हाल ही में JNU के प्रोफ़ेसर अतुल जोहरी के ख़िलाफ़ कई फ़ीमेल स्टूडेंट्स ने यौन प्रताड़ना की कंप्लेंट करते हुए सस्पेंशन की मांग की थी. इन सभी छात्राओं का आरोप है कि अतुल जोहरी ने उन्हें कई दफ़ा बिना इजाज़त छुआ है और उन्हें कई दफ़ा अपशब्द भी कहे हैं. JNU एडमिनिस्ट्रेशन की तरफ़ से अभी तक कोई भी कार्यवाही न होने के विरोध में कई महिला छात्राओं और प्रोफ़ेसर्स ने शनिवार को INA मार्किट से संसद की तरफ़ प्रोटेस्ट मार्च किया. और इसी दौरान दिल्ली पुलिस ने वो क़दम उठाये, जो किसी भी पुलिस फ़ोर्स को शोभा नहीं देगा.
इन छात्राओं को रोकने के लिए, दिल्ली पुलिस ने वॉटर कैनन और लाठीचार्ज शुरू किया और इसी दौरान एक महिला रिपोर्टर और महिला कैमरामैन के साथ जो किया, वो लोकतंत्र और इंसानियत के लिए शर्मसार करने वाला था. दिल्ली पुलिस की महिला टीम ने रिपोर्टर शीना के कपड़े फाड़ कर, उनके साथ बदतमीज़ी करने की कोशिश की.
शीना के साथ इससे ज़्यादा बुरा हो सकता था, अगर उनकी मित्र उन्हें छुड़ाने न आती. शीना ने अपनी पोस्ट में इस पूरे वाकये का ज़िक्र किया है:
इस हादसे के बाद कई मीडिया हाउज़ के कैमरामेन ने प्रोटेस्ट जताते हुए दिल्ली पुलिस के दफ़्तर के बाहर अपने कैमरे रख दिया.
इस वाकये के तुरंत बाद दिल्ली पुलिस ने माफ़ी मांगते हुए लंबी-चौड़ी सफ़ाई दी. सफ़ाई में उनका कहना है कि वो मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानते हैं और ऐसा उनसे अनजाने में हुआ. उन्हें लगा शीना कोई छात्रा हैं. विडंबना इस बात की है कि उस स्थिति में वहां पर शीना की जगह अगर कोई और छात्रा होती, तो क्या वो उसके साथ किये इस बद्तमीज़ी को सही मानते?
In this situation, one female journalist has given a complaint of molestation and the same will be enquired into by the vigilance branch for further action.
— Delhi Police (@DelhiPolice) March 23, 2018
छात्रों और Teachers के ख़िलाफ़ पुलिस ने दंगे फैलाने का मामला दर्ज किया है.
शीना ठाकुर के मुताबिक़, वो इस केस को वीमन कमीशन तक ले जाने की मांग कर रही हैं.
किसी भी लोकतंत्र का बुनियाद उसके लोगों द्वारा अपने विचारों को रखने में है. जितनी सहजतापूर्वक वो अपनी बातें शांतिपूर्ण तरीके से रख पाते हैं, उतना ही सफ़ल वो लोकतंत्र माना जाएगा. अफ़सोस यहां पर भारतीय लोकतंत्र फ़ेल हुआ है.
पुलिस को ब्रिटिश राज के समय से पॉलिटिक्स अपने टूल की तरह इस्तेमाल करती रही है और इसमें कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है. पुलिस को जनसेवक की उपाधि इसीलिए मिली है ताकि वो जनता की संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए अपना काम करे. हाल-फ़िलहाल में ऐसा कोई बदलाव नहीं आया है.