इन दिनों टेलीविज़न की बहसों से लेकर अख़बारों की सुर्ख़ियों तक बस दो ही ख़बरें हैं. एक स्वामी ओम जी महाराज का पब्लिसिटी ड्रामा और दूसरा खादी के कैलेंडर पर गांधी जी की जगह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर.

गांधी जी के अनुसार, ‘खादी वस्त्र नहीं, विचार है‘ पर आजकल इसी विचार पर नरेंद्र मोदी का प्रभाव हावी होने लगा है, जिसका असर खादी ग्रामोद्योग द्वारा जारी कैलंडर पर भी दिखने लगा है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब पीएम मोदी की चमक के सामने गांधी जी की छवि को चुनौती देने की कोशिश की गई हो.

गांधी जयंती के रूप में पहचाने जाने वाला 2 अक्टूबर अब ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के रूप में अपनी सत्ता काबिज़ कर चुका है. उस समय लोगों को लगा कि गांधी जी के जन्मदिवस को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से जोड़ कर उन्हें श्रद्धांजलि देने की एक कोशिश की जा रही है.

पिछले साल भी जब महात्मा गांधी जी की तस्वीर को हटा कर मोदी के रंग में रंगने की कोशिश की गई, तब भी खादी ग्रामोद्योग से जुड़े कर्मचारियों ने अपना विरोध दर्ज कराया, पर उस समय इसे प्रिंटिंग की एक भूल बता कर मामला दबा दिया गया. इसके साथ ही कर्मचारियों को ये आश्वासन दिया गया कि भविष्य में ऐसी भूल फिर कभी नहीं होगी.

पर एक साल बाद इस गलती को न सिर्फ़ दोहराया गया, बल्कि सारे कैलंडर को ही मोदीमय बना दिया गया. हालातों को देखते हुए ये कहना गलत नहीं है कि ‘खादी अब विचार न रह कर प्रोपोगंडा फ़ैलाने का एक ज़रिया बन चुका है, जिसकी आड़ में डिज़ाइनर कपड़े पहनने वाला एक शख्स गांधी के विचारों को कहीं दबा देना चाहता है.’

जिसका जीता जागता प्रमाण है सरकार के एक प्रवक्ता का ये बयान कि ‘ऐसा कोई नियम और कानून नहीं है कि कैलंडर में महात्मा गांधी की जगह कोई और नहीं ले सकता.’ पर इस बयान को देते वक़्त शायद वो प्रवक्ता ये भूल गये कि पुराने कैलंडर में आधे खुले और आधे बंद शरीर के साथ चरखा चलाते दिखते महात्मा गांधी सिर्फ़ खादी ही नहीं, बल्कि इस देश की आत्मा भी हैं, जिनके साथ भारत का एक गौरवशाली इतिहास भी जुड़ा हुआ है.

वहीं इस बदलाव को ले कर खादी ग्रामोद्योग के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना का कहना है, ‘यह कोई असामान्य बात नहीं है. पहले भी इस तरह के कई बदलाव हो चुके हैं.’ इस घटना से बेशक हमारा कोई सरोकार नहीं हो, पर खादी ग्रामोद्योग के कई कर्मचारी इस बात का विरोध जताने के लिए मुंबई के विले पार्ले स्थित मुख्यालय में महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास मुंह पर काली पट्टी बांध कर आधे घंटे तक बैठे रहे क्योंकि उनका मानना है कि गांधी जी से बड़े उनके विचार थे, जिन विचारों का आज भगवाकरण किया जा रहा है.