दिवाली के मौक़े पर कोलकाता के बाज़ार चीन से आई आर्टिफ़िशियल लाइट्स(लड़ी) से भरे रहते हैं. लेकिन शहर के पास स्थित एक गांव के मिट्टी के दिये इन लाइट्स को कड़ी टक्कर देते हैं. ये गांव कोलकाता से 24 किलोमीटर दूर बारासात शहर में है. हर साल इस गांव से आए मिट्टी के दीयों और मूर्तियों की भारी डिमांड रहती है.
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इस गांव का नाम चलतबेरिया है. यहां पिछले 200 सालों से हिंदु-मुस्लिम मिलकर पूजा के लिए दिये बनाते आ रहे हैं. गांव के अधिकतर लोग मिट्टी के बर्तन बनाने का ही काम करते हैं. यहां पूरा साल मिट्टी के बर्तन बनाने अलावा कोई काम नहीं होता.
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लॉकडाउन में भी यहां का काम कभी बंद नहीं हुआ. लोगों ने अपने घर में रहकर दुर्गा-पूजा, दिवाली जैसे त्यौहारों के लिए घर में दिये-मूर्ती आदि बनाई थी.
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इन दोनों चीज़ों के अलावा यहां सुंदर-सुंदर गमले, पूजा के लिए मिट्टी से बनी थाली, फूलदान आदि भी बनाए जाते हैं.
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लॉकडाउन से पहले गांव की युवा पीढ़ी मिट्टी के बर्तन बनाने में बहुत कम दिलचस्पी लेती थी. लेकिन जब उनका काम बंद हो गया था तो वो भी इसे करने लग गए.
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हालांकि, इस गांव का नाम फ़ेमस नहीं है, लेकिन यहां के दिये-मूर्तियां दिल्ली, मुंबई, पटना, हैदराबाद, गुजरात, असम में भेजे जाते हैं.
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यहां के कुम्हारों के मुताबिक, लॉकडाउन में शुरुआती दो सप्ताह उन्हें कुछ परेशानियां उठानी पड़ी थीं. जैसे माल का ट्रांसपोर्ट न हो पाना और मिट्टी के दाम बढ़ना. लेकिन अब सब ठीक है.
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इनका कहना है कि दिवाली पर लोग मिट्टी के दिये जलाकर पूजा करना पसंद करते हैं. इसलिए इनकी मांग अधिक है.
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हालांकि, उन्हें चीन से आए दीयों से प्रतिस्पर्धा जारी रखने के लिए इसके दाम कुछ कम करने पड़े हैं. लेकिन फिर भी इनकी अच्छी कमाई हो जाती है. गांव वालों का कहना है कि वो ये काम कर बहुत ख़ुश हैं.
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