पिछले महीने कश्मीर-घाटी में सेना और पत्थरबाजों के बीच कई दिनों तक घमासान चलता रहा था. उसी दौरान घाटी में पत्थरबाजों से निपटने के लिए मेजर नितिन लीतुल गोगोई द्वारा एक स्थानीय युवक जिसका नाम फारूक अहमद डार था, को जीप के आगे बांध कर मानव ढाल की तरह इस्तेमाल किया था. मेजर गोगोई के इस कदम को सही ठहराते हुए बीते सोमवार को उन्हें चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्‍टाफ़ (COAS) कमेंडेशन कार्ड से नवाजा गया.

पिछले दिनों आर्मी चीफ़ बिपिन रावत जम्मू और कश्मीर के दौरे पर थे. उसी वक्त गोगोई को यह सम्मान दिया गया. वहीं गोगोई को सेना की ओर से सम्मान मिलने का विरोध करने के लिए नैशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी की महिला विंग ने सड़कों पर प्रदर्शन और नारेबाजी भी की. मेजर के इस कदम से एक आम नागरिक सवालों के कटघरे में गया है. उसके लिए जीवन मुश्किल हो गया है.

जहां सेना इस कदम पर लगातार सवाल उठ रहे थे, वहीं अभी तक मेजर गोगोई ने चुप्पी साध रखी थी. बीते मंगलवार को एक इंटरव्यू के दौरान पहली बार मेजर गोगोई ने इस बारे में बोलते हुए इस घटना का पूरा इल्ज़ाम फारुक अहमद डार पर डाल दिया. गोगोई के अनुसार, उस वक़्त उनके सामने करो या मरो वाली परिस्थिति बन चुकी थी. इसके साथ ही मेजर ने बताया कि बीती 9 अप्रैल को उनके पास एक कॉल आया और बडगाम जिले के उत्लिगम गांव के एक मतदान केंद्र की सुरक्षा व्यवस्था को चेक करने और वहां की स्थिति पर काबू करने का आदेश दिया गया था. फिर उन्होंने बताया कि जब वो वहां पहुंचे तो पत्थरबाज़ों ने उन पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए. यहां तक कि उन पत्थरबाज़ों ने महिलाओं और बच्चों को भी नहीं छोड़ा. वो लोग छतों से भी पत्थर फेंक रहे थे.

Times of India के अनुसार, मेजर गोगोई ने कहा, ‘मैं माइक पर बार-बार ये बोल रहा था कि मैं यहां सिर्फ़ पुल्लिंग स्टाफ़ की सुरक्षा के लिए आया हूं, लेकिन भीड़ ने मेरी एक न सुनी. किसी तरह मैंने स्टाफ़ को तो बचा लिया, लेकिन उनको वहां से निकाल कर ले जाना एक कठिन काम साबित हो रहा था क्योंकि करीब 1200 पत्थरबाज़ों ने मुझको घेर लिया था. तभी मैंने मेरी जीप से 30 मीटर की दूरी पर भीड़ में खड़े एक आदमी को देखा, जो भीड़ को उकसा रहा था. इसलिए तुरंत मैंने अपने साथी जवानों से उसको पकड़ कर लाने के लिए कहा. जब उस आदमी ने जवानों को उसकी तरफ बढ़ते देखा, तो वो भीड़ के अन्दर घुसने लगा. लेकिन उमने उसको उसकी बाइक सहित पकड़ लिया.’

मेजर गोगोई ने बताया, ‘उस वक़्त मेरे दिमाग में उस आदमी को जीप के आगे बांधने का आईडिया आया और मैंने किसी को हताहत किए बिना मतदान कर्मियों और अर्द्धसैन्य बलों को बचाने के लिए व्यक्ति को जीप से बांध दिया. उसके बाद मैं, मेरे साथी और पोलिंग स्टाफ़ को सुरक्षित वहां से निकालने में सफ़ल हो पाया.’ इसके साथ ही गोगोई ने कहा, ‘अगर मैं स्थिति को नियंत्रित करने के लिए गोली चलाने का आदेश देता तो कम से कम 12 लोग मारे जाते और इन 12 निर्दोष लोगों को बचाने के लिए मैंने ये निर्णय लेना सही समझा.’

यहां देखिये कि मेजर गोगोई ने क्या कहा:

https://www.youtube.com/watch?v=47SbrFt3C4M

हालांकि, फारूक अहमद डार ने एक इंटरव्यू में बताया कि उस घटना से उनको बहुत सदमा लगा है और वो अपमानित भी महसूस कर रहे हैं. वो इस हादसे से इतने डर गए हैं कि अब वो अपने घर से बाहर निकलने के लिए भी डरते हैं. फारूक अहमद डार ने मेजर गोगोई को सेना द्वारा सम्मानित किए जाने को ‘न्याय की हत्या’ बताया है. उन्होंने इसे अन्याय बताते हुए मेजर गोगोई और सेना से पूछा है कि क्या वे कभी अपने बेटे को इस तरह जीप के बोनट पर बांधेंगे? इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘यह न्याय नहीं है. प्रताड़ना और जुल्म का समर्थन कर के उन्होंने न्याय की हत्या की है. वो सेना के लोग हैं, मुझे मानव ढाल बनाने के बजाय उन्हें पत्थरबाजों के खिलाफ़ अपनी लड़ाई लड़नी चाहिए थी. आखिर सेना अपनी लड़ाई के लिए किसी आम आदमी को प्रताड़ित कैसे कर सकती है?’