शिक्षा से बड़ा कोई धन नहीं होता और अगर आप दूसरों को शिक्षित करते हैं तो उससे बड़ा कोई नेक काम नहीं होता है. ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले के पारितेवादी गांव के रंजीत सिंह दिसाले कर रहे हैं, जो लड़कियों की शिक्षा पर विशेषकर ध्यान देते है. उनके इसी अतुलनीय काम ने उन्हें आज लखपति बना दिया है. दरअसल, दिसाले को भारत में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने और देश में त्वरित कार्रवाई (QR) कोड वाली पाठ्यपुस्तक (Textbook) लाने के लिए $1 Million Annual Global Teacher Prize 2020 का विजेता घोषित किया गया है. दिसाले इस प्रतियोगिता के अंतिम दौर में पहुंचे दस प्रतिभागियों में विजेता बनकर उभरे हैं. 

Varkey Foundation ने 2014 में शिक्षकों के उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें पुरस्कृत करने के उद्देश्य से इस पुरस्कार की शुरुआत की थी. इस राशि को जीतने के बाद दिसाले ने कहा कि वो अपनी पुरस्कार राशि का आधा हिस्सा अपने साथी प्रतिभागियों के साथ बांटेंगे. अन्य नौ फ़ाइनलिस्टों को 55,000 डॉलर से ज़्यादा मिलेंगे. इस पुरस्कार राशि को साझा करने वाले दिसाले पहले विजेता होंगे.

NDTV के अनुसार, उन्होंने कहा,

कोविड-19 महामारी ने शिक्षा को कई तरह से मुश्किल परिस्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है, लेकिन इस मुश्किल घड़ी में भी टीचर बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं. शिक्षक चॉक और चुनौतियों को मिलाकर अपने बच्चों और समाज में बदलाव लाने का काम करते हैं. वे हमेशा बच्चों को बेहतर बनाने में लगे रहते हैं. इसलिए मैं अपनी इस राशि का आधा हिस्सा अपने सहयोगों के साथ बांटकर ख़ुश हूं. मेरा मानना है कि साथ मिलकर हम दुनिया को बदल सकते हैं.

-रंजीत सिंह दिसाले

sundayguardianlive

पुरस्कार के संस्थापक और Philanthropist Sunny Varkey, ने कहा, 

पुरस्कार राशि साझा करके आपने दुनिया को बहुत ही महत्वपूर्ण शिक्षा दी है कि देना ही शिक्षक का काम होता है.

इस पहल के साझेदार यूनेस्को में सहायक शिक्षा निदेशक Stefania Giannini ने कहा,

रंजीत सिंह जैसे शिक्षक ही हैं जो जलवायु परिवर्तन रोकेंगे और शांतिपूर्ण एवं न्यायपूर्ण समाज बनाएंगे. साथ ही असमानताएं मिटाकर समाज को आर्थिक वृद्धि की ओर ले जाएंगे.
newstracklive

दरअसल, जब दिसाले 2009 में सोलापुर के पारितवादी के ज़िला परिषद प्राथमिक विद्यालय पहुंचे थे तब वहां का प्राइमरी स्कूल एक दम जर्जर हालत में था, जिसे देख कर लग रहा था कि वहां मवेशी रहते हैं और वो स्टोररूम के जैसा था. दिसाले ने इसे ठीक करने की ज़िम्मेदारी उठाई और ये सुनिश्चित किया कि विद्यार्थियों के लिए स्थानीय भाषाओं में किताबें मुहैया हों.

newsvibesofindia

उन्होंने न केवल किताबों का छात्रों के लिए अपनी भाषा में अनुवाद किया, बल्कि उसमें विशिष्ट क्यूआर कोड की व्यवस्था की, जिसे छात्र-छात्राएं ऑडियो में कविताएं और वीडियो लेक्चर और कहानियां घर पर भी सुन सकें. दिसाले की कोशिश के बाद गांव में छोटी उम्र में शादी करने की घटनाएं कम हुईं और स्कूलों में लड़कियों की 100 प्रतिशत मौजूदगी दर्ज की गई.

hindustantimes

दिसाले, महाराष्ट्र में क्यूआर कोड वाली पाठ्यपुस्तकें (Textbook) शुरू करने वाले पहले टीचर हैं और इस प्रायोगिक योजना की सफ़लता के बाद राज्य मंत्रिमंडल ने 2017 में घोषणा की कि वो सभी श्रेणियों के लिए राज्य में क्यूआर कोड पाठ्यपुस्तकें (Textbook) शुरू करेगी. 2018 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने घोषणा की कि राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की पाठ्यपुस्तकों (Textbook) में भी क्यूआर कोड होंगे.

amnews

आपको बता दें, दिसाले ‘Let’s Cross the Borders’ परियोजना के माध्यम से भारत और पाकिस्तान, फ़िलिस्तीन और इज़रायल, इराक और ईरान व अमेरिका और उत्तर कोरिया के युवाओं को जोड़ना चाहते हैं. 6 हफ़्ते के कार्यक्रम में छात्रों को अन्य देशों के शांति मित्र के साथ मिलने का मौक़ा दिया जाएगा, जिनके साथ वो शिक्षा से जुड़ी बात-चीत कर पाएंगे. अब तक दिसाले ने आठ देशों के लगभग 19,000 छात्रों को इस कार्यक्रम में शामिल किया है.