अकसर लोग अच्छी नौकरी, घरेलू हालात और बेहतर ज़िन्दगी की आस में थोड़े स्वार्थी हो जाते हैं. ऐसे में वो दिल की कम और दिमाग की ज़्यादा सुनते हैं. बीते शनिवार को हैदराबाद की एक सीमेंट फ़ैक्ट्री में, 100 रुपये दिहाड़ी पर काम करने वाले Barnana Gunnaya की आंखों में खुशी के आंसू थे. मौका था इंडियन मिलिट्री अकादमी, देहरादून की पासिंग आउट परेड का और उनका बेटा Barnana Yadagiri आॅफ़िसर्स यूनिफ़ॉर्म में था.
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ये बेटा जिसने पैसों के लिए अपने पिता को मजदूरी और पोलियो ग्रस्त मां को साफ़-सफ़ाई करते देखा था, उसने अमेरिका की नौकरी छोड़ कर सेना के साथ काम करने का फैसला लिया.
बीते शनिवार Yadagiri को आई.एम.ए. से टेक्निकल ग्रैजुएट कोर्स में प्रथम स्थान अर्जित करने पर रजत पदक मिला. इससे उसका रास्ता आर्मी में इंजीनियरिंग यूनिट के लिए खुल गया.
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अंतर्राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, हैदराबाद से पढ़ने के बाद Yadagiri के पास अमेरिकी कंपनी Union Pacific Rail Road से आॅफ़र था, पर उसने वो ठुकरा दिया.
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Yadagiri ने TOI से बताया कि-
मेरे पिता एक साधारण व्यक्ति हैं. उन्हें लगा था कि आर्मी में जाना मतलब बतौर सैनिक ही होता है. उन्होंने मुझे कहा कि सेना के लिए अमेरिका की अच्छी खासी सॉफ़्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़ कर मैं गलती कर रहा हूं. इन सब के बाद भी मैंने पैसे को ज़्यादा तवज्जो नहीं दिया. मैं कॉर्पोरेट कंपनी में नौकरी कर के काफ़ी पैसे कमा सकता था, पर वहां मेरा दिल नहीं लगता. देश के लिए काम करके जो सुकून मिलता है, वो पैसों से नहीं मिल सकता.
Yadagiri जैसे ही देशभक्तों की हमें और ज़रूरत है, जो देश की उन्नति और सेना को मज़बूत बनाने में अपना योगदान दें.