केंद्र सरकार ने भले ही स्कूली बच्चों को मिड-डे मील के लिए आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया हो, लेकिन देश के दुर्गम क्षेत्रों में आज भी कई स्कूल ऐसे हैं जहां मिड-डे मील के नाम पर फंड तो पहुंच रहा है, पर वो स्कूल सालों से बंद पड़े हैं. ऐसे में खाना न मिलने पर बच्चों को गिलहरी, चूहे, खरगोश और सुअर जैसे जानवरों तक का शिकार करना पड़ रहा है.

झारखंड के राजमहल हिल्स में मौजूद चूहा पहाड़ गांव में एक स्कूल तो मौजूद है, लेकिन सालों से इस स्कूल का कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है. कोई भी शिक्षक इस स्कूल में नहीं आता है और शिक्षकों की देखा-देखी छात्र भी इस स्कूल से दूरी बनाए हुए हैं.

इस बंद पड़े स्कूल के बारे में गांव के सरपंच मेसा पहा़ड़िया ने बताया कि जब ये स्कूल शुरु हुआ था, तब 50-60 बच्चे यहां पढ़ने आया करते थे. मगर जब शिक्षकों ने यहां आना बंद कर दिया, तो धीरे-धीरे बच्चों ने भी स्कूल में आना बंद कर दिया.

गांव की एक महिला शिखा परहेन ने बताया कि स्कूल के इंस्पेक्शन के लिए अधिकारी केवल पहाड़ी के आस-पास के स्कूलों में ही जाते हैं और वे उन स्कूलों का जायज़ा नहीं लेते, जो वर्षों से बंद पड़े हैं. झारखंड के कंज्यूमर्स अफ़ेयर मिनिस्टर सूर्य राय ने चूहा पहाड़ गांव के हालातों से अपना पल्ला झाड़ लिया. उन्होंने कहा कि मिड-डे मील चलाना उनका काम नहीं है और इसकी ज़िम्मेदारी मुख़्य रूप से गांव की कमेटी की है.

गौरतलब है कि 1995 में शुरु हुई मिड-डे मील योजना के दो मकसद थे. स्कूलों में बच्चों की हाज़िरी को बढ़ाना और दूसरा इन गरीब बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना है. मिड डे मील के लिए केंद्र और राज्य सरकारें 60:40 के अनुपात में फंड का खर्च उठाती हैं. वहीं नॉर्थ ईस्ट में यहीं आंकड़ा 90:10 हो जाता है. इस साल देश के 11 लाख स्कूलों के 10 करोड़ बच्चों के लिए 10,000 करोड़ का फंड निर्धारित किया गया है लेकिन भ्रष्टाचार और प्रशासन के लचीले रवैये के चलते कई बच्चे या तो भूखे सोने को मजबूर है या फिर इंफेक्शन और कुपोषण का शिकार हो रहे हैं.