मध्‍य प्रदेश में सियासी खींचतान के बीच कांग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है. इस सियासी दांवपेंच के बीच अब में मध्‍य प्रदेश की कमलनाथ सरकार का भविष्य आधर में लटक गया है.

पिछले 18 सालों से कांग्रेस पार्टी में रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस फ़ैसले से हर कोई हैरान है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्‍तीफ़े के तुरंत बाद उनके समर्थक विधायकों ने ताबड़तोड़ इस्तीफ़ा देना शुरू कर दिया है, इस्तीफ़ा देने वाले विधायकों की संख्या अब 22 हो गई है. भोपाल से लेकर दिल्ली तक कांग्रेस खेमे में भूचाल सा आ गया है, विधायकों के इस्तीफ़े के बाद कमलनाथ सरकार ख़तरे में आ गई है.

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इसे संयोग ही कहें या फिर सियासी दांवपेंच ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से 10 मार्च को इस्तीफ़ा दिया है. इसी दिन उनके पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया की 75वीं जयंती भी है.

कौन हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया? 

मध्‍य प्रदेश के सिंधिया राजघराने के वारिस ज्योतिरादित्य सिंधिया का जन्म 1 जनवरी 1971 को मुंबई में हुआ था. साल 1993 में उन्होंने हावर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र की डिग्री हासिल की. जबकि बाद में साल 2001 में उन्होंने ‘स्टैनफ़ोर्ड ग्रुजुएट स्कूल ऑफ़ बिज़नेस’ से एमबीए भी किया. साल 1984 ज्योतिरादित्य की शादी बड़ौदा के गायकवाड़ घराने की बेटी प्रियदर्शिनी से हुई है. उनके एक बेटा महा आर्यमान और बेटी अनन्याराजे हैं.

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कांग्रेस के युवा नेताओं में से एक और राहुल गांधी के क़रीबी ज्योतिरादित्य मध्य प्रदेश की राजनीति में जाना-पहचाना नाम है. सिंधिया राजघराने के तीसरी पीढ़ी के नेता ज्योतिरादित्य की अपने गढ़ में आज भी गहरी पकड़ है.

ज्योतिरादित्य को विरासत में मिली सियासत   

ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक सफ़र की बात करें तो उन्‍हें राजनीति विरासत में मिली. उनके पिता माधवराज सिंधिया कांग्रेस के कद्दावर नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. 30 सितंबर 2001 को विमान हादसे में स्व. माधवराव सिंधिया मौत हो गई थी. पिता की मौत के बाद विदेश से लौटे ज्योतिरादित्य ने राजनीति में उतरने का फ़ैसला किया.

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लगातार 4 बार रहे कांग्रेस के सांसद 

पिता की मौत के बाद ज्योतिरादित्य साल 2002 में पहली बार उनकी पारंपरिक गुना सीट से चुनाव लड़े और लोकसभा पहुंचे. इसके बाद साल 2004 में भी उन्होंने इसी सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. सिंधिया ने यूपीए सरकार में पहली बार 2007 में केंद्रीय राज्य मंत्री का पदभार संभाला. जबकि यूपीए 2 में उन्हें साल 2012 में केंद्रीय राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार मिला. इसके बाद साल 2014 के लोकसभा चुनाव मोदी लहर के बावजूद उन्होंने गुना में जीत दर्ज की.

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आख़िर कांग्रेस छोड़ने की पीछे की वजह क्या है? 

ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से खटपट उसी दिन से शुरू हो गयी थी जब पार्टी आलाकमान ने मध्‍य प्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर कमलनाथ का नाम आगे किया था. दरअसल, सिंधिया चाहते थे कि इस बार किसी युवा को ये मौक़ा दिया जाए लेकिन कमलनाथ की गांधी परिवार से नज़दीकी के चलते उन्हें सीएम बना दिया गया. पिछले कुछ समय से सिंधिया मध्‍य प्रदेश में कमलनाथ सरकार की लगातार आलोचना करते आ रहे हैं.

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ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस्तीफ़े में कहा है कि वो अपने लोगों, कार्यकर्ताओं और राज्य के लिए कांग्रेस में रहकर काम नहीं कर पा रहे हैं.

वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यमान ने ट्वीट कर कहा- मुझे अपने पिता पर गर्व है कि उन्होंने अपने लिए स्टैंड लिया. एक विरासत छोड़ने के लिए हिम्मत की ज़रूरत होती है. इतिहास ख़ुद बताता है कि हमारा परिवार कभी सत्ता का भूखा नहीं रहा. जनता से किए वादे के मुताबिक़ हम भारत और मध्यप्रदेश में प्रभावी बदलाव लाएंगे.