जहां एक तरफ लड़कियां आज हर क्षेत्र में अपना नाम कमा रही हैं और उनकों लेकर लोगों की सोच भी बदल रही है वहीं देश में आज भी कई जगहें हैं जहां लड़कियों की स्थिति ख़राब है. 

राजस्थान में आज भी कई लड़कियां बाल विवाह के हत्थे चढ़ जाती हैं.   

राजस्थान के अलवर में 35% से ज़्यादा माइनर गर्ल्स बाल विवाह का शिकार हो जाती हैं. ऐसी ही एक कहानी है इस बच्ची की. 

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राजस्थान में जहां हर दूसरी लड़की की शादी बहुत ही छोटी उम्र में हो रही थी, वहीं अलवर के हिंसला गांव में रहने वाली पायल के साथ भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा था. 

पायल 11 वर्ष की थी जब उसके माता-पिता उसकी शादी करवाने वाले थे. मगर पायल को जैसे ही इस बात का पता चला उसने तुरंत आवाज़ उठाना सही समझा. 

जब मुझे पता चला कि समाज के दवाब में आकर मेरे माता-पिता मेरी और मेरी बहन की शादी करवाने जा रहे हैं तो मैंने तुरंत मेरे स्कूल में कुछ कार्यकर्ताओं को इस बारे में बताया. वो सब को ‘बाल मित्र ग्राम’ नामक पहल के बारे में समझा रहे थे. उन लोगों ने बाल आश्रम ट्रस्ट की फ़ाउंडर सुमेधा कैलाश को इसके बारे में बताया. उनकी मदद से मैंने अपने परिवार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई. आख़िरकार, मेरे माता-पिता मान गए और शादी रद्द हो गई.   
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इस कामयाबी के बाद पायल ने अपनी जैसी और लड़कियों की भी मदद करना शुरू कर दिया. पायल ने बाल विवाह और घूंघट प्रथा का विरोध करना शुरू कर दिया. 

एक साल के भीतर ही गांव में बदलाव दिखने लगा. बच्चे और महिलाऐं खुल कर अपने विचार रखने लगे और इन कुप्रथाओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने लगे. 

आख़िरकार, हिंसला एक बाल विवाह मुक़्त गांव बना और इसका पूरा श्रेय पायल की बहादुरी को जाता है. 

नोबेल शांति पुरुस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने भी पायल की इस नेक पहल की प्रशंसा की थी.