जो लोग शारीरिक रूप (दिव्यांग) से असमर्थ होते हैं उनको जीवन में बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. कई बार ऐसे लोग अपने सपने भी पूरे नहीं कर पाते हैं. इनकी पढ़ाई-लिखाई में भी बहुत सी बाधाएं आती हैं. कोरोना महामारी ने तो ऐसे लोगों की समस्याएं और भी बढ़ा दी हैं. लेकिन अगर हौसले बुलंद हों और कुछ कर गुज़रने की चाह तो हर बाधा को पार किया जा सकता है.
आज हम आपको ऐसी है एक दिव्यांग लड़की स्टोरी बताएंगे. वो न चल सकती है न बोल सकती है न ही ठीक से सुन सकती है. इतनी सारी निज़ी दिक्कतों के बावजूद भी उसने दसवीं की परीक्षा में 500 में से 452 अंक हासिल कर अपने माता-पिता का नाम रौशन किया है.
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बात हो रही है कश्मीर के अनंतनाग के शांगस की रहने वाली ताबिया इक़बाल की. इन्होंने अपनी शारीरिक अक्षमता, कोरोना महामारी और कश्मीर में चल रही इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्याओं को हरा कर 10वीं की परीक्षा में 90 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं.
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ताबिया के पिता मोहम्मद इक़बाल ने बताया कि वो बचपन से ही मूक-बधीर हैं और 3 साल की उम्र से हड्डियों में कुछ कमी होने के चलते व्हीलचेयर से चलने को मज़बूर हैं. उन्होंने बताया कि वो सिर्फ़ होठों को पढ़ना ही जानती हैं इसलिए बचपन में उन्होंने ताबिया का दाखिला एक स्पेशल स्कूल में करवाया था.
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उन्होंने बताया कि बच्ची की हालत को देखते हुए प्रिंसिपल ने एक स्पेशल टीचर उनके घर पर ही भेजना शुरू कर दिया. इस तरह उनकी पढ़ाई शुरू हो सकी. टीचर ने भी ताबिया पर ख़ूब मेहनत की. वो बार-बार उनके लिए सबक को दोहराती थीं.
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ताबिया ने भी लगन से पढ़ाई की और नतीजा आपके सामने है. अपनी बेटी की इस उपलब्धी से इक़बाल बहुत ख़ुश हैं. ताबिया का सपना है कि वो एक डॉक्टर बने. इक़बाल साहब का कहना है कि वो बेटी के इस सपने को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.
ग़ौरतलब है कि लॉकडाउन के बीच जम्मू- कश्मीर में 10वीं की परीक्षा में 75132 विद्यार्थी बैठे जिनमें से 56386 विद्यार्थी सफ़ल रहे. पास हुए छात्रों में लड़कों का प्रतिशत 74.04, जबकि लड़कियों का 76.09 प्रतिशत रहा.