स्वच्छ भारत का सपना हर भारतीय देखता है, लेकिन उसे पलीता भी हम ही लगाते हैं. जहां चाहे वहां कूड़ा फेंक दिया और पुरूष तो कहीं भी खड़े होकर मूत्र विसर्जन करने लगते हैं. स्वच्छता के इस सपने के आड़े आती है टॉयलेट की कमी. इसी कारण देश के कई कोने गंदे और बदबूदार नज़र आते हैं. इसका हल निकाला है पुणे के दो Entrepreneurs ने.
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पुणे के Entrepreneurs उल्का सादलकर और राजीव खेर ने ‘ती’ नाम के टॉयलेट्स की शुरुआत की है. इसके लिए वो पुणे नगर निगम की पुरानी बसों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इन बसों को टॉयलेट्स में बदला गया है. टॉयलेट भी ऐसे हैं कि आप देखते रह जाएं.
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इन बसों में वेस्टर्न और इंडियन दोनों स्टाइल के टॉयलेट हैं. वॉशबेसिन और बच्चों के डायपर बदलने की जगह भी. यहां महिलाओं को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने के लिए टीवी भी लगाए हैं. इतना ही नहीं, सैनेटरी नैपकीन भी सस्ते दाम पर यहां बेचे जा रहे हैं. इन्हें पुणे के भीड़-भाड़ वाले इलाकों में खड़ा किया गया है.
पुणे की आबादी घनी है और टॉयलेट्स की भी कमी है. जो टॉयलेट हैं, वो इतने गंदे होते हैं कि उनका इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाता है. इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए पुणे के Entrepreneurs उल्का सादलकर और राजीव खेर ने इस बस-कम टॉयलेट का ईजाद किया.
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इनकी कंपनी का नाम है Saraplast, जो 2016 से ही इनका संचालन कर रही है. फ़िलहाल इनके पास ऐसे 11 टॉयलेट हैं और हज़ारों महिलाए रोज़ाना इन्हें इस्तेमाल करती हैं. इनकी सफ़लता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आज तक उन्हें इन टॉयलेट्स को लेकर कोई शिकायत नहीं मिली.
इस बारे में The Better India से बात करते हुए उल्का सादलकर ने कहा- हमने कहीं पढ़ा था कि पुरानी बसों को लोग बेघरों के लिए घर बनाने के लिए यूज़ कर रहे हैं. इसी कॉन्सेप्ट को हमने महिलाओं के लिए टॉयलेट बनाने की ठानी. क्योंकि भारत में महिलाओं के लिए टॉयलेट की समस्या बहुत बड़ी है.
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मराठी में ‘ती’ महिलाओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इनकी कंपनी ईवेंट्स के लिए भी मोबाइल टॉयलेट उपलब्ध कराती है. महिलाएं इनका इस्तेमाल 5 रुपये देकर कर सकती हैं. हालांकि, पहले वो इसे मुफ़्त में उपलब्ध कराना चाहते थे, लेकिन आर्थिक कारणों से ऐसा हो न सका. ये बसें सोलर एनर्जी से चलती हैं. हर बस में एक महिला कर्मचारी को नियुक्त किया गया है.
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देश की राजधानी दिल्ली को भी पुणे से सबक लेना चाहिए. क्योंकि सीएनजी बसों के आगमन के बाद से ही डीटीसी के कई डिपो में हज़ारों डीज़ल बसें धूल फांक रही हैं. इनका इस्तेमाल प्रशासन को इस तरह के मोबाइल टॉयलेट के रूप में करना चाहिए.