देश में किसानों के हालात किसी से छिपे नहीं है. आज आलम ये है कि ‘किसान’ शब्द सुनते ही ज़हन में ‘अन्न’ नहीं, बल्कि ‘आत्महत्या’ की छवि बनती है. डॉक्टर, वकील, ड्राइवर, मज़दूर आदि पेशे के लोगों को तो आपने, अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाते, आंदोलन करते, अनशन करते देखा होगा, लेकिन ऐसा पहली बार है जब देश भर में किसान इतने बड़े स्तर पर आंदोलन कर रहे हैं.
कई राज्यों में चल रहे किसान आंदोलन के बीच महाराष्ट्र सरकार ने एक सकारात्मक फ़ैसला लिया है. महाराष्ट्र सरकार ने एक अधिसूचना ज़ारी की है, जिसमें राज्य के कर्मचारियों को अपनी एक दिन की तनख़्वाह किसानों की मदद के लिए देने को कहा गया है.
इस अधिसूचना में आईएएस-आईपीएस अधिकारियों, वन अधिकारियों, निगम के लोगों और राज्य के सभी सरकारी कर्मचारियों को अपनी एक दिन की तनख्वाह दान देने के लिए कहा गया है. जिन क्षेत्रों में किसान अात्महत्या की संख्या ज़्यादा है, वहां के किसानों की आर्थिक मदद के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में दान करने के लिए कहा गया है. इन पैसों से किसान के बच्चों की पढ़ाई में भी मदद की जाएगी.
एक अधिकारी ने बताया कि मुख्यमंत्री के अलावा कैबिनेट के अन्य सदस्य, MLA और MLC भी अपनी इच्छा से इसमें दान कर सकते हैं.
गौरतलब है कि महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र में सबसे ज़्यादा किसान आत्महत्या के मामले सामने आते हैं. पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र के कई किसानों ने आत्महत्या की है. इसके अलावा तमिलनाडु के किसानों ने दिल्ली में जंतर-मंतर पर कई दिन तक अनशन भी किया था. मध्य प्रदेश के मंदसौर में तो ये आंदोलन हिंसक हो गया था. उम्मीद है कि राज्य और केंद्र सरकारें अपने वोट बैंक और जाति की राजनीति और विकास के हवा हवाई दावों को छोड़कर देश के अन्नदाताओं के हित में ठोस फ़ैसले करेंगी.
Feature Image Source : Youtube