कोरोना वायरस के ख़तरे को देखते हुए देशभर में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की गई हैं. लॉकडाउन के चलते यातायात के सभी साधन पूरी तरह से बंद के होने के बाद कई ग़रीब दिहाड़ी मज़दूर सैकड़ों मील पैदल चलकर अपने घरों तक पहुंच पाए हैं. 

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इन्हीं में से एक जम्मू-कश्मीर के रहने वाले 30 वर्षीय मोहम्मद आरिफ़ भी हैं. मुंबई के बांद्रा स्थित तुला टावर में गार्ड की नौकरी करने वाला आरिफ़ 60 वर्षीय बीमार पिता से मिलने साइकिल से 2100 किलोमीटर दूर जम्मू के राजौरी स्थित अपने घर के लिए निकल पड़े हैं.

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दरअसल, मुंबई में फंसे आरिफ़ को 1 अप्रैल को पता चला कि ब्रेन स्ट्रोक के चलते उनके पिता की हालत गंभीर है. लॉकडाउन के चलते घर पहुंचने के लिए जब कोई साधन नहीं मिला, तो आरिफ़ ने साइकिल से ही घर निकलने की योजना बनाई. इस दौरान आरिफ़ ने कई लोगों से मदद भी मांगी, लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ. इसके बाद उसने अपने एक साथी गार्ड को 500 रुपये देकर उसकी साइकिल ले ली. 

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मैं किसी भी तरह से अपने बीमार पिता के पास पहुंचना चाहता हूं. फिर चाहे इसके लिए मुझे कितने भी दिन साइकिल क्यूं न चलाना पड़े. मैं 2 अप्रैल की सुबह 10 बजे मुंबई से निकल गया था. इस दौरान रास्ते में कई पुलिसकर्मी मिले, रोकने पर मैंने उन्हें अपनी परेशानी बताई. किसी से मदद तो नहीं मिल पाई, लेकिन उन्हें किसी ने रोका भी नहीं. मुंबई से 800 रुपये लेकर निकला था अब सिर्फ़ 600 रुपये ही बचे हैं.
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इस बीच जब CRPF के जवानों को आरिफ़ के बारे में पता चला तो वो मददगार बनकर सामने आए. इसके बाद सबसे पहले CRPF के कश्मीर स्थित ‘मददगार हेल्पलाइन 14411’ की कार्रवाई के बाद आरिफ़ के पिता वज़ीर हुसैन को राजौरी से हेलिकॉप्टर द्वारा जम्मू स्थित सिटी हॉस्पिटल लाया गया. इसके बाद जवानों ने आरिफ़ को फ़ोन किया और पांच राज्यों में फैले CRPF जवानों के ज़रिए उस तक मदद पहुंचाई गई. 

इंडिया टुडे के मुताबिक़, बीते रविवार को गुजरात के वडोदरा में आरिफ़ को खाने के पैकेट के साथ ही 2,000 रुपये, सैनिटाइज़र, मास्क और कुछ अन्य सामान भी दिया गया. 

पीटीआई से बातचीत में CRPF जम्मू-कश्मीर ज़ोन के ADG जुल्फ़िक़ार हसन का कहना था कि, मीडिया में आरिफ़ की ख़बर देखकर हमारी हेल्पलाइन टीम तुरंत कार्रवाई में जुट गई है. इस दौरान मुंबई से गुजरात तक की यात्रा कर चुके आरिफ़ को गुजरात पुलिस की मदद से ट्रक द्वारा राजस्थान के जोधपुर तक पहुंचाया जायेगा. हमने इस दौरान आरिफ़ से लगातार बात करने और उसे प्रेरित करने के लिए उसके गांव के एक CRPF कांस्टेबल को भी तैनात कर रखा है. 

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साइकिल चलाकर बुरी तरह से थक चुके आरिफ़ अगले कुछ दिनों में अपने पिता से मिलने जम्मू पहुंचने को बेताब हैं. पेडलिंग से आरिफ़ के पैरों में फ़फ़ोले पड़ चुके हैं, बावजूद इसके उन्होंने अब तक हिम्मत नहीं हारी है. 

आरिफ़ का कहना है कि 15 साल मेरी मां इस दुनिया से चल बसी थीं. मेरे सब कुछ अब मेरे पिता ही हैं. मैं बस उन्हें एक बार देखना चाहता हूं. मुझे पता है उनकी हालत बेहद गंभीर है, लेकिन मैं जब तक घर नहीं पहुंच जाता तब तक नहीं रुकूंगा नहीं. मदद के लिए मैं CRPF का आभारी हूं. 

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हम उम्मीद करते हैं इस ख़ूबसूरत कहानी का अंत सुखद हो. आरिफ़ के पिता जल्द ठीक हो जाएं और वो उनसे मिल पाए.