ISIS दुनिया के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है. आए दिन इंसानियत को इस संगठन का निशाना बनना पड़ता है. अब तक लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई है.

कुछ लोगों के दिमाग़ में इस बात ने घर कर लिया है कि मुसलमान ही आतंकवादी होते हैं. हक़ीक़त ये है कि आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता और ये बात एक बार फिर साबित कर दी है लाखों शिया मुसलमानों ने.

शिया मुसलमानों ने अपनी जान ज़ोख़िम में डाल कर ISIS को खुली चुनौती दी है और एक March का आयोजन किया. इस March में औरतें, बच्चे, बूढ़े और पुरुष सभी शामिल थे.

पिछले हफ़्ते रविवार और सोमवार को Karbala में, Arbaeen के पाक़ दिन पर ये जुलूस निकाला गया. Arbaeen, Ashura के 40 दिन के शोक़ के बाद मनाया जाता है. ये शोक़ Prophet Mohammad के पोते Imam Hussein की मृत्यु का शोक़ है.

लाखों लोगों ने Imam Hussein को श्रद्धांजलि दी जिनकी मृत्यु 7वीं शताब्दी में हो गई थी.

ISIS ने शिया मुसलमानों को कई बार निशाना बनाया है. कुछ दिनों पहले भी Karbala में शिया मुसलमानों पर आत्मघाती हमला किया गया था, जिसमें 80 लोगों की जान गई थी. सिर पर मौत का ख़तरा होने के बावजूद लाखों मुसलमानों ने एकता दिखाई और ISIS के खिलाफ़ जुलूस निकाला.

प्रति वर्ष Arbaeen के ख़ास मौके पर जुलूस निकाला जाता था. पर इस वर्ष ISIS के खिलाफ़ एकजुटता और निडरता दिखाने के मकसद से भी जुलूस निकाला गया.

मुसीबत में तो पूरी इंसानियत है, पर इतनी सी बात भी दुनिया के बहुत से लोगों के समझ में नहीं आती. शिया मुसलमानों ने तो सिर्फ़ एक जुलूस निकाला, क्या पूरी दुनिया यूं ही एकजुट होकर आतंकवादियों का सामना नहीं कर सकती?

Source: Alternative News Network