14 मई, 1954: राष्ट्रपति के आदेश ने अनुच्छेद 35A की शुरुआत की, जिसमें स्थायी निवासियों के संबंध में राज्य विधायिका द्वारा पारित कानूनों को इस आधार पर चुनौती दी गई कि वे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहे थे. इसके तहत जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्री बना दिया गया.  

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9 अगस्त, 1953: जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला को गिरफ़्तार किया गया, उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया. उनकी गिरफ़्तारी का आदेश तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू ने दिया था. उन पर आरोप लगाया गया था कि वो कैबिनेट का विश्वास खो चुके हैं. इसके बाद शेख अब्दुल्ला को 11 साल की जेल हुई. बाद में कांग्रेस को उनके साथ समझौता करना पड़ा.  

26 जनवरी, 1950: इसी दिन भारतीय संविधान लागू हुआ था. राज्य सरकार की सहमति और जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के समर्थन के साथ प्रावधान (अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 के अलावा) जो राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार कुछ संशोधनों पर लागू हो सकते हैं.  

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26 अक्टूबर, 1947: जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने अंततः भारत के साथ ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेसेशन’ पर हस्ताक्षर किए. पाकिस्तान के समर्थन से बने उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत के आदिवासियों के दबाव में हरि सिंह को ये निर्णय लेना पड़ा. महाराजा ने भारत से सैन्य मदद मांगी.  

15 अगस्त, 1947: भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने ब्रिटिश भारत को भारत और पाकिस्तान में विभाजित किया. इस दौरान रियासतों को तीन विकल्प दिए गए – या तो स्वतंत्र रहिये या भारत के साथ मिल जाइये या फिर पाकिस्तान का हिस्सा बन जाइये, लेकिन जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने स्वतंत्र रहने का विकल्प चुना. 

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लद्दाख को जम्मू कश्मीर से अलग कर दिया गया है. अब जम्मू कश्मीर विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश होगा, जबकि लद्दाख बिना विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश रहेगा.