Dashrath Manjhi Of Uttarakhand Kesar Singh: बिहार के दशरथ मांझी के बारे में सबको पता है, लेकिन क्या आप उत्तराखंड के दशरथ मांझी के बारे में जानते हैं? राज्य के एक शख़्स ने ऐसा कारानामा किया कि लोगों ने उन्हें उत्तराखंड का दशरथ मांझी नाम दे दिया.
![Dashrath Manjhi Of Uttarakhand](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/05/Screenshot-2023-05-22-at-17-49-20-untitled-design-12_42jpg-JPEG-Image-1200-675-pixels-Scaled-91_646b5ecf86d4c.png?w=725)
हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के चंपावत क्षेत्र के बनबसा में रहने वाले किसान केसर सिंह की. इन्होंने 12 साल की कड़ी मेहनत और ज़ुनून के दम पर नामुमकिन से लगने वाले काम को कर दिखाया है. दरअसल, केसर सिंह ने एक नदी का रुख बदल दिया है. (Uttarakhand Kesar Singh Story)
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12 साल तक किए पत्थर इकट्ठा
![Dashrath Manjhi Of Uttarakhand Kesar Singh](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/05/Screenshot-2023-05-22-at-17-49-34-untitled-design-10_61jpg-JPEG-Image-1200-675-pixels-Scaled-91_646b5ecfab53c.png?w=725)
उन्होंने अकेले 12 साल तक छोटे-बड़े पत्थरों को इकट्ठा कर नदी का रास्ता बदल दिया. क्योंकि ये नदी हर साल बरसात के वक़्त उफन आती थी और आस-पास के कई गांवो को बाढ़ग्रस्त कर जाती थी. उनके गांव के पास जगबुडा नदी में बाढ़ आने से हर साल कई गांव तबाह हो जाते थे. इसलिए केसर सिंह ने अपने घर से 2 किलोमीटर दूर इस नदी पर पत्थरों को इकट्ठा करके इसका रुख मोड़ दिया.
ऐसा करने के बाद आस-पास के गांव वालों के बीच ये फ़ेमस हो गए और लोग इनकी तारीफ़ करते हुए इन्हें उत्तराखंड का दशरथ मांझी कहते हैं.
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ऐसे मिला आईडिया
![Dashrath Manjhi Of Uttarakhand Kesar Singh](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/05/Screenshot-2023-05-22-at-17-48-56-untitled_design_11_6-sixteen_ninejpg-WEBP-Image-1200-675-pixels-Scaled-91_646b5ecfb9371.png?w=725)
इस काम के लिए उन्हें प्रेरणा पहाड़ों की एक परंपरा से. उनके गांव में ये रीत है कि लोग एक छोटा सा पत्थर उठाकर मंदिर में चढ़ाते हैं. इससे उन्हें आईडिया मिला कि क्यों न इसे नदी के रास्ते में रखा जाए और नदी की धारा का बदल दिया जाए. लोगों से ये बात शेयर भी की केसर सिंह ने, लेकिन किसी ने उनका साथ नहीं दिया. तब वो अकेले ही इस काम लग गए. लोग इन्हें पागल कहते थे. ये कार्य करते समय उनके पैर की उंगली भी टूट गई.
परदादा से मिली आगे बढ़ने की प्रेरणा
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केसर सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया कि 1857 की क्रांति में अंग्रेज़ों ने उनके परदादा बिशन सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया था. उनका मानना है कि ये उनके परदादा के खू़न का ही असर है जो वो ये क्रांति बरकरार रख सके. अब हर कोई इस कार्य के लिए उनकी तारीफ़ करता है. क्योंकि उनकी बदौलत बहुत से गांव को बाढ़ से राहत जो मिली है.
केसर सिंह जी के जज़्बे को सलाम है.