ज़िंदगी की रेल जब पटरी से उतरती है तो हिम्मत पहियों से ज़्यादा कड़बड़ा के टूटती है. क्या कर सकते हैं, हर चीज़ हमारे हाथ में तो होती नहीं, सिवाए फ़ैसले के… फ़ैसला इस बात का कि ज़िंदगी के तूफ़ान में हम तिनके की तरह बहना पसंद करेंगे या चट्टान की तरह तूफ़ान को मात देना. 17 साल की कीर्ति कुशवाहा ने चट्टान बनने का फ़ैसला किया.  

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सतना की रहने वाली कीर्ति ने अपनी आंखों की रौशनी 75 फ़ीसदी गंवाने के बाद भी बारहवीं कक्षा में 94.4% अंक हासिल किए हैं. सिर्फ़ इतना ही नहीं, मध्य प्रदेश बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (MPBSE) के अनुसार, उन्होंने कॉमर्स स्ट्रीम में 8 वीं रैंक हासिल की है.  

अपनी इस सफ़लता के बाद कीर्ति ने कहा कि, ‘ये मेरा उन लोगों को जवाब है, जो मुझे ताना देते थे कि तुम कुछ नहीं कर सकतीं.’  

Hindustan Times ने कीर्ति की मां रश्मि के हवाले से कहा कि, ‘कृति ने आस-पास के इलाकों में कुछ अभिभावकों को मना लिया और कक्षा 8 तक के छात्रों को ट्यूशन देना शुरू कर दिया. वो एक होनहार छात्रा थी, तो अन्य लोगों ने भी उस पर भरोसा दिखाते हुए अपने बच्चों को ट्यूशन के लिए भेजना शुरू कर दिया. उसने ट्यूशन से जो पैसा कमाया उससे अपनी पढ़ाई जारी रखी.’  

उन्होंने आगे कहा, ‘उसका ये सफ़र इतना आसान नहीं थी क्योंकि डॉक्टर ने उसे दृष्टि के कम होने के कारण रात में ख़राब रोशनी में पढ़ने से मना कर दिया था. बिजली विभाग ने हमारा कनेक्शन काट दिया क्योंकि हमने पिछले साल जुलाई में बिल का भुगतान नहीं किया था. कनेक्शन को हाल ही में फिर से बहाल कर दिया गया था लेकिन हम उसके पढ़ने के लिए उचित इंतज़ाम नहीं कर सकते थे.’  

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‘कीर्ति ने भी हमसे कभी ज़्यादा सुविधाओ की मांग नहीं की. वो सुबह 6 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक अपने स्कूल, ट्यूशन और पढ़ाई को मैनेज करती थी, उसने हर मिनट का हिसाब रखा.’  

 इस ख़बर के आने के बाद लोग भी कीर्ति की मेहनत और जज़्बे की जमकर सराहना कर रहे हैं.  

सच में, कीर्ति ने साबित कर दिया, ‘सफ़लता का सफ़र रास्तों पर नहीं हौसलों पर तय होता है.’