21वीं सदी की ओर बढ़ते भारत में महिलाओं की स्थिति में कुछ बदलाव देखे गए हैं. सामाजिक और आर्थिक तौर पर महिलाएं पिछली जनरेशन की तुलना में कहीं अधिक सशक्त हुई हैं. लेकिन लड़के और लड़कियों को लेकर देश के ज़्यादातर लोगों की मानसिकता में खास बदलाव नहीं आया है. गरीब समुदायों में आज भी लोग दहेज देने के डर के चलते भ्रूण हत्या में यकीन रखते हैं.

इंडिया और भारत की इस जद्दोजहद से जूझते समय में महाराष्ट्र में लड़का पैदा होने के उपायों को कॉलेजों में पढ़ाया जा रहा है.

महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी के बैचलर ऑफ़ आयुर्वेद, मेडिसिन एंड सर्जरी यानि BAMS कोर्स की किताबों में कई ऐसी तकनीकें सिखाई जा रही हैं, जिससे लड़का पैदा होने का दावा किया जाता है.

चरक संहिता, आर्युवेद के सबसे प्राचीन दस्तावेज़ों में शुमार है. इनमें दिए गए तरीकों को BAMS के सिलेबस में शामिल किया गया है. इस किताब में Male Foetus बनाने की विधि को ‘पुसानवन’ कहा जाता है और एक पैराग्राफ़ के अनुसार अगर कोई महिला लड़का चाहती है, तो गर्भवती होने पर पुसानवन के रिवाज़ों को निभा कर ऐसा कर सकती है. इन तरीकों की मदद से लड़के के जन्म के सुनिश्चिति होने का दावा किया गया है.

BAMS का ये सिलेबस नासिक में स्थित महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ़ हेल्थ साइंस के द्वारा सुपरवाइज़ होता है. हाल ही में इन तरीकों पर गणेश बोरहाडे ने सवाल उठाया है. गणेश लेक लड़की अभियान से जुड़े हुए हैं. इस अभियान को एडवोकेट वर्षा देशपांडे सुपरवाइज़ करती हैं.

बोरहाडे ने कहा कि BAMS डिग्री वाले डॉक्टर्स न केवल ग्रामीण क्षेत्रों, बल्कि मुंबई, पुणे और नासिक में भी मौजूद हैं. आयुर्वेद के फलते-फूलते प्रोफ़ेशन में ज़्यादातर डॉक्टर्स एलौपेथी को किनारे कर देते हैं. देश में मेडिकल स्टूडेंट्स को भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने वाली चीज़ों को पढ़ाया जा रहा है, ऐसे में समाज केवल भगवान भरोसे है.

वे इस किताब के कुछ तरीकों को PCPNDT एक्ट प्रशासन के संज्ञान में भी लाए हैं, लेकिन आने वाले ऐकेडेमिक साल में इस कटेंट के हटने की संभावना बेहद कम दिखाई दे रही है. बोरहाडे ने किताब में दिए गए एक तरीके पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि ‘कई तरीके साइंटिफ़िक तौर पर भी गलत हैं’. वहीं महाराष्ट्र PCPNDT एक्ट कंसल्टेंट, डॉ. आसाराम खड़े ने कहा है कि इस तरह के कटेंट को बढ़ावा देना भ्रूण-हत्या को बढ़ावा देने जैसा है.

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MUHS के वाइस चांसलर डॉ. म्हाइसेकर का कहना है कि BAMS का सिलेबस मिनिस्ट्री ऑफ़ आयुर्वेद (आयुष) निर्धारित करता है और उन्होंने मिनिस्ट्री को इस बारे में सूचना भेज दी है. हम मिनिस्ट्री से जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं, क्योंकि MUHS के पास किताब से किसी भी तरह के कंटेंट को हटाने के अधिकार नहीं है. आयुर्वेद के सेंटर काउंसिल में महाराष्ट्र के सात सदस्य हैं और सभी इस सिलेबस से वाकिफ़ हैं.

ये देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार की इस मामले में क्या प्रतिक्रिया आती है.