जस्टिस रंजन गोगोई ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें शपथ दिलाई. जस्टिस रंजन गोगोई ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की जगह ली है. सितंबर माह में पूर्व CJI दीपक मिश्रा ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में जस्टिस रंजन गोगोई का नाम राष्ट्रपति के पास भेजा था, जिस पर उन्होंने मुहर लगा दी थी. जस्टिस गोगोई का कार्यकाल 13 महीने का होगा. इसके साथ ही वो पूर्वोत्तर से इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले मुख्य न्यायाधीश हैं.

कौन हैं रंजन गोगोई?

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रंजन गोगोई असम के पूर्व मुख्यमंत्री केशव चंद्र गोगोई के बेटे हैं. 18 नवंबर, 1954 को असम में जन्मे न्यायमूर्ति गोगोई ने डिब्रूगढ़ के डॉन बोस्को स्कूल से शिक्षा हासिल करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज से इतिहास में ग्रेजुएशन किया. साल 1978 में वकालत करने के बाद रंजन गोगोई ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शरू की.

रंजन गोगोई का करियर

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रंजन गोगोई को 28 फरवरी, 2001 को गुवाहाटी उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. जबकि 9 सितंबर, 2010 को उनका तबादला पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में कर दिया गया. 12 फ़रवरी, 2011 को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. जबकि 23 अप्रैल, 2012 को उन्हें उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया.

जस्टिस रंजन गोगोई के महत्वपूर्ण फ़ैसले

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– पूर्व चीफ़ जस्टिस पी सदाशिवम, जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई और जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने ही ईवीएम और बैलेट पेपर में नोटा का विकल्प देने का आदेश दिया था.

– असम में ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ मामला, सांसदों और विधायकों की विशेष तौर पर सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन.

– सौम्या मर्डर केस मामले में उन्होंने रिटायर्ड जज मार्कंडेय काटजू को अदालत में बुला लिया था, क्योंकि उन्होंने फ़ेसबुक पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की निंदा की थी. जिसके बाद काटजू ने माफ़ी मांगी थी.

– राजीव गांधी हत्याकांड के मुजरिमों की उम्रकैद की सज़ा में कमी और लोकपाल की नियुक्ति जैसे कई अहम फ़ैसले दिये.

रंजन गोगोई विवाद

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जस्टिस रंजन गोगोई ने इसी साल जनवरी में जस्टिस जे. चेलामेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ़ के साथ मिलकर भारतीय न्यायपालिका के भीतर फ़ैली अव्यवस्था को लेकर सीजेआई के कामकाज पर सवाल उठाए थे. इस दौरान उन्होंने कहा था, ‘न्यायपालिका के संस्थान को आम लोगों के लिए सेवायोग्य बनाए रखने के लिए सुधार की नहीं, क्रांति की ज़रूरत है’.